यूएसएसआर ने चीन के साथ सीमा-संघर्ष में भारत को महत्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया था। द्विपक्षीय सहयोग की परिणति 1971 में हुई, जब यूएसएसआर ने पाकिस्तान के साथ एक टकराव में भारत का समर्थन करके बाद में पूर्वी पाकिस्तान में स्थिति का समाधान निकालने में यानी बांग्लादेश के विभाजन में मदद की। इसके नतीजे में दोनों देशों के बीच संबंध अत्यंत उच्च स्तर पर पहुंचे। तब से अब तक रूसी-भारतीय संबंधों के विकास के नई संभावनाएं बनती रही हैं। इसलिये यह आश्चर्य की बात नहीं है कि रूसी और भारतीय जनताओं के बीच दशकों से मजबूत होने वाली दोस्ती और आपसी सहयोग की अभिव्यक्ति कला सहित लोगों के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में होने लगी है। भारत में यात्रा करते समय, आप रूसी संस्कृति के प्रतिनिधियों के बहुत सारे स्मारक पा सकते हैं, वेसे ही रूस में राजधानी और बहुत से अन्य रूसी शहर भारतीय सांस्कृतिक स्मारक आदि देखने वाले जगहों से भरे हुए हैं।
नीचे हमने भारत और रूस के बीच आपसी मित्रता के प्रसिद्ध स्मारकों और प्रतीकों का चयन प्रस्तुत किया है।
भारत में रूसी स्मारक
लेनिन का स्मारक
1987 में नई दिल्ली में सबसे बड़े और सबसे सुंदर पार्कों में से एक नेहरू पार्क में जवाहर लाल नेहरू का नहीं बल्कि सोवियत राजनेता, मार्क्सवाद के सिद्धांतकार, कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक लेनिन का स्मारक प्रस्तुत किया गया है । तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री राजीव गांधी और यूएसएसआर मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष निकोलाई रियाज़कोव इसके भव्य उद्घाटन पर पहुंचे। कुछ ही वर्षों में, रूस में लेनिन की मातृभूमि में उनके कई स्मारकों को ध्वस्त कर दिया गया जब कि भारत में इनका स्मारक अभी तक मौजूद है ।
पूश्किन का स्मारक
1988 में नई दिल्ली में नेपाल दूतावास के सामने यूएसएसआर सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया महान रूसी कवि अलेक्जेंडर सर्गेइविच पूश्किन का स्मारक स्थापित किया गया था। यह मुंडी हाउस के केंद्रीय जिले में स्थित है। उस वर्ष मिखाइल गोर्बाचेव ने भारत में आयोजित यूएसएसआर के वर्ष के सम्मान में भारत का दौरा किया था। रूसी विज्ञान और संस्कृति केंद्र (आरसीएससी) हर साल 6 जून को लेखक का जन्मदिन मनाते हुए यहां रूसी भाषा दिवस का आयोजन करता है। बहुत सारे युवा हमेशा स्मारक के पास इकट्ठा होते हैं, वहां बहुत फास्ट फूड और भोजनालय स्थित हैं।
तोलस्तोय का स्मारक
लेव निकोलायेविच तोलस्तोय दुनिया के सबसे प्रसिद्ध लेखकों और दार्शनिकों में से एक हैं और 1994 में नई दिल्ली में उन के नाम के मार्ग पर मूर्तिकार यूरी चेर्नोव के टॉल्स्टॉय का एक स्मारक स्थापित किया गया था। 1992 में रूसी संस्कृति मंत्रालय द्वारा कांस्य स्मारक का निर्माण किया गया था। और 1994 में, रूसी प्रधान मंत्री विक्टर चेर्नोमिर्डिन द्वारा भारत की यात्रा पर, इसे भारत को हस्तांतरित किया गया था।
अपने स्वयं के समान विचारधारा वाले लोगों की तलाश में, लेव निकोलायेविच तोलस्तोय ने, भारतीय प्राचीन संस्कृति के दार्शनिकों, लेखकों की ओर देखा। उदाहरण के लिये उनेहोंने बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) के भाषण की उच्च कला का उल्लेख किया। तोलस्तोय भारतीय दर्शन के निर्वाण, माया, अहिंसा में विश्वास किया करते थे ।
अपने समकालीन हिंदू विवेकानंद स्वामी (1863-1902) की पुस्तक "फिलॉसफी ऑफ योग" में तोलस्तोय ने भगवान और मनुष्य के बारे में अपने विचार की अभिव्यक्ति पाई। लेव तोलस्तोय ने महात्मा गांधी को लिखा "लेटर टू ए हिंदू" , जिसे बाद में विदेशों में प्रकाशित किया गया था। इसलिये यह बिल्कुल स्वाभाविक है कि भारत में न केवल एक स्मारक है, बल्कि लेखक के नाम पर एक मार्ग भी है।
अफानसी निकितिन का स्मारक
15 अगस्त, 2002 को भारत के बीदर में रूसी यात्री अफानसी निकितिन का स्मारक स्थापित किया गया जिसे मूर्तिकार लेव कर्बेल ने बनाया था । इस रूसी यात्री और लेखक को, "जर्नी बियॉन्ड द थ्री सीज़" के लेखक के रूप में माना जाता है। वह यूरोपियों में से भी पहले भारत पहुंचा। स्मारक को अरब सागर के तट पर स्थापित किया गया था - उसी स्थान पर, जहां इतिहासकारों के अनुसार, अफानसी निकितिन ने पहली बार 1470 में भारतीय धरती पर पैर रखा था। इस यात्री की स्मृति को याद रखना मुंबई की जनता का इरादा था। स्मारक के बगल में रखी कांस्य पट्टिकाओं पर उन प्रायोजकों का नाम लिखा गया हैं, जिनकी मदद से लगभग 3 करोड़ रूपीए स्मारक को स्थापित करने के लिये जुटाए गए थे ।
भारत के रेवदंडा में 19 जनवरी, 2002 को अफानासी निकितिन के भारतीय धरती पर पैर रखने को यादगार बनाने के लिये 7 मीटर ऊँचा एक काले ग्रेनाइट का शिला स्थापित किया गया था। उसके ऊपर रूसी, अंग्रेजी, हिंदी और मराठी में शिलालेख हैं जो बताते हैं कि त्वेर नामक रूसी शहर से एक व्यापारी अफानासी निकितिन ने सबसे पहले भारतीय धरती पर पैर रखा था। पास में एक स्मारक पट्टिका है जो भारत तक उस यात्री का मार्ग दर्शाता है।
रेरिख का स्मारक
9 अक्टूबर, 2019 को हिमालय की कुल्लू घाटी में रेरिख के घर-संग्रहालय में उत्कृष्ट रूसी कलाकार और दार्शनिक निकोलाय रेरिख के जन्म की 145 वीं वर्षगांठ पर उनकी और उनकी पत्नी हेलेना की भी प्रतिमाएं स्थापित की गई थीं।
निकोलाय रेरिख, जिनकी गतिविधियां भारत से जुड़ी हुई हैं, उन्होंने ने लगभग 7 हजार चित्रों को चित्रित किया। इन में से कई अब दुनिया भर के संग्रहालयों और दीर्घाओं (गैलरियों) में प्रदर्शित हैं। उन्होंने "अल्ताई - द हिमालय: ए ट्रैवल डायरी", "ईस्ट-वेस्ट" और "हार्ट ऑफ एशिया" सहित लगभग 30 साहित्यिक कृतियों को बनाया। उन्होंने सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण पर एक अंतरराष्ट्रीय संधि (रेरिख पैक्ट) के संस्थापक के रूप में भी काम किया। उनकी पत्नी, हेलेना रेरिख को "लिविंग एथिक्स" दार्शनिक प्रणाली के निर्माता के रूप में भी जाना जाता है। उनके बेटे यूरी मध्य एशिया के एक उत्कृष्ट शोधकर्ता और तिब्बती-अंग्रेजी-रूसी-संस्कृत शब्दकोश के लेखक बने, उन्होंने मध्य एशिया के इतिहास पर एक मोनोग्राफ भी लिखा है। उनका दूसरा बेटा स्व्यातोस्लाव एक कलाकार और सार्वजनिक व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हुआ। उन्हें भारत में सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक, यानी पद्म भूषण (ऑर्डर ऑफ द लोटस) से सम्मानित किया गया।
रूस में भारतीय स्मारक
इंदिरा गांधी का स्मारक
1985 में, मास्को विश्वविद्यालय के पास एक चौक को उनका नाम दिया गया है , और 1987 में मूर्तिकार ओलेग कोमोव ने उनका एक स्मारक बनाया था। इंदिरा गांधी भारतीय साड़ी पहने हुए अपना दाहिना हाथ ऊपर उठाने के अंदाज में नज़र आती हैं। स्मारक में एक मामूली ग्रेनाइट पेडस्टल है, और एक साधारण टैबलेट पर शिलालेख संक्षेप में है: इंदिरा गांधी। उद्घाटन समारोह में सोवियत संघ की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के महासचिव मिखाइल सर्गेयेविच गोर्बाचेव और इंदिरा गांधी के बेटे यानी भारत के प्रधान मंत्री राजीव गांधी दोनें ने भाग लिया था ।
महात्मा गांधी का स्मारक
1988 में मास्को में गांधी का एक स्मारक स्थापित किया गया था। मूर्तिकार गौतम पाल द्वारा बनाया गया यह स्मारक भारतीय लोगों की ओर से मास्को को एक उपहार के रूप में दिया गया था। गांधी को पारंपरिक कपड़ों में और अपने हाथों में तीर्थयात्रियों के डंडे को थामकर आगे बढ़ते हुए प्रस्तुत किया गया है। रूस में, गांधी अहिंसा (सत्याग्रह) के अपने दर्शन के लिए व्यापक रूप से प्रसिद्ध हैं। रूस में लेव तोलस्तोय की विचारधाराएं गांधी की समान थीं । अहिंसा के ये दो विचारक एक-दूसरे को पत्र भेजा करते थे और एक-दूसरे की बहुत सराहना करते थे।
2007 में अलेक्जेंडर रियाबिचेव द्वारा महात्मा गांधी की एक और मूर्ति बनाई गई थी। वर्तमान में, 650 किलोग्राम वजनी एक स्मारक, जिस पर "मेरा जीवन ही मेरा संदेश है" लिखा हुआ है, मास्को में भारतीय दूतावास के भवन में स्थित है। यह स्मारक दिल्ली में स्थित महात्मा गांधी की एक मूर्ति की नकल है। 2 अक्टूबर, 2007 को पहले अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर, अलेक्जेंडर रयाबिचेव ने भारत और इसके लोगों के सम्मान के रूप में महात्मा गांधी की यह मूर्ति मास्को में भारतीय दूतावास को प्रस्तुत की थी ।
रबीन्द्रनाथ टैगोर का स्मारक
1991 में मास्को के उत्तर में फ्रेंडशिप पार्क में साहित्य में एक और प्रसिद्ध भारतीय कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के स्मारक को स्थापित किया गया था जिसे मूर्तिकार गौतम पाल ने बनाया। महान कवि ब्राह्मणों की उच्च जाति से होकर उन लोगों में से एक बन गए जिन्होंने जाति व्यवस्था की आलोचना करना शुरू किया था । और अछूतों की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया था । उन्होंने बहुत से प्रार्थना स्थल, स्कूल और विश्वविद्यालय बनाए। यहां तक कि उन्होंने अपना नोबेल पुरस्कार शिक्षा के लिए दान कर दिया था । 1930 में, टैगोर ने यूएसएसआर का दौरा किया - उन्हें इस देश और साम्यवाद की विचारधारा के प्रति गहरी सहानुभूति थी।
जवाहरलाल नेहरू का स्मारक
1996 में मास्को विश्वविद्यालय के पास उनके नाम पर एक चौक पर भारत के पहले प्रधान मंत्री और इंदिरा गांधी के पिता जवाहर लाल नेहरू के स्मारक का उद्घाटन समारोह आयोजित किया गया था । मूर्तिकला के रूप में दोनों पिता और पुत्र रयाबिचेव को चुना गया था, क्योंकि कुछ समय पहले उन्होंने महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी के स्मारकों को बनाया था, जो भारत को उपहार में प्रस्तुत किये गये थे मार्च 1989 में भारत के पहले प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू के जन्म शताब्दी के समारोह के बाद, मास्को में उनके नाम पर एक सांस्कृतिक केंद्र खोला गया था। जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र पारंपरिक रूप से सांस्कृतिक संबंधों और रूस और भारत के लोगों की एकता को और मजबूत करने के उदेश्य से बनाया गया था। अपने सूचना अभियान के तहत जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र, मास्को भारतीय सामुदायिक संघों और रूस में 50 से अधिक स्थानीय भारतीय सांस्कृतिक केंद्रों के साथ नियमित रूप से सहयोग करता है।
स्वामी विवेकानंद का स्मारक
सन 2015 नवंबर 14 को रूस में भारत के दूतावास और कलुगा क्षेत्र की सरकार के समर्थन से, रूसी फाउंडेशन ने शैक्षिक केंद्र "ETNOMIR" में भारत का सांस्कृतिक केंद्र और महानतम भारतीय दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का स्मारक का उद्घाटन किया था । एक आध्यात्मिक विचारक और भारत के प्रमुख सुधारकों में से एक स्वामी विवेकानंद ने भारत की प्राचीन संस्कृति और पुरानी परंपराओं को दुनिया के सामने प्रकट किया था । भारतीय दार्शनिक और योगी के जन्म की 150 वीं वर्षगांठ पर सन 2013 में मूर्तिकार अलेक्सी लियोनोव ने स्वामी विवेकानंद जी का कांस्य स्मारक बनाया था। कई कारणों से स्मारक का उद्घाटन दो साल बाद हुआ था ।