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व्हाइट हाउस के अधिकारी के अनुसार भारत अमेरिका का सहयोगी नहीं बनेगा।

रूस से अपने मजबूत पुराने संबंधों को और अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए, नई दिल्ली ने यूक्रेनी संकट पर क्रेमलिन के खिलाफ अमेरिकी दृष्टिकोण को मानने से किया इनकार ।
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व्हाइट हाउस के एशिया समन्वयक कर्ट कैंपबेल ने गुरुवार को कहा कि भारत अमेरिका का सहयोगी नहीं बल्कि एक और बड़ी ताकत बनने जा रहा है । व्हाइट हाउस के इस अधिकारी ने पिछले दो दशकों में तेजी से हुई प्रगति के बावजूद भारतीय-अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों में कई चुनौतियों को स्वीकारा है ।
कैंपबेल ने वाशिंगटन में एस्पेन सुरक्षा फोरम की बैठक में कहा कि, "भारत का एक अद्वितीय रणनीतिक चरित्र है। यह संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का सहयोगी नहीं होगा। यह एक स्वतंत्र, शक्तिशाली राष्ट्र बनने की इच्छा रखता है और यह एक और बड़ी शक्ति होगी।"
यूक्रेन में मास्को के विशेष सैन्य अभियान के जवाब में रूस के साथ सैन्य और ऊर्जा संबंधों को तोड़ने के अमेरिकी अनुरोध को नई दिल्ली द्वारा लगातार खारिज किए जाने के बीच यह बयान आया है। भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से यह कहा है कि वैश्विक खाद्य और ऊर्जा संकट के समय में वह अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगी। कैंपबेल ने यह भी कहा कि नई दिल्ली ने पिछले साल नेताओं के स्तर पर अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के समूह क्वाड में शामिल होने में भी अनिच्छा दिखाई थी ।
“शायद उनकी नौकरशाही में इसके खिलाफ कई आवाजें थीं। लेकिन जब राष्ट्रपति बाइडेन ने प्रधानमंत्री मोदी से बार-बार सीधी अपील की, तो उन्होंने यह फैसला किया कि यह उनके हित में हो ।”
हालांकि, कैंपबेल ने जोर देकर कहा कि भारत और अमेरिका को आपसी संबंधों को और मजबूत करने के लिए प्रौद्योगिकी और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में साथ-साथ काम करना चाहिए। हाल के महीनों में, नई दिल्ली और वाशिंगटन कई मुद्दों पर अलग-अलग थे, जिनमें रूसी तेल पर मूल्य सीमा और पाकिस्तान को अमेरिकी सैन्य समर्थन की बहाली के मुद्दे शामिल थे। फरवरी में यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान की शुरुआत के बाद से, नई दिल्ली ने मॉस्को के साथ अपने सैन्य और राजनीतिक संबंधों को कम करने के अमेरिका और अन्य पश्चिमी सहयोगियों के आह्वान को लगातार खारिज कर दिया है। पश्चिमी शक्तियों ने संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन से संबंधित विभिन्न प्रस्तावों पर रूस के खिलाफ मतदान करने के लिए नई दिल्ली पर दबाव डालने की भी कोशिश कर ली, लेकिन भारत ने उन सारे आह्वानों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया।
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