यूक्रेन संकट
मास्को ने डोनबास के लोगों को, खास तौर पर रूसी बोलनेवाली आबादी को, कीव के नित्य हमलों से बचाने के लिए फरवरी 2022 को विशेष सैन्य अभियान शुरू किया था।

यूक्रेन संकट का कारण और रूस के विशेष सैन्य अभियान की पार्श्वभूमि ?

24 फरवरी को, रूस ने यूक्रेन में एक विशेष सैन्य अभियानशुरू किया, ताकि देश को असैन्यकृत और अनाजीकृत किया जा सके। तब तक, कीव शासन नियमित रूप से डोनबास क्षेत्र के खिलाफ हमले कर रहा था – खास तौर पर रूसी भाषी बोलने वाली आबादी पर ।
Sputnik
हाल ही में G7 देशों द्वारा रूसी तेल पर मूल्य सीमा तय की गई है ।
इस से भारत-रूस संबंधों पर कैसा प्रभाव है?
अमेरिका की उम्मीदों और दिल्ली को अपनी ओर खींचने के उसके कई प्रयासों के बावजूद, भारत ने इन सारी गतिविधियों के प्रति एक संतुलित रवैया बनाए रखा है । और इससे भी बढ़कर, रूसी तेल की मूल्य सीमा से इनकार कर दिया है।
अमेरिकी वित्तीय बाजार डेटा फर्म Refinitiv के अनुसार, भारत नवंबर में समुद्री मार्गों के माध्यम से लगभग 40 प्रतिशत रूसी यूराल-ग्रेड तेल खरीदकर रूसी समुद्री कच्चे तेल का सबसे बड़ा वैश्विक आयातक बन गया है। इसके अलावा, भारत के विदेश मंत्रि डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ एक बैठक के दौरान रूस को "एक विश्वसनीय और समय-सिद्ध भागीदार" कहा, यह समझाते हुए कि "भारत तेल आपूर्ति के मामले में रूस के साथ स्थिर संबंधों को बनाए रखने में रुचि रखता है"।
इसके अलावा, भारत और रूस सांस्कृतिक क्षेत्र में और सैन्य क्षेत्र में भी सक्रिय रूप से एक दूसरे की एक मजबूत सहयोगी हैं, और वे संयुक्त रूसी-भारतीय ब्रह्मोस सुपरसोनिक विस्तारित रेंज क्रूज मिसाइल के निर्माण और एके-203 असॉल्ट राइफलों के निर्माण जैसी भारत-रूस संयुक्त परियोजनाओं का विकास जारी रखेंगे ।डोनबास एक ऐतिहासिक कोयला-खनन क्षेत्र है और अब इसे लुगांस्क और डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक के रूप में परिभाषित किया गया है, जो खेरसॉन और ज़ापोरोज़े क्षेत्रों के समान जनमत संग्रह के परिणामस्वरूप आधिकारिक तौर पर रूस में शामिल हो गए ।
पूर्वाग्रह और विसंगतियों के दावों को खारिज करने के लिए, स्पूत्निक आपको यूक्रेन संकट के कारणों और इसके आगे बढ़ाने की गहराइयों से जांच करने के लिए आमंत्रित करता है।

2014 में यूक्रेन में क्या हुआ?

असल में पश्चिमी मीडिया के दावों के विपरीत यूक्रेन में संघर्ष फरवरी 2022 से बहुत पहले ही शुरू हो गया था। 2008 में रूसी राजनयिकों ने यूक्रेन के नाटो में शामिल होने को रोकने के बाद, यूक्रेन के पूर्व नेता विक्टर यानुकोविच ने देश की गुटनिरपेक्ष स्थिति को बनाए रखने का रुख अपनाया था । यूक्रेन-यूरोपीय संघ के उस समझौते पर हस्ताक्षर करने के यानुकोविच के स्थगन के बाद 2014 में यूरोमैडान पर विरोधों का प्रकोप हुआ, जो यूक्रेन के ब्लॉक में प्रवेश करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता था। यानुकोविच के इस कदम से यूरोप की ओर झुकाव रखने वाले यूक्रेनियन नाराज हो गए। यह विरोध बाद में सरकार और विपक्ष के बीच एकमुश्त टकराव में बदल गया। नतीजतन, यानुकोविच को पश्चिमी राज्यों के दबाव में अपने देश से भागना पड़ा और कीव में पश्चिमी समर्थक सरकार का गठन हुआ ।नई सरकार; जो की स्पष्ट रूप से अपने पश्चिमी सहयोगियों के समर्थन से संचालित होता है उसने एक आक्रामक राष्ट्रवादी बयानबाजी की, जो की डोनबास के नागरिकों द्वारा स्वीकार नहीं की गई - मुख्य रूप से यूक्रेन के दक्षिण-पूर्व में स्थित रूसी भाषी ।
इस महापरिवर्तन के बाद, डोनबास के निवासियों ने अपने क्षेत्रों के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की, डोनबास में लुगांस्क और डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी । इस महापरिवर्तन के दो महीने बाद, कीव ने इन क्षेत्रों पर बड़े पैमाने पर हमले कराए, और फरवरी 2022 तक तकरीबन आठ साल तक ऐसे हमले जारी रहे ।
2016 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (ओएचसीएचआर) के कार्यालय की एक रिपोर्ट के अनुसार आज़ोव यानी एक नव-नाजी यूक्रेनी बटालियन डोनबास के लोगों के खिलाफ शत्रुता में लगी हुई थी - अपहरण, यातना, भिन्न प्रकार के अत्याचार और बड़े पैमाने पर लूटपाट करते रहे । इसके साथ उनके इस बर्ताव और युद्ध अपराधों के कइ सबूत हैं।

यूक्रेन में अमेरिका समर्थित तख्तापलट का विरोध

यह बटालियन अमेरिका समर्थित महापरिवर्तन का विरोध करने वाले, मैदान के प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई में कीव सरकार द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्राथमिक उपकरणों में से एक थी। गौरतलब है कि कीव ने 2015 में यूक्रेन द्वारा हस्ताक्षरित मिन्स्क समझौतों का उल्लंघन करते हुए अपने हमले जारी रखे थे। उन मिन्स्क समझौतों का उद्देश्य पूर्वी यूक्रेन में सशस्त्र संघर्ष को विराम देने की थी, किन्तु यूक्रेनी सरकार ने घोषित सिद्धांतों की अनदेखी करना चुना और इससे भी बढ़कर, लुगांस्क और डोनेट्स्क पीपुल्स रिपब्लिक की विशेष स्थिति को अपनाने में बाधा उत्पन्न की । उसी समय, 2014 में एक और बड़ी घटना हुई –यानी रूस से क्रीमिया का पुनर्मिलन। क्रीमिया यह काला सागर के उत्तरी तट पर एक प्रायद्वीप है, जहाँ नागरिकों ने बहुमत से फिर से रूस का हिस्सा बनने का चुनाव किया। यह पुनर्मिलन एक जनमत संग्रह के परिणामस्वरूप हुआ, जो "अधिनहन के बारेमें पश्चिमी राजनेताओं और मीडिया के दावों के विपरीत था।
यह ऐतिहासिक घटना यूक्रेन सरकार द्वारा प्रायद्वीप को आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए कोई अवसर प्रदान न करने की पृष्ठभूमि के तहत हुई।

फरवरी '22 को रूस ने एक विशेष सैन्य अभियान क्यों शुरू किया?

दिसंबर 2021 को, रूसी विदेश मंत्रालय ने सुरक्षा गारंटी पर रूस, अमेरिका और नाटो के बीच संधियों का मसौदा प्रकाशित किया। उस प्रस्ताव के अनुसार, नाटो को पूर्व की ओर विस्तार नहीं करना चाहिए, अपने हथियारों को 1997 की स्थिति में वापस लेना चाहिए, और रूसी सीमा के पास हथियारों की तैनाती को हटाना होगा। अमेरिका और नाटो ने रूस के प्रस्तावों को सिरे से खारिज कर दिया था । इसके परिणामस्वरूप, रूस को अपने देश की संप्रभुता की रक्षा करने और नाटो के पूर्वी विस्तारीकरण को रोकने के लिए विशेष सैन्य अभियान मजबूरन न चाहते हुए भी शुरू करना पड़ा।
विशेष सैन्य अभियान की शुरुआती में ही, दर्जनों पश्चिमी कंपनियां अपनी असहमति के संकेत के रूप में रूस से हट गईं। इनमें इकेया, एचएंडएम, बर्शका, विश्व प्रसिद्ध फास्ट फूड कैफे मैकडॉनल्ड्स, कंप्यूटर निर्माण कंपनियां एप्पल, डेल, आदि बड़ी कंपनियां शामिल हैं । इसके अलावा, अमेरिका और यूरोपीय देशों में रूसियों के प्रवेश पर निषेध लगा दिया गया था, जब तक कि उनके पास चिकित्सा उपचार या पारिवारिक मुद्दों जैसे गंभीर कारण न हों।
आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान, बाजार में कमी और तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण, उम्मीदों से परे, पश्चिमी प्रतिबंध ज्यादातर पश्चिम को ही और तथाकथित "ग्लोबल साउथ" को प्रभावित कर रहा है । उदाहरण के लिये साल के अंत से पहले ही ब्रेंट कच्चा तेल $100-$110 प्रति बैरल की कीमत तक बढ़ गया है।
हाल ही में G7 देशों द्वारा रूसी तेल पर मूल्य सीमा तय की गई है ।

इस से भारत-रूस संबंधों पर कैसा प्रभाव है?

अमेरिका की उम्मीदों और दिल्ली को अपनी ओर खींचने के उसके कई प्रयासों के बावजूद, भारत ने इन सारी गतिविधियों के प्रति एक संतुलित रवैया बनाए रखा है । और इससे भी बढ़कर, रूसी तेल की मूल्य सीमा से इनकार कर दिया है।
अमेरिकी वित्तीय बाजार डेटा फर्म Refinitiv के अनुसार, भारत नवंबर में समुद्री मार्गों के माध्यम से लगभग 40 प्रतिशत रूसी यूराल-ग्रेड तेल खरीदकर रूसी समुद्री कच्चे तेल का सबसे बड़ा वैश्विक आयातक बन गया है। इसके अलावा, भारत के विदेश मंत्रि डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ एक बैठक के दौरान रूस को "एक विश्वसनीय और समय-सिद्ध भागीदार" कहा, यह समझाते हुए कि "भारत तेल आपूर्ति के मामले में रूस के साथ स्थिर संबंधों को बनाए रखने में रुचि रखता है"।
इसके अलावा, भारत और रूस सांस्कृतिक क्षेत्र में और सैन्य क्षेत्र में भी सक्रिय रूप से एक दूसरे की एक मजबूत सहयोगी हैं, और वे संयुक्त रूसी-भारतीय ब्रह्मोस सुपरसोनिक विस्तारित रेंज क्रूज मिसाइल के निर्माण और एके-203 असॉल्ट राइफलों के निर्माण जैसी भारत-रूस संयुक्त परियोजनाओं का विकास जारी रखेंगे ।
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