कैंब्रिज विश्वविद्यालय के 27 वर्षीय पीएचडी भारतीय छात्र डॉ. ऋषि अतुल राजपोपट ने 5वीं शताब्दी में दिखाई दी व्याकरण संबंधी संस्कृत की एक समस्या को हल किया है।
एक विदेशी मीडिया ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के हवाले से इस समस्या को लेकर रिपोर्ट किया कि पाणिनि का व्याकरण, जिसे अष्टाध्यायी कहा जाता है, एक प्रणाली पर निर्भर करता है जो एक एल्गोरिथम की तरह कार्य करता है। हालांकि पाणिनि के दो या कुछ अधिक नियमों का प्रयोग अक्सर साथ-साथ किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप इन नियमों का विरोध होता है। पाणिनि ने "मेटारूल" के बारे में लिखा था, जिसे पारंपरिक रूप से लोग उस तरह समझते रहते थे कि समान शक्ति के दो नियमों के विरोध की स्थिति में वह नियम जीतता है जो व्याकरण के क्रम में दूसरा है।
हालांकि, ऋषि राजपोपट के तर्क के अनुसार, संस्कृत का अध्ययन करनेवाले लोग इस मेटारूल को लम्बे समय से गलत रूप से समझ रहे थे। उनकी मान्यता यह है कि पाणिनि का मतलब था कि अगर किसी शब्द के बाएँ और दाएँ पक्षों के लिए दो विभिन्न नियमों का प्रयोग किया जा सकता है, तो दाएँ पक्ष का नियम चुनना चाहिए।
इस समाधान का अर्थ यह है कि ऋषि राजपोपट को मालूम हुआ कि पाणिनि की "भाषा मशीन" लगभग बिना किसी अपवाद के व्याकरणिक रूप से सही शब्दों का निर्माण करती है।
पाणिनि एक संस्कृत वैयाकरण थे जिन्होंने ध्वन्यात्मकता, ध्वनि विज्ञान और आकृति विज्ञान का अध्ययन किया था। वैज्ञानिकों के अनुसार, वे ईसा पूर्व छठी और चौथी शताब्दी के बीच रहते थे। पाणिनि की प्रमुख पुस्तक का नाम अष्टाध्यायी है। इस में उन्होंने संस्कृत के बहुत व्याकरण के नियमों को समझाया था।