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विशेषज्ञ: संभव है की 2023 में भारत, चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा से सैनिक हटा लें

चीन और भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने पर सहमत हुए हैं। कोर कमांडरों की नियमित बैठकें 2022 में सीमा पर चीन-भारत परामर्श का एक महत्वपूर्ण तत्व हैं। 2023 में, भारत में विपक्ष चीन के साथ सीमा पर सुरक्षा उपायों को और कड़ी करने की मांग पे जोर देगा ।
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20 दिसंबर को, कोर कमांडरों के स्तर पर 17 वीं बैठक चीन-भारतीय सीमा के चीनी पक्ष में चुशुल-मोल्डो में आयोजित की गई थी। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्ष लद्दाख के पश्चिमी क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ जमीनी सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने पर सहमत हुए हैं। गौरतलब है कि, यह विचारों का खुला और रचनात्मक आदान-प्रदान 17 जुलाई को पिछले बैठक के बाद हुई प्रगति पर आधारित था।
सितंबर की शुरुआत में चीन और भारत ने लद्दाख में सीमा पर गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स हाइट्स के क्षेत्र में सैनिकों को हटाने का एक नया दौर आयोजित किया। सीमा से हटाए गए सैनिकों की संख्या की सूचना नहीं मिली। इस बीच, भारतीय मीडिया के आंकड़ों के अनुसार इन क्षेत्रों में दोनों तरफों से लगभग 60 हज़ार सैनिक तैनात थे।
यह वापसी 2022 में पहली थी, और वर्तमान वर्ष में सीमा पर परामर्श में मुख्य विकास में से एक थी। उसने 2021 में नामित प्रवृत्ति को जारी रखा। फरवरी 2020 की सीमा घटना के बाद दोनो पक्षों ने पहली बार अपने सैनिकों और टैंकों को पांगोंग त्सो झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से हटा लिया। अगला वरफ का पिघलना उसी वर्ष 2021 के जुलाई में आया। तब दोनो ही पक्षों ने गोगरा पोस्ट पर सैनिकों के विस्थापन पर सहमति व्यक्त की। और तब सेना भी गलवान घाटी में और चुशुल सेक्टर में कैलाश रिज की ऊंचाइयों पर एक पोस्ट से हट गई।
2022 में दोनो पक्षों ने कोर कमांडरों के स्तर पर चार दौर की बातचीत की, और जनवरी, मार्च, जुलाई और दिसंबर में मिले। इस तरह के संपर्कों की नियमितता वार्ता की उपलब्धियों में से एक है, इंस्टिट्यूट ऑफ़ वर्ल्ड इकॉनमी एंड इंटरनेशनल रिलेशन्स में दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र के समूह के प्रमुख अलेक्सेय कुप्रियानोव ने Sputnik के साथ साक्षात्कार में कहा।

कुप्रियानोव: "वार्ता का तंत्र काम करता है और मई 2020 में हवाना में झड़प की तरह नई झड़पों को रोकने में मदद करता है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में 9 दिसंबर की घटना जैसी घटनाएं सीमा पर कभी भी हो सकती है जब तक सीमा पर स्थिति पूरी तरह से हल न हो जाए। लेकिन बैठकों का तंत्र बहुत अच्छा काम कर रहा है। एक और बात यह है कि इस में किसी प्रकार की गंभीर सफलता के लिए दोनों पक्षों की राजनीतिक इच्छा और राजनीतिक निर्णय की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, वाजपेयी सरकार के पास ऐसी इच्छा और निर्णय थे।"

विशेषज्ञ अलेक्सेय कुप्रियानोव की राय के अनुसार 9 दिसंबर की घटनाओं का कारण स्थानीय जूनियर कमांडरों का फैसला था।

कुप्रियनोव: "निम्नतम स्तर के कमांडरों की पहल की भविष्यवाणी करना नामुमकिन है। बहुत सी समस्याएं इस कारण होती हैं कि किसी पक्ष के कुछ लेफ्टिनेंट या दूसरे ने खुद को अलग करने का फैसला किया। यह आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि दोनों पक्ष सीमा पर उच्चतम मनोबल को बनाए रखने की कोशिस करते हैं। यह कार्यों में आक्रामकता नहीं है, बल्कि प्रखरता है और किसी भी कीमत पर अपने क्षेत्र की रक्षा करने की इच्छा, जिसकी वजह से नियमित रूप से निम्नतम स्तर पर झड़पें शुरू होती हैं। कोई भी भविष्य की गारंटी नहीं दे सकता कि भारतीय या चीनी पक्ष का कोई सक्रिय लेफ्टिनेंट अपने सेवा उत्साह को प्रदर्शित करने का प्रयास नहीं करेगा। यह सब ऐसी दूरघटनाओं का कारण बन सकता है जो सीमा विवाद पर निपटान को बहुत धीमा कर सकती हैं।"

हालाँकि, विशेषज्ञ ने 2023 में चीन-भारतीय सीमा वार्ता तंत्र के काम को लेकर आशावादी भविष्यवाणी भी जताई।

कुप्रियानोव: "यदि लद्दाख में कोई संकट नहीं होगा, तो संभव है कि नए साल में सैनिकों की वापसी आपसी संतुष्टि के साथ समाप्त हो जाएगा। सीमा पर सन्नाटा होगा। हालाँकि, यह कहना असंभव है कि वर्ष के दौरान चीन-भारतीय सीमा पर दूरघटनाएं बिलकुल नहीं होंगी, क्योंकि 2024 में भारत में आम चुनाव होने वाले हैं। और तब सैन्य इकाइयों का यह हटाना धीमा हो सकेगा। लेकिन हमें दूसरा गलवान देखने की कम संभावना है, क्योंकि दोनों पक्ष इस सन्दर्भ में काफी सतर्क हैं। सैनिकों को हटाना पूरा करने के बाद सैनिकों की उपस्थिति के संबंध में कई विवादास्पद बिंदु होंगे। अन्यथा बाद में कम से कम अस्थायी रूप से ही सही यह विवाद ख़त्म हो सकता है।"

भारत में विपक्ष अपने चुनावी हितों के लिए चीन के खिलाफ कठोरता की कमी के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार को दोषी ठहराएगा, एलेक्सेय कुप्रियनोव ने भविष्यवाणी की है।

कुप्रियानोव: "चीन से संबंध एक ऐसा विषय है जिसका इस्तेमाल विपक्ष हमेशा सरकार के खिलाफ करता है। यह एक आम तकनीक है कि सरकार चीन के साथ सीमा पर भारतीय हितों की रक्षा करने की कम कोशिश करती है। फिलहाल, यह विषय बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, कम से कम अगले छह महीनों तक, क्योंकि राष्ट्रीय चुनाव से पहले लगभग डेढ़ साल बाकी हैं। सीमावर्ती राज्यों के चुनावों को छोड़कर यह विषय क्षेत्रीय चुनावों के दौरान कुछ खास मायने नहीं रखता है। 2023 में केवल क्षेत्रीय चुनाव होगें। संभव है कि विपक्ष इस विषय पर चुनावों की चर्चा करेगा, सितंबर से कहीं न कहीं हम सुन सकते हैं कि मोदी सरकार चीनी दिशा में बुरी तरह से काम कर रही है, भारत के हितों की रक्षा कर नहीं पा रही है, आदि। यदि सीमा पर कोई नई घटनाएं नहीं होती हैं, तो, सबसे अधिक संभावना है, सरकार इस विषय को राजनीतिक एजेंडे से हटा पाएगी। लेकिन सीमा पर स्थिति पर ध्यान कमजोर नहीं होगा।"

17वें दौर की बातचीत के दौरान पक्ष निकट संपर्क में रहने, सैन्य और राजनयिक चैनलों के माध्यम से बातचीत बनाए रखने और जल्दी से पारस्परिक रूप से सीमा समस्या के शेष मुद्दों के स्वीकार्य समाधान की तलाश करने पर सहमत हुए।
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