कुप्रियानोव: "वार्ता का तंत्र काम करता है और मई 2020 में हवाना में झड़प की तरह नई झड़पों को रोकने में मदद करता है। अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में 9 दिसंबर की घटना जैसी घटनाएं सीमा पर कभी भी हो सकती है जब तक सीमा पर स्थिति पूरी तरह से हल न हो जाए। लेकिन बैठकों का तंत्र बहुत अच्छा काम कर रहा है। एक और बात यह है कि इस में किसी प्रकार की गंभीर सफलता के लिए दोनों पक्षों की राजनीतिक इच्छा और राजनीतिक निर्णय की ज़रूरत है। उदाहरण के लिए, वाजपेयी सरकार के पास ऐसी इच्छा और निर्णय थे।"
कुप्रियनोव: "निम्नतम स्तर के कमांडरों की पहल की भविष्यवाणी करना नामुमकिन है। बहुत सी समस्याएं इस कारण होती हैं कि किसी पक्ष के कुछ लेफ्टिनेंट या दूसरे ने खुद को अलग करने का फैसला किया। यह आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि दोनों पक्ष सीमा पर उच्चतम मनोबल को बनाए रखने की कोशिस करते हैं। यह कार्यों में आक्रामकता नहीं है, बल्कि प्रखरता है और किसी भी कीमत पर अपने क्षेत्र की रक्षा करने की इच्छा, जिसकी वजह से नियमित रूप से निम्नतम स्तर पर झड़पें शुरू होती हैं। कोई भी भविष्य की गारंटी नहीं दे सकता कि भारतीय या चीनी पक्ष का कोई सक्रिय लेफ्टिनेंट अपने सेवा उत्साह को प्रदर्शित करने का प्रयास नहीं करेगा। यह सब ऐसी दूरघटनाओं का कारण बन सकता है जो सीमा विवाद पर निपटान को बहुत धीमा कर सकती हैं।"
कुप्रियानोव: "यदि लद्दाख में कोई संकट नहीं होगा, तो संभव है कि नए साल में सैनिकों की वापसी आपसी संतुष्टि के साथ समाप्त हो जाएगा। सीमा पर सन्नाटा होगा। हालाँकि, यह कहना असंभव है कि वर्ष के दौरान चीन-भारतीय सीमा पर दूरघटनाएं बिलकुल नहीं होंगी, क्योंकि 2024 में भारत में आम चुनाव होने वाले हैं। और तब सैन्य इकाइयों का यह हटाना धीमा हो सकेगा। लेकिन हमें दूसरा गलवान देखने की कम संभावना है, क्योंकि दोनों पक्ष इस सन्दर्भ में काफी सतर्क हैं। सैनिकों को हटाना पूरा करने के बाद सैनिकों की उपस्थिति के संबंध में कई विवादास्पद बिंदु होंगे। अन्यथा बाद में कम से कम अस्थायी रूप से ही सही यह विवाद ख़त्म हो सकता है।"
कुप्रियानोव: "चीन से संबंध एक ऐसा विषय है जिसका इस्तेमाल विपक्ष हमेशा सरकार के खिलाफ करता है। यह एक आम तकनीक है कि सरकार चीन के साथ सीमा पर भारतीय हितों की रक्षा करने की कम कोशिश करती है। फिलहाल, यह विषय बहुत महत्वपूर्ण नहीं है, कम से कम अगले छह महीनों तक, क्योंकि राष्ट्रीय चुनाव से पहले लगभग डेढ़ साल बाकी हैं। सीमावर्ती राज्यों के चुनावों को छोड़कर यह विषय क्षेत्रीय चुनावों के दौरान कुछ खास मायने नहीं रखता है। 2023 में केवल क्षेत्रीय चुनाव होगें। संभव है कि विपक्ष इस विषय पर चुनावों की चर्चा करेगा, सितंबर से कहीं न कहीं हम सुन सकते हैं कि मोदी सरकार चीनी दिशा में बुरी तरह से काम कर रही है, भारत के हितों की रक्षा कर नहीं पा रही है, आदि। यदि सीमा पर कोई नई घटनाएं नहीं होती हैं, तो, सबसे अधिक संभावना है, सरकार इस विषय को राजनीतिक एजेंडे से हटा पाएगी। लेकिन सीमा पर स्थिति पर ध्यान कमजोर नहीं होगा।"