शीत युद्ध 2.0: वर्तमान संकट 20वीं सदी के संकट से अधिक खतरनाक क्यों है?
यूक्रेन में चल रहे नाटो-रूस छद्म विवाद के दौरान अधिक पश्चिमी मीडिया आउटलेट्स, इतिहासकार और थिंक टैंक के कर्मचारी इस संकट को "नया शीत युद्ध" कहने लगे। विंस्टन चर्चिल के 1946 के आयरन कर्टन भाषण की वर्षगांठ के मौके पर हथियारों पर नियंत्रण के प्रमुख रूसी विशेषज्ञ ने समझाया कि शीत युद्ध का 'अगला चरण' ज्यादा खतरनाक क्यों है।
Sputnik5 मार्च को विंस्टन चर्चिल के 1946 के आयरन कर्टन भाषण की वर्षगांठ है।
1946 के वसंत में पूर्व ब्रिटिश प्रधान मंत्री विंस्टन चर्चिल ने मिसौरी के फुल्टन में उसके बारे में बोलने के लिए वेस्टमिंस्टर कॉलेज की यात्रा की थी, कि "पूरे महाद्वीप में आयरन कर्टन उतरा है, जो स्वतंत्र राष्ट्रों से सोवियत क्षेत्र को अलग करता है।“
बहुत पश्चिमी विशेषज्ञों ने चर्चिल के इस भाषण को ऐतिहासिक तरीके से शीत युद्ध की शुरुआत समझते हैं। इसके केवल एक महीने पहले यानी फरवरी 1946 में सोवियत संघ के नेता जोसेफ स्टालिन ने द्वितीय विश्व युद्ध के कारणों और मित्र राष्ट्रों की जीत के कारणों को लेकर मास्को में भाषण दिया था। उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन को महान, "स्वतंत्रता-प्रेमी देश" कहकर और नाजी जर्मनी और मिलिटरीस्ट जापान की हार में उनकी बड़ी भूमिका की प्रशंसा करके इस बात पर जोर दिया था कि मास्को की युद्ध के बाद की प्राथमिकताएं पुनर्निर्माण और शांतिपूर्ण आर्थिक विकास होंगी। उन्होंने पश्चिम के साथ नए टकराव की कोई बात नहीं की थी। हालांकि, स्टालिन ने चेतावनी दी थी कि जिन ताकतों की वजह से द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ था , वे यानी एकाधिकारवादी पूंजी और साम्राज्यवाद एक नए संघर्ष को शुरू करने की साजिश कर सकती हैं।
इसके बाद चार दशकों तक पश्चिमी और पूर्वी राजनीतिक,आर्थिक और सैन्य गुट एक दूसरे से विवाद करते रहे।
1980 के दशक के अंत से और 1990 के दशक के दौरान तनाव में बड़ी कटौती हुई, क्योंकि सोवियत और रूसी नेताओं मिखाइल गोर्बाचेव और बोरिस येल्तसिन ने तनाव कम करने, विश्वास बढ़ाने और शीत युद्ध को समाप्त करने के लिए कई (अक्सर एकतरफा) कदम उठाए। जरूर उन दोनों ने उम्मीद की कि पश्चिम शीत युद्ध की मानसिकता से इनकार करके और शायद नाटो को हटाकर जवाब देगा, जैसे 1991 की सर्दियों में सोवियत संघ के नेतृत्व में वारसा संधि समाप्त किया गया था।
लेकिन अमेरिका और उसके सहयोगियों ने यह करने की कोई इच्छा नहीं जताई, और इसके विपरीत रूस की सीमाओं की ओर नाटो का विस्तार करना शुरू किया। इस पर विश्वास करते हुए कि यह गठबंधन रूस-विरोधी नहीं है, मास्को ने पूछा कि क्या उसको इसमें शामिल होने की अनुमति दी जाएगी, लेकिन उसको कोई जवाब नहीं मिला।
पूर्व वारसा संधि के सदस्यों, तीन पोस्ट-सोवियत गणराज्यों और कई बाल्कन देशों को नाटो में शामिल करने के बाद 2014 में पश्चिम ने यूक्रेन पर अपना नजर डाली, जो मास्को के सबसे बड़े आर्थिक और व्यापारिक भागीदारों में से एक था और जिसके साथ रूस सदियों से सामान्य इतिहास साझा करता है और सांस्कृतिक, भाषाई और अन्य संबंधों को बढ़ाता रहा है । इस प्रकार वर्तमान में घटित संकट शुरू हुआ।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन और विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव सहित रूसी अधिकारियों ने यूक्रेनी संकट को रूस के खिलाफ नाटो का "छद्म युद्ध" समझते हैं। अधिकतर पश्चिमी पत्रकार और विशेषज्ञ उसको नया शीत युद्ध कहते हैं।
द्वितीय शीत युद्ध: यह क्यों ज्यादा हानिकारक है?
"हाँ, यह सैद्धांतिक रूप से कहा जा सकता है कि हम अब शीत युद्ध की स्थिति में हैं। हम कह सकते हैं कि यह शीत युद्ध का दूसरा चरण है, हालांकि इन दोनों की वजहें पूरी तरह से अलग हैं,” रूसी सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट-जनरल और 2001 से 2009 तक हथियारों पर नियंत्रण के रूस के शीर्ष विशेषज्ञ एवगेनी बुझीन्स्कीय कहते हैं।
लेकिन वर्तमान स्थिति “तथाकथित शीत युद्ध की तुलना में यानी 1960 और 1970 के दशकों के दौरान और 1980 के दशक के मध्य तक की तुलना में ज्यादा खराब है। उस समय एक विचारधारा थी। समाजवादी गुट था और 'स्वतंत्र लोकतांत्रिक पश्चिम' था। वह वैचारिक टकराव था,“ मास्को में स्थित थिंक टैंक यानी रूसी सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च के अध्यक्ष के रूप में काम करनेवाले सेवानिवृत्त अधिकारी ने साक्षात्कार में Sputnik को बताया।
आज का संकट वैचारिक नहीं है, बुझीन्स्कीय कहते हैं। रूस और पश्चिमी देश दोनों खुद को बाजार अर्थव्यवस्थाओं और लोकतंत्रों के रूप में दिखाते हैं, हालांकि वाशिंगटन के विपरीत मास्को आर्थिक, राजनीतिक या सैन्य तरीकों की मदद से विदेशों में 'लोकतंत्र के प्रचार' पर काम नहीं करता है।
सेवानिवृत्त जनरल के अनुसार, आज का संकट "अस्तित्ववादी संघर्ष" है, जिसके दौरान अमेरिका "अपने नेतृत्व के लिए लड़ रहा है, दुनिया में अपने स्तर के लिए लड़ रहा है", जबकि रूस पश्चिम की "रेड लाइंस", सुरक्षा वगैरह के कारण पश्चिम का सामना कर रहा है।
"अमेरिकी लोगों को 'अमेरिकी नेतृत्व' पर बात बहुत पसंद है, और वे हरसंभव तरीकों से इसका बढ़ावा देते रहते हैं। रूस की बात करते हुए, 2007 में राष्ट्रपति पुतिन ने स्पष्ट रूप से समझाया था कि एक मालिक की दुनिया, एक विश्व आधिपत्य की दुनिया हमारे लिए अस्वीकार्य है, और हम इस से कभी सहमत नहीं होंगे," बुझीन्स्कीय ने कहा।
"इसलिए जॉर्जिया और यूक्रेन में वे सब क्रांतियां हुई थीं, वे सब अमेरिका द्वारा आयोजित की गई थीं। हमने इन सबका कड़ा विरोध किया, लेकिन जॉर्जिया की स्थिति में हमने चीजों को रोकने और रीसेट की घोषणा करने की कोशिश की। यूक्रेन सच्चाई का वही क्षण बन गया। हमारे लिए यूक्रेन, में “रेड लाइन” की बात का उपयोग करना पसंद नहीं करता, लेकिन सिद्धांतिक रूप में कहते हुए यूक्रेन मानसिक रूप में हमारे लिए जरूर रेड लाइन है। या तो वहाँ मिसाइलें रखी गई हैं या तो नहीं। या तो वह नाटो का सदस्य बना है या तो नहीं। लेकिन यह विचार हमारे लिए अस्वीकार्य है कि वह पश्चिम का विश्वस्त सहयोगी बनने और खुद को रूस से दूर करने की तैयारी कर रहा था," बुझीन्स्कीय ने कहा।
अवमानना जनित समस्याएं
एवगेनी बुझीन्स्कीय के अनुसार मौजूदा संकट का एक कारण अमेरिकी नीति के निर्माताओं की मानसिकता, रियायतें देने की उनकी अनिच्छा और दूसरे पक्ष के हितों को स्वीकार करने से इनकार करना है।
"अमेरिकियों को कुछ समझाना आम तौर पर बहुत मुश्किल है। अमेरिकियों के साथ संवाद करने और उनके साथ बातचीत करने के दशकों के अपने अनुभव के अनुसार मैं कह सकता हूँ कि वे किसी भी कदम को स्वीकार करने में बहुत ही अनिच्छुक हैं, जिसके कारण तथाकथित तौर पर उनकी अग्रणी स्थान को नुकसान पहुँचता है। याद दिलाऊँ कि हिलेरी क्लिंटन ने एक बार कहा था, और मैं यह सांकेतिक शब्दों में बदलकर कहूँगा, कि सोवियत संघ की बहाली को रोकने के लिए अमेरिका सब कुछ करने के लिए तैयार है। इसलिए, वे यह समझाने के हमारे सभी प्रयासों को नजरअंदाज करते हैं कि यूक्रेन हमारे लिए पड़ोसी राज्य से अधिक है," बुझीन्स्कीय ने कहा।
क्यूबाई मिसाइल संकट से अधिक हानिकारक
बुझीन्स्कीय सोचते हैं कि यूक्रेनी संकट अक्टूबर 1962 के क्यूबाई मिसाइल संकट से ज्यादा खतरनाक है, जिसके दौरान दुनिया परमाणु युद्ध के कगार पर पहुँच गई थी।
"यह दो कारणों से ज्यादा खतरनाक है। सबसे पहले, क्यूबाई मिसाइल संकट का परिणाम दो लोगों यानी केनेडी और ख्रुश्चेव और उनके सलाहकारों पर निर्भर करता था। शायद अगर आज ये दो लोग सिर्फ पुतिन और बिडेन होते, तो चीजें ज्यादा आसान होतीं।”
वैश्विक टकराव में बदलने यूक्रेनी संकट का खतरा इस तथ्य से संबंधित है कि यह "एस्कलैशन लैडर" की स्थिति में चल रहा है, जब नाटो लगातार नए और अधिक उन्नत हथियारों की हर आपूर्ति करते हुए रूस की प्रतिक्रिया पर ध्यान देता है, बुझीन्स्कीय ने बताया।
"अभी वे लड़ाकू विमानों की आपूर्ति पर चर्चा कर रहे हैं। यूक्रेनियन उनकी मांग कर रहे हैं। मैं केवल बाइडन के सामान्यबोध की उम्मीद करता हूँ लेकिन यह उनसे स्थिरबुद्धिता की उम्मीद करना उचित नहीं है, क्योंकि उनकी मानसिक स्थिति कुछ अस्थिर है, मेरी राय में, लेकिन इस बात की उम्मीद है कि उनको 1970 और 1980 के दशकों की स्मृति है,वे शीत युद्ध के दौरान शारीरिक रूप से बढ़ रहे थे और राजनेता के रूप में लोकप्रिय बन रहे थे। इसलिए, वे ये अवश्य समझते हैं कि यह सब कैसे समाप्त हो सकता है।"
यूक्रेन में पश्चिमी लड़ाकू विमानों को भेजने को लेकर बुझीन्स्कीय ने कहा कि "विमान टैंक नहीं है। प्रत्येक उड़ान से पहले और उसके बाद में इसका निरीक्षण करने की आवश्यकता होती है।अगर यह दुश्मन के प्रहार से प्रभावित होता है, तो इसकी मरम्मत उचित एर्फील्ड में करना चाहिए। इसके लिए बेस बनाना होगा। रूसी हमलों की स्थिति में ऐसा बेस बनाने का कोई अर्थ नहीं है। इसका मतलब है कि उन्हें पोलैंड, रोमानिया, स्लोवाकिया और अन्य पड़ोसी देशों में किसी एयरफील्ड पर तैनात किया जाएगा। अगर कोई विमान पोलैंड में एर्फील्ड से उड़ता है, यूक्रेन में रूसी सेना पर हमला करता है और इस एर्फील्ड में लौटता है, तो मैं पूरी तरह से यानी 90 प्रतिशत तक निश्चित हूँ कि हमें पोलिश ऐरफील्डस पर हमले करने पड़ेंगे । मुझे लगता है कि अमेरिका समझता है कि इसका अंत कैसे हो सकता है।पर स्थिति यही है।“
आज रूस और नाटो के बीच सीधे टकराव का खतरा न केवल मौजूद है, बल्कि "शीत युद्ध के दौरान की तुलना में काफी अधिक है," बुझीन्स्कीय ने अपना डर जताते हुए कहा। इसके साथ उन्हों ने बताया कि "अमेरिका और रूस के सशस्त्र बलों के बीच कोई भी सीधा टकराव वैश्विक विध्वंस करने वाला होगा, आपसी विनाशकारक होगा।"
बुझीन्स्कीय के अनुसार एक अन्य समस्या यह भी है कि वर्तमान विवाद क्यूबाई मिसाइल संकट जैसा नहीं है, बल्कि यह वास्तविक रूप से और भी ज्वलंत विवाद है, यह रूस और यूक्रेन के बीच पश्चिमी समर्थित छद्म विवाद है।
“मान लीजिए कि पुतिन और बाइडन समझौते पर पहुँचते हैं। वे किस बात से सहमत हो सकते हैं? जो चार क्षेत्र रूस का हिस्सा बने, वे हमारे हैं, हम उन्हें नहीं देंगे। बाइडेन क्या कहेंगे? 'ज़रूर यार, मैं सहमत हूँ, हम रुकेंगे?’ मुझे लगता है कि यह असंभव है। और यूक्रेनियन कहेंगे 'हम लड़ना चाहते हैं', और पोल्स और लिथुआनियाई और एस्टोनियाई लोग रोते हुए कहेंगे कि 'यह कैसे हो सकता है? [रूस की] रणनीतिक हार कहां है जिसका आपने वादा किया था?’ मुद्दा यही है। क्यूबाई मिसाइल संकट के विपरीत इस विवाद में बहुत से अन्य पक्ष भी शामिल हैं,” बुझीन्स्कीय ने कहा।
सामरिक गतिरोध
Sputnik ने न्यू स्ट्रेटेजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी (नई START) पर बुझीन्स्कीय के विचार से संबंधित सवाल पूछा, जिसे रूस ने पिछले महीने निरीक्षणों में समस्याओं और रूस के रणनीतिक विमानन की एयरबेस पर यूक्रेनी ड्रोनों द्वारा हमलों के प्रयास में अमेरिकी सहायता का हवाला देते हुए निलंबित कर दिया था।
बुझीन्स्कीय ने कहा कि वे सोचते हैं कि नई START बहुत अच्छा समझौता है। ऐसा विचार था कि 'हमें इन समझौतों की आवश्यकता क्यों है?' हमें उनकी आवश्यकता इसलिए है क्योंकि समझौतों की मदद से हमारे पास और अमेरिका के पास एक-दूसरे की परमाणु सामरिक क्षमता के आकलन का अनुमान है।
इसके साथ बुझीन्स्कीय ने कहा कि इस समझौते को बंद करने के मास्को के निर्णय को वर्तमान स्थिति में समझना संभव है, क्योंकि अमेरिकी पक्ष ने प्रतिबंधों, वीजा प्रतिबंधों, रूसी विमानों के लिए हवाई क्षेत्र को बंद करने की स्थिति में रूसी निरीक्षकों के लिए प्रभावी रूप से अपना कार्य करना असंभव बनाया है और क्योंकि अमेरिका की मदद से रूस के रणनीतिक विमानन के एयरबेस पर यूक्रेनी ड्रोनों के हमले का प्रयास भी हुआ है ।
नई START के स्थान पर एक नई संधि को लेकर बुझीन्स्कीय का यह मानना है कि इस स्तर पर इसकी संभावनाएं "बहुत अस्पष्ट" हैं। सेवानिवृत्त जनरल कहते हैं कि नया समझौता करने में असफल होना दोनों पक्षों को प्रभावित करेगा और अनिवार्य रूप से हथियारों की नवीन प्रतिस्पर्धा को जन्म देगा ।
"1960 के दशक की तरह हथियारों की दौड़ महंगी और अनावश्यक है, जब प्रत्येक देश के पास 30 हजार वारहेयड्स थे। लेकिन कुछ इसी तरह की हथियारों की प्रतिस्पर्धा होगी, ” विशेषज्ञ ने अंत में कहा।