राजनीति
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कौन है अतीक अहमद जिसे 2006 के अपहरण मामले में मिली उम्रकैद?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस केस में कुछ लोग उमेश पाल को अगवा कर अतीक के कार्यालय ले गए जहां उन्होंने उसकी रात भर पिटाई की और अगले दिन कोर्ट में माफिया के पक्ष में गवाही दिलवाई। उस वक्त उमेश पाल जिला पंचायत का सदस्य था। घटना के बाद धूमनगंज थाने में तत्कालीन सांसद अतीक अहमद, उसके भाई अशरफ, दिनेश पासी, अंसार और सौलत हनीफ के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था।
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भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के प्रयागराज की अदालत ने गैंगस्टर अतीक अहमद के साथ दोनों को 17 साल पुराने उमेश पाल अपहरण मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई, वहीं अतीक अहमद के भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ सहित अन्य सात लोगों को बरी कर दिया गया।
इससे पहले उत्तर प्रदेश पुलिस अहमद को गुजरात की जेल से सड़क के रास्ते सोमवार को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज लेकर आई थी, पूर्व सांसद और पांच बार विधायक रहें अहमद पर हत्या और अपहरण सहित कम से कम 100 आपराधिक मामले दर्ज हैं।
इस साल फरवरी के महीने में उमेश पाल की प्रयागराज में दिन दहाड़े हत्या कर दी गई, इस वारदात में पाल को सुरक्षा दे रहे उत्तर पुलिस के दो जवान भी मारे गए थे। उमेश, 2005 में बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजू पाल की हत्या के मामले में एक प्रमुख गवाह था।

कौन है अतीक अहमद?

उत्तर प्रदेश के नामी गैंगस्टर से नेता बने अतीक अहमद ने अपनी राजनीतिक रास्ते की शुरुआत 1989 में की जब उसने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर इलाहाबाद पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से विधायक सीट जीती। यहीं से अहमद ने अपनी जीत की हैट्रिक लगाई।
उसके बाद वह समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल हो गया। अतिक ने 1996 में सपा से अपना लगातार चौथा चुनाव जीता। तीन साल वह 'अपना दल' नाम के राजनीतिक दल में शामिल हो गया था। 2002 में एक बार फिर उसने अपनी सीट पर फिर से कब्जा कर लिया। चुनाव जीतने के एक ही साल में वह सपा में लौट आया और 2004 में फूलपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद का चुनाव भी अपने नाम कर लिया था।
खबरों के मुताबिक इलाहाबाद पश्चिम सीट के लिए 2005 में हुए एक विधानसभा उपचुनाव में राजू पाल ने अहमद के भाई अशरफ को हरा दिया था। माना जाता है कि यह अहमद परिवार के लिए एक बड़ा नुकसान था क्योंकि 2004 के आम चुनावों में अतीफ के इलाहाबाद से लोकसभा सीट जीतने के बाद यह सीट खाली हो गई थी।
25 जनवरी 2005 को सुलेमसराय में तत्कालीन विधायक राजू पाल की उनके घर के पास गोली मारकर उस वक्त हत्या कर दी गई जब वह अपने सहयोगी संदीप यादव और देवी लाल के साथ एक अस्पताल से लौट रहा था। इसके बाद राजू की पत्नी ने अतीक, अशरफ और सात अज्ञात लोगों के खिलाफ दंगा, हत्या के प्रयास, हत्या और आपराधिक साजिश के आरोप में प्राथमिकी आरोप दर्ज कराई और अतीक के लिए यह सबसे बड़ा झटका था।
मीडिया के मुताबिक राजनीतिक और पुलिस के दबाव के कारण अतीक अहमद ने आखिरकार 2008 में आत्मसमर्पण कर दिया, और चार साल बाद ही वह बाहर आ गया। दो साल बाद उसने सपा के टिकट पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन वह हार गया। इसके बाद उनके हालत और खराब हो गए जब उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनके आपराधिक रिकॉर्ड के प्रचार के कारण अहमद से खुद को दूर कर लिया।
पुलिस ने फरवरी 2017 में अतीक अहमद को प्रयागराज में सैम हिग्गिनबॉटम कृषि, प्रौद्योगिकी और विज्ञान विश्वविद्यालय के कर्मचारियों के साथ मारपीट करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहने के बावजूद, अहमद ने 2019 में वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा और 855 वोट हासिल भी कर लिए।
अहमद को जून 2019 में उत्तर प्रदेश की जेल में रहने के दौरान रियल एस्टेट व्यवसायी मोहित जायसवाल के अपहरण और मारपीट के आरोप में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद गुजरात की साबरमती केंद्रीय जेल में स्थानांतरित कर दिया गया ।
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