विपक्षी दलों ने बुधवार को लोक सभा में पीएम मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, इस तथ्य के बावजूद कि संख्या परीक्षण में उनके विफल होने की संभावना है।
वस्तुतः लोक सभा में विपक्षी दलों के 150 से कम सदस्य हैं, इसलिए अविश्वास प्रस्ताव में विपक्षी पार्टियों की हार निश्चित है। साथ ही, निचले सदन में बहस के दौरान उन्हें उतना समय नहीं मिल पाएगा, क्योंकि सदन में पार्टियों की संख्या के अनुसार समय आवंटित किया जाता है।
यद्यपि, विपक्षी दलों का उद्देश्य मणिपुर मुद्दे को लेकर सरकार पर दबाव डालना है ताकि केंद्रीय गृह मंत्री के बजाय प्रधानमंत्री को संसद में इस मामले पर बात करने पर मजबूर करे।
विचारणीय है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को उन विपक्षी नेताओं की आलोचना की जो मांग कर रहे थे कि पीएम मोदी मणिपुर में जारी हिंसा पर सदन में बोलें।
लोक सभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा
लोक सभा के नियमों के अनुसार, अविश्वास का नोटिस पेश किए जाने के बाद, इसे दिन के कामकाज में सूचीबद्ध किया जाना चाहिए और सदन में चर्चा के लिए लोक सभा में कम से कम 50 सांसदों को इसका समर्थन करना होगा। इसका आकलन करने के बाद लोक सभा अध्यक्ष चर्चा के लिए तारीख और समय आवंटित करेंगे।
इस बीच बुधवार को कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने लोक सभा में पीएम मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दाखिल किया। कांग्रेस के अलावा भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने भी लोक सभा में पीएम मोदी सरकार के खिलाफ ऐसा ही प्रस्ताव पेश किया। लोक सभा स्पीकर ने प्रस्ताव पर चर्चा कराने पर सहमति जताई है।
बता दें कि मानसून सत्र में मणिपुर मुद्दे पर विपक्षी दलों द्वारा व्यवधान और उग्र विरोध देखा गया क्योंकि उन्होंने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से मणिपुर में हिंसा पर बयान देने और चर्चा की मांग की।
विचारणीय है कि साल 2018 में भी मौजूदा मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। हालाँकि, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इस प्रस्ताव को 325 वोटों से हरा दिया।