कैटो इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका में रोजगार-आधारित ग्रीन कार्ड बैकलॉग (रोजगार के लिए अमेरिका में प्रवेश के आवेदकों की प्रतीक्षा सूची), विशेषतः भारतीयों के लिए, सचमुच चिंताजनक हो गया है। वर्तमान में 10.7 लाख भारतीय बैकलॉग में फंसे हुए हैं, जो ईबी-2 और ईबी-3 श्रेणियों में प्रसंस्करण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अनुमानित प्रतीक्षा समय 134 वर्ष है।
2023 में रोजगार-आधारित ग्रीन कार्ड बैकलॉग 18 लाख मामलों की रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। गणना से यह स्पष्ट हो जाता है कि 1.34 लाख भारतीय बच्चे ग्रीन कार्ड प्राप्त करने से पहले ही बूढ़े हो सकते हैं । ईबी-2 और ईबी-3 श्रेणियों में नए भारतीय आवेदकों के लिए बैकलॉग उम्र भर का है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 424 हज़ार आवेदक प्रतीक्षा करते समय मर सकते हैं।
कैटो इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर डेविड जे बियर ने भारतीय मीडिया से कहा, "बैकलॉग में भारतीयों के 1.1 मिलियन मामले टूटी हुई प्रणाली का अधिकांश बोझ उठाते हैं। भारत के नए आवेदकों को जीवन भर इंतजार करना होगा, और ग्रीन कार्ड प्राप्त करने से पहले 400 हज़ार से अधिक लोग मर जाएंगे।"
आधे से अधिक बैकलॉग वाले ईबी‑2 श्रेणी में हैं, जिसमें उन्नत डिग्री धारक सम्मिलित हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कम से कम स्नातक की डिग्री वाले कर्मचारियों के लिए अन्य 19 प्रतिशत ईबी‑3 श्रेणी में हैं।
एच-4 वीज़ा पर आश्रित बच्चे जब 21 वर्ष की आयु होने पर वीजा पात्रता खो देते हैं। इन बच्चों को अक्सर प्रलेखित स्वप्नदर्शी कहा जाता है। इसका हल करने के लिए कुछ लोग एफ-1 छात्र वीजा के लिए आवेदन करते हैं, लेकिन उन्हें सीमित काम के अवसरों और उच्च शुल्क जैसी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। इस हाल में जो भारतीय लोग अमेरिका में बड़े हो गए हैं, वे अपने वतन में स्व-निर्वासन का निर्णय भी कर सकते हैं।
अमेरिका की विचित्र आव्रजन नीति इसके लिए उत्तरदायी है। इसके अंतर्गत अमेरिका रोजगार-आधारित आवेदकों के लिए 7% प्रति-देश सीमा सिद्धांत के साथ सालाना केवल 140,000 ग्रीन कार्ड प्रदान करता है। यह प्रति-देश सीमा प्रतिकूल रूप से भारतीय नागरिकों को प्रभावित करती है।
बियर ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, " चीनी और भारतीय लोगों की संख्या बैकलॉग में सबसे अधिक है, यह प्रति-देश सीमा का परिणाम है जिसके अंतर्गत ग्रीन कार्ड प्रत्येक देश में लंबित आवेदकों की संख्या के अनुपात में जारी नहीं किए जाते हैं, बल्कि मनमाने ढंग से प्रति राष्ट्र 7% तक सीमित होते हैं।