विश्व भर में महिलाओं को कदम-कदम पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और वे लगातार दुर्व्यवहार के डर में रहती हैं, चाहे वह घरेलू हिंसा हो, यौन उत्पीड़न हो, अपहरण हो या हत्या हो।
भारतीय सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भारत में महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा में चिंताजनक वृद्धि के कारणों पर प्रकाश डाला और इस ‘सामाजिक’ बुराई से निपटने और सभी के लिए एक सुरक्षित स्थान बनाने के लिए प्रभावी रणनीतियों की प्रस्तुतिकरण किया ।
महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा: डेटा
महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा दुनिया भर में मानवाधिकारों का व्यापक स्तर पर गम्भीर उल्लंघन बनी हुई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग 73 करोड़ महिलाएं या कहें तो तीन में से एक महिला अपने पूरे जीवन काल में कम से कम एक बार शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई हैं।
राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के आंकड़ों के अनुसार 2021 में भारत में महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा के अपराध के 428,278 मामले दर्ज किए गए जबकि 2016 में 338,954 मामले दर्ज किए गए थे। यह महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के अपराध के दर्ज किए मामले में 25,35 प्रतिशत की बढ़ोतरी को दिखाता है।
वूमेन पावर कनेक्ट की अध्यक्ष रंजना कुमारी के अनुसार घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, उत्पीड़न और दहेज संबंधी हिंसा जैसे मुद्दे सांस्कृतिक मानदंडों, कमजोर कानूनी ढांचे और सामाजिक असमानताओं के कारण बने हुए हैं।
रंजना कुमारी ने कहा, “गहराई तक जड़ जमे पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण हिंसा को बढ़ावा देते हैं जबकि कानूनी ढांचे में प्रणालीगत अपर्याप्तता और अपराधियों पर वित्तीय निर्भरता महिलाओं को अपमानजनक स्थितियों में फंसाती है। सामाजिक कलंक और विक्टिम ब्लेमिंग पीड़ितों को चुप करा देता है और हिंसा के चक्र को कायम रखता है।”
घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी
आईएस लॉ ऑफिस की मैनेजिंग पार्टनर इशानी शर्मा ने जोर देकर कहा कि घरेलू हिंसा एक गंभीर समस्या बनी हुई है। राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) के आंकड़ों के अनुसार 2022 में ‘घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिलाओं की सुरक्षा’ की श्रेणी के अंतर्गत 6,900 से अधिक शिकायतें दर्ज की गईं।
इशानी शर्मा ने रेखांकित किया कि घरेलू हिंसा NCW द्वारा दर्ज की गई सभी 30,900 से अधिक शिकायतों का लगभग 23 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करती है।
उन्होंने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, “पितृसत्तात्मक समाजों में, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पुरुषों और महिलाओं के मध्य असमान शक्ति संबंधों की अभिव्यक्ति है... बचपन से ही, युवा लड़कियों को अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में शिक्षा तक कम पहुंच दी जाती है।”
महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा को कैसे समाप्त करें?
प्रसिद्ध तलाक के विशेषज्ञ वकील वंदना शाह ने कहा, “महिलाओं को उस शक्ति को अनुभव करना चाहिए जो आत्म-प्रेम से आता है। जिस क्षण हम बाहर से समर्थन की खोज करना बंद कर देंगे और अपने लिए स्टैंड लेंगे, तभी हिंसा समाप्त हो जाएगी। महिलाओं को स्वयं से कहना चाहिए कि किसी भी रूप में हिंसा स्वीकार्य नहीं है।”
वहीं, रंजना कुमारी ने कहा कि वास्तविक प्रगति के लिए एक व्यापक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है जो सामाजिक दृष्टिकोण और कानूनी ढांचे दोनों को ध्यान में रखे।
उन्होंने समझाया, “महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण के लिए निरंतर सामूहिक कार्रवाई आवश्यक है। संकटकालीन हेल्पलाइन जैसी सहायता प्रणालियाँ महत्वपूर्ण रही हैं और #MeToo जैसे सामाजिक आंदोलनों ने बातचीत को बढ़ावा दिया है। लेकिन महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा से मुक्त समाज के लिए व्यवस्थागत कानूनी सुधार और सांस्कृतिक परिवर्तन सहित और व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है।
उन्होंने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा कि हालांकि कानूनी सुधार और जागरूकता अभियान जैसी पहलें प्रगति दिखाती हैं, इसकी कार्यान्वयन चुनौतियां बनी हुई हैं और इसमें समय लगता है कि प्रतिगामी मानसिकता को परिवर्तित किया जाए और लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया जाए।