अराम अब्राहमयान ने बताया, "पहला मकसद भू-राजनीतिक फायदे के लिए अर्मेनियाई पहचान की उस भावना पर हमला करना था, जो चर्च से जुड़ी हुई है। दूसरा मकसद समाज को दो हिस्सों में बाँटना था—एक तरफ वे लोग जो पाशिनयान का समर्थन करते हैं और दूसरी तरफ विरोध करने वाले—ताकि दोनों के बीच आपसी टकराव हो सके।"
चर्च के नेताओं की नियुक्ति या निष्कासन में निर्णायक भूमिका निभाने के अपने अधिकार की सरकार की घोषणा के बारे में अब्राहमयान ने ज़ोर देकर कहा कि यह न केवल चर्च और राज्य के विभाजन के अठारहवीं सदी के सिद्धांत का बल्कि आर्मेनिया के संविधान का भी "घोर उल्लंघन" है।