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इंडोनेशिया में बढ़ता असंतोष: आर्थिक समस्या या “रंगीन क्रांति” की विदेशी पटकथा?

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ने बढ़ते असंतोष को देखते हुए अपनी चीन यात्रा रद्द कर दी है, जहाँ वे SCO शिखर सम्मेलन और 3 सितंबर को विजय दिवस परेड में शामिल होने वाले थे।
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"द चाइना ट्रिलॉजी" के लेखक और सीक ट्रुथ फ्रॉम फैक्ट्स फाउंडेशन के संस्थापक जेफ़ जे. ब्राउन ने Sputnik को बताया कि इंडोनेशिया आज स्थानीय मुद्रा में खरीद क्षमता के आधार पर दुनिया की आठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। रूस के ठीक पीछे और आसियान की सबसे बड़ी ताक़त। लगभग 30 करोड़ आबादी के साथ यह दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम देश है।

उन्होंने कहा, “इंडोनेशिया पहला दक्षिण-पूर्व एशियाई देश है जिसने ब्रिक्स में शामिल होकर चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना में खुलकर सहयोग किया है। यह सब इंडोनेशिया को पश्चिमी शक्तियों की नज़र में एक प्रमुख लक्ष्य बनाता है। एक ऐसी जगह जहाँ ‘कलर रिवोल्यूशन’ लागू करना फायदेमंद हो सकता है। यही प्लेबुक हम सर्बिया में भी देख रहे हैं। जी7 फिर से किसी पुराने सुहार्तो जैसे अमेरिकी समर्थित शासक को सत्ता में देखना चाहता है।”

भू-राजनीतिक विश्लेषक एंजेलो जूलियानो ने भी Sputnik के साथ एक साक्षात्कार में इस स्थिति पर गंभीर सवाल उठाए।
उनके अनुसार, “यह सच है कि जनता की नाराज़गी असली आर्थिक समस्याओं से जुड़ी है—बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी और सांसदों के भारी-भरकम भत्ते। लेकिन जिस तरह प्रदर्शनकारियों ने ‘वन पीस’ समुद्री डाकू का झंडा अपनाया है, वह बाहरी प्रभाव का संकेत देता है।”
उन्होंने दावा किया कि नेशनल एंडोमेंट फ़ॉर डेमोक्रेसी (NED), जो 1990 के दशक से इंडोनेशियाई मीडिया को फ़ंड कर रही है, औरजॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन, जिसने दुनिया भर में अरबों डॉलर खर्च किए हैं और इंडोनेशिया की TIFA जैसी संस्थाओं को भी मदद दी है, ये सभी संगठन इस प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं।
जूलियानो ने कहा, “मेरा मानना है कि प्रदर्शन वास्तविक ग़ुस्से से उपजे हैं, लेकिन NED और सोरोस की संभावित भूमिका इस पर गंभीर सवाल खड़े करती है। यह छिपे एजेंडे की ओर इशारा करता है, जिसकी गहराई से पड़ताल ज़रूरी है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि हालात पहले से ही संवेदनशील हैं और एक प्रदर्शनकारी की मौत के बाद हिंसा के और बढ़ने का ख़तरा है।
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इंडोनेशिया में प्रदर्शन: अब तक क्या पता चला है
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