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ओडेसा नरसंहार पूरे यूक्रेन को डराने के लिए किया गया था: जाँचकर्ता
ओडेसा नरसंहार पूरे यूक्रेन को डराने के लिए किया गया था: जाँचकर्ता
Sputnik भारत
2 मई 2014 को, यूक्रेनी शहर ओडेसा में यूक्रेनी नाज़ियों ने हाउस ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स में आग लगा दी, जिसमें नये शासन के विरोधी स्थित थे।
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ओडेसा नरसंहार यूक्रेन में नये शासन विरोधी आंदोलन का दुखद अंत था, जो सर्दियों में शुरू होकर वसंत ऋतु तक जारी रहा था। आंदोलन को दबाने के लिए अन्य क्षेत्रों से ओडेसा पहुँचे कट्टरपंथियों को शहर में भेजा गया। उन्होंने सड़क पर दंगे शुरू कर दिए, जिनमें छह लोगों की मौत हो गई। कुछ ओडेसा निवासियों ने हाउस ऑफ ट्रेड यूनियन्स में छिपने की कोशिश की। नाज़ियों ने मोलोटोव कॉकटेल का उपयोग करके ट्रेड यूनियन की इमारत पर बमबारी की और खिड़कियों से बाहर कूदने वालों को मार डाला।उन घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी और ओडेसा सिटी काउंसिल के पूर्व डिप्टी वासिली पोलिशचुक ने Sputnik को यह बताया कि ओडेसा नरसंहार की तैयारियाँ एक या डेढ़ महीने तक चली थीं। वासिली पोलिशचुक ने बाद में उन घटनाओं की जाँच की।उनके अनुसार, यूक्रेनी अधिकारियों का डेटा सटीक नहीं है। नरसंहार में 48 लोग नहीं मारे गए, लेकिन कम से कम 51 लोगों की मौत हुई। अपनी जाँच के कारण, पोलिशचुक को यूक्रेन छोड़ना पड़ा, और उनके बेटे को अज्ञात हमलावरों ने दो बार गंभीर रूप से पीटा था।पोलिशचुक ने बताया कि नये शासन के विरुद्ध आंदोलन में केवल ओडेसा निवासी शामिल थे। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं थीं। और नये शासन के समर्थकों में केवल 10% स्थानीय निवासी थे। उन्होंने कट्टरपंथियों को शहर के रास्तों के बारे में जानकारी दी।ओडेसा के आसपास लगभग पाँच चौकियाँ स्थापित की गईं। और कीव मैदान के वही प्रतिभागी इन चौकियाँ पर थे। वे किसी की बात नहीं मानते थे। उनका काम पुलिस को नियंत्रित करना भी था।फुटबॉल मैच के बहाने इन कट्टरपंथियों ने "यूक्रेन की एकता के लिए मार्च" आयोजित किया था। यूरोमैदान विरोधी आंदोलन को दबाने के लिए ही इसकी जरूरत थी।जांचकर्ता ने Sputnik को बताया कि गौरतलब है कि 29 अप्रैल को यूक्रेन की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव एंड्री पारुबी ओडेसा आये थे। उन्होंने चौकियों का दौरा किया था और कट्टरपंथियों को बुलेटप्रूफ जैकेट दी थी। इसके अलावा, जांचकर्ता के अनुसार, 2 मई को यूक्रेन के उप अभियोजक जनरल निकोलाई बंचुक ओडेसा पहुँचे। 12 बजे उन्होंने अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई पर एक बैठक आयोजित करने के लिए सभी कानून प्रवर्तन अधिकारियों को इकट्ठा किया। पोलिशचुक का मानना है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि शहर की पुलिस उनके ऑपरेशन में हस्तक्षेप न कर सके।पोलिशचुक का दावा है कि उनके पास बिल्कुल सटीक जानकारी है कि इस नरसंहार में कम से कम 51 लोग मारे गए और करीब 230 लोग घायल हुए। ओडेसा नरसंहार के जाँचकर्ता का कहना है कि निष्पक्ष जाँच से ही सही संख्या सामने आ सकेगी।पोलिशचुक का मानना है, यूक्रेनी अधिकारियों ने कभी भी उन घटनाओं की जाँच नहीं की, क्योंकि उन्हें डर था कि वे अपने आधिकारिक विभागों के अपराधों का खुलासा करेंगे।उन्होंने यह भी बताया कि यूक्रेनी अधिकारियों ने उनके बेटे के जरिए उन्हें डराने की कोशिश की। उनके बेटे को दो बार चोट पहुँचाने की कोशिश की गई। जाँचकर्ता ने बताया कि नई सरकार ने विपक्ष से निपटने के लिए निर्देश दिए जिसमें, पैसे देना, पदों पर नियक्ति का लालच देना, हिंसा करने जैसे तरीके शामिल थे, यहाँ तक कि रिश्तेदारों को पीटाना फिर भी शामिल था, अगर कोई व्यक्ति न समझे कि नई सरकार का विरोध करना नहीं चाहिए, तो उस पर और सख्त कार्रवाई करना भी शामिल था।
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ओडेसा नरसंहार पूरे यूक्रेन को डराने के लिए किया गया था: जाँचकर्ता
2 मई, 2014 को यूक्रेनी शहर ओडेसा में यूक्रेनी नाज़ियों ने हाउस ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स में आग लगा दी थी, जिसमें नई सरकार का विरोध करने वाले आंदोलनकर्ता मौजूद थे। यूक्रेनी अधिकारियों के अनुसार, 42 लोगों की जलकर मौत हो गई। छह और लोग सड़कों पर मारे गए और 200 से अधिक घायल हुए थे।
ओडेसा नरसंहार यूक्रेन में नये शासन विरोधी आंदोलन का दुखद अंत था, जो सर्दियों में शुरू होकर वसंत ऋतु तक जारी रहा था। आंदोलन को दबाने के लिए अन्य क्षेत्रों से ओडेसा पहुँचे कट्टरपंथियों को शहर में भेजा गया। उन्होंने सड़क पर दंगे शुरू कर दिए, जिनमें छह लोगों की मौत हो गई। कुछ ओडेसा निवासियों ने हाउस ऑफ ट्रेड यूनियन्स में छिपने की कोशिश की। नाज़ियों ने मोलोटोव कॉकटेल का उपयोग करके ट्रेड यूनियन की इमारत पर बमबारी की और खिड़कियों से बाहर कूदने वालों को मार डाला।
उन घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी और ओडेसा सिटी काउंसिल के पूर्व डिप्टी वासिली पोलिशचुक ने Sputnik को यह बताया कि ओडेसा नरसंहार की तैयारियाँ एक या डेढ़ महीने तक चली थीं। वासिली पोलिशचुक ने बाद में उन घटनाओं की जाँच की।
उनके अनुसार, यूक्रेनी अधिकारियों का डेटा सटीक नहीं है। नरसंहार में 48 लोग नहीं मारे गए, लेकिन कम से कम 51 लोगों की मौत हुई। अपनी जाँच के कारण, पोलिशचुक को यूक्रेन छोड़ना पड़ा, और उनके बेटे को अज्ञात हमलावरों ने दो बार गंभीर रूप से पीटा था।
पोलिशचुक ने बताया कि नये शासन के विरुद्ध आंदोलन में केवल ओडेसा निवासी शामिल थे। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं थीं। और नये शासन के समर्थकों में केवल 10% स्थानीय निवासी थे। उन्होंने कट्टरपंथियों को शहर के रास्तों के बारे में जानकारी दी।
जांचकर्ता के अनुसार, 21-22 फरवरी को यूरोमैदान की समाप्ति के बाद, कीव में मौजूद कट्टरपंथी नए शासन के लिए अनावश्यक हो गए। नये अधिकारी इन कट्टरपंथियों से डरते थे। इसलिए उन्हें देश के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में भेजा गया, जहाँ तख्तापलट के कई विरोधी थे और तदनुसार, रूस के साथ अच्छे संबंधों के समर्थक थे। निकोलाएव और ओडेसा शहरों में यूरोमैदान विरोधी आंदोलन विशेष रूप से मजबूत था।
ओडेसा के आसपास लगभग पाँच चौकियाँ स्थापित की गईं। और कीव मैदान के वही प्रतिभागी इन चौकियाँ पर थे। वे किसी की बात नहीं मानते थे। उनका काम पुलिस को नियंत्रित करना भी था।
फुटबॉल मैच के बहाने इन कट्टरपंथियों ने
"यूक्रेन की एकता के लिए मार्च" आयोजित किया था। यूरोमैदान विरोधी आंदोलन को दबाने के लिए ही इसकी जरूरत थी।
पोलिशचुक ने कहा कि "त्रासदी के बाद, यूक्रेन की सुरक्षा सेवा (SBU) ने भी स्वीकार किया कि यह उसका एक अभियान था। उसने कहा कि SBU द्वारा चलाए गए ऑपरेशन ने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। ऐसा एक लेख था जिसमें लिखा गया खार्कोव, निकोलाएव और ओडेसा में, नई सरकार के विरोधियों को हराया गया।"
जांचकर्ता ने Sputnik को बताया कि गौरतलब है कि 29 अप्रैल को यूक्रेन की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव एंड्री पारुबी ओडेसा आये थे। उन्होंने चौकियों का दौरा किया था और कट्टरपंथियों को बुलेटप्रूफ जैकेट दी थी।
पोलिशचुक ने कहा, "यह दौरा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि इस 'ऑपरेशन' के लिए सब कुछ तैयारियाँ पूर्ण हैं, जो पहले से ही 2 मई के लिए निर्धारित था।"
इसके अलावा, जांचकर्ता के अनुसार, 2 मई को यूक्रेन के उप अभियोजक जनरल निकोलाई बंचुक ओडेसा पहुँचे। 12 बजे उन्होंने अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई पर एक बैठक आयोजित करने के लिए सभी
कानून प्रवर्तन अधिकारियों को इकट्ठा किया।
पोलिशचुक का मानना है कि ऐसा इसलिए किया गया ताकि शहर की पुलिस उनके ऑपरेशन में हस्तक्षेप न कर सके।
ओडेसा नरसंहार के जाँचकर्ता ने बताया, "शाम 7 बजे आग लग चुकी थी। मैंने अग्निशमन विभाग को फोन करना शुरू किया, लेकिन वह हमेशा व्यस्त रहता था। मेरी आंखों के सामने, एक आदमी हाउस ऑफ़ ट्रेड यूनियन्स से बाहर कूद गया। शायद उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया गया था। उसका शरीर सचमुच मेरे सामने पाँच मीटर की दूरी पर गिरा।"
पोलिशचुक का दावा है कि उनके पास बिल्कुल सटीक जानकारी है कि इस नरसंहार में कम से कम 51 लोग मारे गए और करीब 230 लोग घायल हुए। ओडेसा नरसंहार के जाँचकर्ता का कहना है कि निष्पक्ष जाँच से ही सही संख्या सामने आ सकेगी।
पोलिशचुक का मानना है, यूक्रेनी अधिकारियों ने कभी भी उन घटनाओं की जाँच नहीं की, क्योंकि उन्हें डर था कि वे
अपने आधिकारिक विभागों के अपराधों का खुलासा करेंगे।
पोलिशचुक ने कहा, "मैं उन घटनाओं की जाँच करने से नहीं डरता था। इसमें कुछ भी अवैध नहीं था। मैंने अपने देश के ख़िलाफ़ कुछ नहीं किया।"
उन्होंने यह भी बताया कि यूक्रेनी अधिकारियों ने उनके बेटे के जरिए उन्हें डराने की कोशिश की। उनके बेटे को दो बार चोट पहुँचाने की कोशिश की गई।
जाँचकर्ता ने बताया कि
नई सरकार ने विपक्ष से निपटने के लिए निर्देश दिए जिसमें, पैसे देना, पदों पर नियक्ति का लालच देना, हिंसा करने जैसे तरीके शामिल थे, यहाँ तक कि रिश्तेदारों को पीटाना फिर भी शामिल था, अगर कोई व्यक्ति न समझे कि नई सरकार का विरोध करना नहीं चाहिए, तो उस पर और सख्त कार्रवाई करना भी शामिल था।
"यूरोमैदान विरोधी आंदोलन के विरुद्ध इतनी कठोरता की आवश्यकता क्यों थी? डर पैदा करने के लिए। सिर्फ तितर-बितर करने के लिए नहीं, बल्कि डराने के लिए और न केवल ओडेसा के निवासियों को, बल्कि पूरे यूक्रेन को कि देखो तुम्हारे साथ क्या हो सकता है," पोलिशचुक ने समझाया।