दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में वायु सेना प्रमुख ने कहा, "हमें परस्पर लाभप्रद संबंधों और रणनीतिक साझेदारी के लिए स्थिर देश के रूप में अपनी छवि का उपयोग करना चाहिए।
इस साझेदारी की बुनियाद में आर्थिक महत्व भी होना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम अपनी सामरिक स्वायत्तता बनाए रखें और जॉन मियरशाइमर द्वारा प्रतिपादित संतुलन की रणनीति पर आगे बढ़ रहेंं ।
मौजूदा हालात पर टिप्पणी करते हुए वायु सेना प्रमुख ने कहा, "जब हम इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को देखते हैं, तो हमें शक्तिसंपन्न देशों की राजनीतिक चालाकियों का तनाबुना जाल नजर आता है जहां एक स्थापित महाशक्ति को वैश्विक महत्वाकांक्षाओं के साथ एक स्थापित क्षेत्रीय शक्ति द्वारा तेजी से चुनौती दी जा रही है। इसका परिणाम क्षेत्र के सभी प्रमुख भागीदारों को भूगतना पड़ेगा।"
मौजूदा विश्व व्यवस्था में राष्ट्रीय हित और वास्तविक राजनीति से ही किसी भी देश के नीति का निर्धारण होता है। ऐसे में प्रतिस्पर्धा और सहयोग के बीच हमेशा अंतर्द्वंद्व होता है। उन्होंने कहा कि सार्थक सहयोग के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा आवश्यक है।
"हमें अपने दीर्घकालिक उद्देश्यों को खोए बिना इस प्रतिस्पर्धा के बीच जीवित रहने और फलने-फूलने के लिए अपनी रणनीति विकसित करनी चाहिए," वायु सेना प्रमुख चौधरी ने कहा।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र में भारत की संतुलित स्थिति और दबाव के बावजूद सर्वोत्तम कीमतों पर तेल के आयात के संबंध में राष्ट्रीय हित में कार्य करने के अपने निर्णय के माध्यम से यह प्रदर्शित भी हुआ है।