देश की सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार सरकार को बड़ी राहत देते हुए राज्य में जारी जातिगत सर्वेक्षण के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया है।
जस्टिस बीआर गवई और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि याचिकाओं में कोई योग्यता नहीं है और याचिकाकर्ताओं को पटना उच्च न्यायालय जाने का सुझाव दिया।
बिहार में रहनेवाले लोग जातिगत सर्वेक्षण का विरोध क्यों करते हैं?
जस्टिस बीआर गवई और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि याचिकाओं में कोई योग्यता नहीं है और याचिकाकर्ताओं को पटना उच्च न्यायालय जाने का सुझाव दिया।
बिहार में रहनेवाले लोग जातिगत सर्वेक्षण का विरोध क्यों करते हैं?
दरअसल ‘हिंदू सेना’ के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने 17 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराने के राज्य सरकार के फैसले को संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन बताया था।
इसी तरह एक अन्य याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार ने तर्क दिया था कि जनगणना अधिनियम सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार देता है, और राज्य सरकार के पास इसे स्वयं करने का कोई अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर सभी याचिकाओं को वापस लेने की मंजूरी दी। गौरतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि यह देश की अखंडता को तोड़ने वाला है और संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।
दरअसल बिहार में जाति के नाम पर समाज बहुत अधिक बंटा हुआ है। यहाँ चुनाव में टिकट वितरित और वोट भी जाति देखकर किए जाते हैं। इतना ही नहीं, पुलिस चौकियों में खाना भी अलग-अलग जातियों के लिए अलग-अलग बनता है। ऐसे में लोगों का मानना है इससे सामाजिक भेदभाव और ज्यादा बढ़ेगा।
बता दें कि साल 2011 में कांग्रेस की सरकार ने पूरे देश में जनगणना कराई थी। उस साल जाति का आंकड़ा भी जुटाया गया था। लेकिन कुछ कारणों का हवाला देकर इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था।