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निजी स्वामित्व में हाथियों का और अधिग्रहण नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

भारत में धार्मिक संस्थानों, मनोरंजन और पर्यटन उद्योग में हाथियों को अलग रखा जाता है, नियंत्रित किया जाता है और कई बार अस्वास्थ्यकर आहार दिया जाता है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कई जगह से तो हाथियों पर अत्याचार की खबरें सामने आई है।
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मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने निजी व्यक्ति और धार्मिक संस्थान द्वारा हाथियों का अधिग्रहण करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।
साथ ही, कोर्ट ने सरकार, पर्यावरण और वन विभाग को सभी मंदिरों और अन्य निजी स्वामित्व वाले हाथियों का निरीक्षण करने को भी कहा है।
“अब यह फैसला करने का समय आ गया है कि क्या ऐसे सभी हाथी जो अब कैद में हैं (मंदिर और निजी स्वामित्व वाले दोनों) को सरकारी पुनर्वास शिविरों में स्थानांतरित कर दिया जाना चाहिए," कोर्ट ने कहा।
दरअसल कोर्ट ने 60 साल की हथिनी 'ललिता' की कस्टडी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि हथिनी ललिता को उसके महावत से अलग नहीं किया जा सकता है। इसलिए देखभाल के लिए महावत के अधीन ही रहना चाहिए।
बता दें कि न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने हाल ही में पशुप्रेमी कार्यकर्ताओं के साथ दौरा कर ललिता को देखने गए थे इस दौरान उन्होंने जंबो के शरीर पर चोटें पाईं। उन्होंने विरुधुनगर के जिला अधिकारी (डीएम) को पशुपालन विभाग की मदद से हाथी की देखभाल करने का निर्देश दिया। बचाव के बाद, ललिता को आजीवन देखभाल के लिए सरकारी हाथी पुनर्वास शिविर में स्थानांतरित कर दिया जाएगा क्योंकि हाथी की उम्र 60 वर्ष से अधिक है।
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