"हम निष्पक्ष हैं, हम पक्ष चुनना नहीं चाहते। यह संकट को लेकर हमारा दृष्टिकोण है। यह रूस के लिए स्वीकार्य है और इसके साथ यह महत्वपूर्ण है। अगर आप चाहते हैं कि [रूसी] राष्ट्रपति [व्लादिमीर] पुतिन विभिन्न विचारों पर ध्यान दें, तो पश्चिमी देशों के लिए भारत या चीन एकमात्र विकल्प हैं। आप उन्हें यूरोप या रूस को लेकर पक्षपाती नहीं कह सकते,” जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में भारतीय प्रोफेसर पंकज झा ने कहा।
इस संबंध में विशेषज्ञ ने विश्वास व्यक्त किया कि व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जैसे प्रभावशाली विश्व नेताओं के बीच मित्रता नाटो की कीव को "लापरवाह" हथियारों की आपूर्ति के विपरीत यूक्रेन संकट को हल करने में मदद देगी।
सैन्य उपकरणों की पश्चिमी आपूर्ति के बारे में बोलते हुए झा ने यह भी कहा कि यह गठबंधन नए हथियारों और तकनीकों का परीक्षण करने के लिए "गिना पिग" के रूप में यूक्रेन का इस्तेमाल करता है।
"मुझे नहीं लगता कि कोई भी पश्चिमी देश इस में [संकट के समाधान में] भूमिका निभा रहा है। उन्हें संकट में हिस्सा लेने के स्थान पर दोनों देशों को खुद या शायद मध्यस्थ की मदद से निर्णय लेने देना चाहिए," भारतीय विशेषज्ञ ने जोड़ा।
सेंटर फॉर रिमपैक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के वाइस चेयरमैन नेल्सन वोंग ने Sputnik के सामने टिप्पणी देते हुए यूक्रेन संकट में हस्तक्षेप करने के पश्चिम के प्रयासों की निंदा की और उन अपेक्षाओं को "अवास्तविक" कहा कि प्रतिबंध मास्को के विकास को रोकेंगे या रूस को यूक्रेन में अपने विशेष सैन्य अभियान को खत्म करने पर मजबूर करेंगे।
वोंग ने अंतर्राष्ट्रीय मंच में रूस की भागीदारी के महत्व पर जोर देकर कहा कि बीजिंग व्यापार और ऊर्जा साझेदारी बढ़ाने और सभी स्तरों पर घनिष्ठ राजनयिक संपर्क बनाए रखने के साथ मास्को से द्विपक्षीय संबंधों को आगे से भी मजबूत करना चाहता है।
उन्होंने कहा कि बीजिंग द्वारा जारी किए गए "यूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान पर चीन का रवैया" नामक दस्तावेज़ में सभी देशों की संप्रभुता के सम्मान पर, मास्को और कीव के बीच शांति वार्ता की बहाली पर वगैरह ध्यान दिया गया था।
इसके अलावा, विशेषज्ञ ने जोर देकर कहा कि यूक्रेन संकट यानी दुनिया में किसी भी अन्य संघर्ष को रोकने का एकमात्र सही तरीका शांतिपूर्ण वार्ता है। वोंग ने कहा कि इसीलिए बड़े देश और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के महत्वपूर्ण सदस्य होने के नाते चीन ने पश्चिमी देशों के विपरीत तटस्थता बनाए रखते हुए इस संकट के पक्षों से एक बार फिर शांति का आह्वान करने का निर्णय किया।
मास्को ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन में अपना विशेष सैन्य अभियान शुरू किया था। रूसी और यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडलों ने शांति वार्ता की कई दौरों में हिस्सा लिया। नवंबर 2022 में रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा कि कीव शांति वार्ता को नहीं, तनाव को बढ़ावा देना ही चाहता है। दिसंबर में क्रेमलिन ने उन बयानों के साथ सहमति व्यक्त की कि यूक्रेन संकट का समाधान निष्पक्ष और दीर्घकालिक शांति पर आधारित होना चाहिए।