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पाकिस्तान सीनेट ने मुख्य न्यायाधीश शक्तियों को कम करने के लिए विधेयक पारित किया

विधेयक ने सुझाव दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाली एक समिति स्वत: संज्ञान नोटिस पर निर्णय लेगी और उसे स्वत: संज्ञान निर्णय के 30 दिनों के भीतर अपील दायर करने का अधिकार होगा।
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पाकिस्तानी मीडिया ने बताया कि पाकिस्तान सीनेट ने सुप्रीम कोर्ट (प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर) बिल, 2023 को मंजूरी दे दी है, यह बिल पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश की स्वतः संज्ञान लेने की शक्तियों पर अंकुश लगाएगा।
पाकिस्तान नेशनल असेंबली के विधेयक को मंजूरी देने के बाद इसे सीनेट में पेश किया गया जहां पाकिस्तान सीनेट ने इस विधेयक को पारित कर दिया। इस विधेयक के पक्ष में कम से कम 60 और विरोध में 19 सांसदों ने इसके खिलाफ मतदान किया।
बिल पर आखिरी वोट से पहले कानून और न्याय पर सीनेट की स्थायी समिति को आगे की बहस के लिए बिल भेजने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया गया हालांकि इसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके बाद विधेयक की तुरंत स्वीकृति के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया जिसे अधिकांश सांसदों ने स्वीकार कर लिया।
विधेयक के पक्ष में पाकिस्तान के कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने कहा कि प्रस्तावित कानून स्वत: संज्ञान लेकर मामलों में अपील करने और अपीलों में अलग वकील नियुक्त करने का अधिकार प्रदान कर रहा है। वहीं दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष शहजाद वसीम ने बिल की आलोचना करते हुए कहा कि सरकार गेहूं का सुचारू रूप से वितरण पक्का करने में सक्षम नहीं है और सुप्रीम कोर्ट के लिए नियम बनाने की योजना बना रही है।
"सुप्रीम कोर्ट के लिए नियम बनाना (न्यायपालिका पर) एक अप्रत्यक्ष हमला है। आप सुप्रीम कोर्ट में विभाजन पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।" जियो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, शहजाद वसीम ने कहा
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के नेता अली जफर ने कहा कि उन्हें विधेयक पर दो आपत्तियां हैं।
''184/3 में सिर्फ संविधान संशोधन किया जा सकता है यदि आप इस तरह से कानून पारित करते हैं तो इसे 15 दिनों के भीतर रद्द कर दिया जाएगा," उन्होंने कहा।   
अली जफर ने कहा कि पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट को पिछले हजारों मामलों की फिर से सुनवाई करनी होगी। उन्होंने बिल के समय पर सवाल उठाया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा चुनाव के बारे में स्वत: संज्ञान लेकर सुनवाई चल रही है।
वहीं लाहौर उच्च न्यायालय ने संविधान में संरक्षित नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ पाकिस्तान दंड संहिता (पीपीसी) की धारा 124-ए के तहत राजद्रोह के अपराध को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति शाहिद करीम ने आदेश की घोषणा करते हुए कुछ जनहित याचिकाओं को अनुमति दी, जिसमें औपनिवेशिक काल के कानून को चुनौती दी गई थी और जिसका इस्तेमाल असहमति की आवाज़ों को रोकने के लिए किया जाता था।
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