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सुप्रीम कोर्ट ने बब्बर खालसा के आतंकवादी राजोआना की मौत की सजा को बदलने से किया इनकार

भारत की सर्वोच्च अदालत ने साल 1995 में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में सजायाफ्ता कैदी बलवंत सिंह राजोआना की दया याचिका पर विचार करने का काम केंद्र सरकार पर छोड़ दिया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बब्बर खालसा* के आतंकवादी बलवंत सिंह राजोआना की मौत की सजा को उम्रकैद में बदलने से इनकार कर दिया है।
"गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा राजोआना की दया याचिका पर फैसला करने में देरी को उसकी सजा कम करने की अनिच्छा के तौर पर देखा जा सकता है," न्यायमूर्ति बीआर गवई की अगुवाई वाली पीठ ने कहा।
सर्वोच्च न्यायालय ने राजोआना द्वारा 2020 में दायर एक याचिका पर 2 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।गौरतलब है कि जुलाई 2007 में एक विशेष अदालत ने हत्या के मामले में एक अन्य आतंकवादी जगतार सिंह हवारा के साथ राजोआना को मौत की सजा सुनाई थी।
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दरअसल राजोआना को 31 मार्च 2012 को फांसी दी जानी थी लेकिन 28 मार्च 2012 को तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने फांसी पर रोक लगा दी थी। उस दौरान शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की थी। इसके बाद राष्ट्रपति ने याचिका पर विचार के लिए गृह मंत्रालय को भेज दिया, तब से गृह मंत्रालय के पास याचिका लंबित है।
बता दें कि पंजाब पुलिस के एक पूर्व कांस्टेबल राजोआना को साल 1995 में पंजाब सचिवालय के बाहर एक विस्फोट में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया गया था, जिसमें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 16 अन्य मारे गए थे।

*खालिस्तान आंदोलन से जुड़े आतंकी संगठन है जो भारत में प्रतिबंधित है।
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