विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

AI शत्रु और मित्र में भेद करने में सक्षम हो पाया तो बनेगा घातक हथियार: विशेषज्ञ

एक ओर, यह तकनीक युद्ध को कम घातक बना सकती है और संभवत: प्रतिरोध को मजबूत कर सकती है। वायु सेना, नौसेना और सेनाओं में AI-निर्देशित ड्रोन की भूमिका को नाटकीय रूप से विस्तारित करके मानव जीवन को बख्शा जा सकता है। पहले से ही चीन जैसे देश अपने स्वयं के AI-रन सिस्टम को रोल आउट करने की तैयारी कर रहे हैं।
Sputnik
दुनिया के कुछ देशों ने पिछले दो दशकों में हथियारों को लेकर बहुत तरक्की की है, अब हजारों किलोमीटर की दूरी से बैठकर ही दुश्मन के इलाके में घुस कर सटीक रूप से आक्रमण किया जा सकता है, लेकिन आज के समय में एक आधुनिक प्रणाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने पूरे विश्व में तहलका मचा रखा है। बारूद और परमाणु हथियारों के बाद स्वायत्त हथियार प्रणाली (AWS) तीसरी क्रांति होगी।
AI का कितनी तेजी से विकास हुआ है और ये प्रगति निकट भविष्य में स्वायत्त हथियारों को ओर उन्नत बना देगा और न केवल अब अधिक, सटीक, तेज़ और सस्ते बुद्धिमान रोबोट अधिक बनेंगे बल्कि वे नई क्षमताओं को भी सीखेंगे, जिनसे उनके मिशन लगभग अजेय बन जाएंगे। 10,000 छोटे ड्रोनों का एक झुंड आधे शहर का सफाया कर सकता है। अगर बात करें इनकी लागत की तो स्वायत्त हथियारों को बनाने में कम लागत लगती। इनकी वजह से लड़ाई में किसी को जान नहीं देनी होगी।
लेकिन इसके अलावा एक अन्य प्रमुख मुद्दा सामने आता है कि युद्ध में गलती के लिए कौन जिम्मेदार होगा, युद्ध के मैदान में सैनिकों के लिए नियम हैं। लेकिन जब लड़ाई में जिम्मेदारी एक स्वायत्त-हथियार प्रणाली को सौंपी जाती है, तो जवाबदेही स्पष्ट नहीं होगी और इंसानों की तुलना में मशीन द्वारा की गई कॉई भी गलती बहुत भारी पड़ सकती है।
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हर जगह आज के समय में आर्टिफिशल इन्टेलिजन्स की बात की जा रही है और देशों के बीच बढ़ती हथियारों की होड़ में आर्टिफिशल इन्टेलिजन्स (AI) एक प्रमुख कारक उभर कर सामने आया है। सभी देश हथियारों में AI के इस्तेमाल को लेकर नई नई योजनाओं पर काम कर रहे हैं।
AI क्या है, इसका हथियारों में किस तरह उपयोग हो सकता है और इसके क्या नुकसान हो सकते है। इस पर Sputnik ने बात की भारतीय वायु सेना से सेवानिवृत्त हुए विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी से, उन्होंने बताया की AI मानव के साथ बहुत उपयोगी हो सकती है लेकिन अगर इसे अकेले इस्तेमाल किया जाए तो यह घातक भी हो सकती है क्योंकि AI दोस्त और दुश्मन या नागरिक और सैनिक में भेद करने में आसानी से सक्षम नहीं होगी।

AI क्या है और इसका हथियारों में इस्तेमाल कैसे किया जाए?

"जब आप रोबो मशीन या ऑपरेशन थिएटर की बात कर रहे हों और दिमाग या दिल का ऑपरेशन रोबो कर रहा है वह अलग बात है, लेकिन जब आप ऐसी हथियार प्रणाली की बात कर रहे हों जो रोबो या AI से युद्ध मैदान में काम कर रही है तो सबसे बड़ी बात यह होगी कि अगर AI को सफल बनाना है तो आपको उस मशीन को कुछ बुद्धिमत्ता देनी होगी, उसे हथियार प्रणाली की जानकारी देनी होगी, इनपुट्स डालने होंगे। दुश्मन कैसा दिखता है, दुश्मन कैसा लगता है, दुश्मन किस फ्रीक्वेंसी से काम कर रहा है। यह सब मशीन में इनपुट दिया जाना चाहिए," विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रफुल्ल बख्शी ने Sputnik को बताया।

"पहली बात यह है कि आप पूरी तरह से लूप से बाहर हैं और दूसरा यह कि आप अपने हाथों से सब कुछ कर रहे हैं। मानवीय कार्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत अच्छी तरह से काम करता है, लेकिन जब आपका काम मानवता के विरुद्ध हो तब आपका सिस्टम विभिन्न लक्ष्यों में यानी दोस्त या दुश्मन, फौजी या नागरिक में फर्क नहीं कर सकता," आगे उन्होंने कहा।

AI के इस्तेमाल से लड़ने की क्षमता बढ़ेगी?

सेवानिवृत्त विंग कमांडर प्रफुल्ल बख्शी ने Sputnik से बात करते हुए कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए हथियार पूरी तरह स्वायत्त हो जाएंगे लेकिन इसके साथ सबसे बड़ी परेशानी भेद न करने के कारण होगी। और आपको इनके प्रयोग के लिए मशीन में सभी तरह के इनपुट डालने होंगे लेकिन एक बात कहनी होगी की AI के आने के बाद से मानवीय क्षति को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

"हां, लड़ने की क्षमता बढ़ेगी,आपको हर जगह इंसान की जरूरत नहीं पड़ेगी। आप अपनी सेना में कम लोगों से ज्यादा काम कर सकेंगे। यह सेना की ताकत को बढ़ा देगा, लेकिन फिर से एक बात उठती है यदि आप एक पायलट हैं और आप मानवीय कानून और वे सभी सिद्धांत जानते हैं जिनमें सैन्य आवश्यकता सहित आनुपातिकता, सीमा, पीड़ा के के सिद्धांत, वगैरह भी हैं। आपके टारगेट के पास किसी भी आपात स्थिति में आप हमले को रोक सकते हैं, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाले पूरी तरह से स्वायत्त हथियार हैं, वह भेद नहीं कर सकता कि वह हमला कर देगा," प्रफुल्ल बख्शी ने बताया।

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AI की रक्षा अनुप्रयोगों में प्रगति कई नैतिक चिंताओं को उठाती है जबकि ऐसे कई विस्तृत दस्तावेज उपलब्ध हैं जो युद्ध लड़ने वाले एप्लिकेशन में AI के उपयोग में चिंता के विशिष्ट क्षेत्रों के बारे में बात करते हैं। आज युद्ध में AI के उपयोग की नैतिकता को लेकर चर्चाएँ लगातार हो रही हैं। रक्षा विशेषज्ञ बक्शी ने इस पर बताया कि AI एक हद तक ही नैतिक आवश्यकता को पूरा कर पाएगी, यह हमें ध्यान में रखना होगा कि अगर यह तकनीक कहीं असफल हो गई तो यह कितना विध्वंसक हो सकता है।

एथिकल आस्पेक्टस ऑफ AI

"संघर्ष के नैतिक पहलू तब सामने आते हैं जब आप जिनेवा समझौते का पालन करते हैं। जिनेवा कन्वेंशन बहुर आवश्यक है क्योंकि इसके माध्यम से संघर्ष में आप सुनिश्चित कर सकते हैं कि मानव पीड़ा न्यूनतम हो या बिल्कुल न हो। किसी भी संघर्ष में नैतिक पहलू की जरूरत होती है और यहीं से समस्या उत्पन्न होती है। नैतिक मांगों को पूरी करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की एक सीमा है। तो यह संघर्ष हमेशा रहेगा," विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) प्रफुल्ल बख्शी ने साक्षात्कार में बताया।

"विशेष रूप से मित्र और शत्रु, नागरिक और सैनिक का भेदभाव या मंदिर, संग्रहालय और कोई भी धार्मिक जगह की पहचान जिसे विशेष रूप से संरक्षित जगह कहा जाता है। लेकिन ये सभी जगह AI के विफल होने की स्थिति में खतरे में होंगे," उन्होंने आगे कहा।
AI का उपयोग कंप्यूटर सिस्टम और नेटवर्क में कमजोरियों की पहचान करने या फिर संवेदनशील डेटा की चोरी के लिए किया जा सकता है। इसका उपयोग किसी भी तरह का वायरस या मैलवेयर भेजने के लिए भी किया जा सकता है। आज के समय में AI तकनीकों का इस्तेमाल करने वाले साइबर हमले अधिक बढ़ गए हैं। भारतीय वायु सेना से सेवानिवृत्त अधिकारी प्रफुल्ल बख्शी ने कहा कि साइबर अटैक वास्तव में आपकी संपूर्ण इन्टेलिजन्स को अवरुद्ध कर देगा और यह हमला आपके प्रसारण को ब्लॉक करने के साथ साथ रिसेप्शन को भी ब्लॉक कर सकता है और यदि आपका रिसेप्शन अवरुद्ध है तो आपकी AI कुछ नहीं कर सकता है।

AI साइबर हमलों को रोकने में मदद करता है?

"जब किसी पर साइबर हमला हो, तो आपको यह समझना चाहिए कि साइबर मूल रूप से आपके कंप्यूटर प्लेटफॉर्म को खराब करने की कोशिश करेगा जो काम कर रहा है, संदेश भेज रहा है, संदेश संग्रहित कर रहा है। यह हमलावर प्रक्रियाओं और लड़ने की प्रक्रियाओं से संबंधित हैं। अगर आपको हमले के बारे में पता चल जाता है तो आप कंप्यूटर प्लेटफॉर्म जाम कर देते हैं या बेअसर कर देते हैं ताकि हमलावर साइबर हमले में सफल नहीं हो पाएं" बक्शी ने कहा।

"साइबर खतरों का सामना करने के लिए एक मशीन को भी प्रोग्राम किया जाता है। मशीन की इस ट्रेनिंग में कितनी एडवांस प्रोग्रामिंग की जाती है, यह अभी पता नहीं चल पाया है। मेरा मतलब है कि कुछ देश इसमें बहुत उन्नत हैं, कुछ देश नहीं हैं। लेकिन यह प्रक्रिया बहुत ही कारगर है। यदि आप अपनी मशीन को साइबर हमलों के खिलाफ प्रशिक्षित कर सकते हैं, तो इसकी प्रक्रिया सामने आ रही है। और इन सबके अलावा आपको सिस्टम इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स (EMP) फैक्टर को भी भूलना नहीं है जो आपके पूरे इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को ब्लॉक कर सकता है। तो ऐसा हो सकता है," विंग कमांडर ने बताया।

प्रफुल्ल बख्शी ने Sputnik को बताया कि AI की एकमात्र चुनौती भेद कर पाना नहीं है, रक्षा और हथियार में AI का उपयोग करने की मुख्य चिंता यह है कि यह वांछित रूप से प्रदर्शन नहीं कर सकता है, जिससे भयावह परिणाम सामने आएंगे। उदाहरण के लिए, यह अपने लक्ष्य से चूक कर सकता है या उन हमलों को लॉन्च कर सकता है जो स्वीकृत नहीं हैं, और यह आगे चलकर देशों के बीच संघर्षों को जन्म दे सकता हैं। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने एक बार कहा था कि "मानव भागीदारी के बिना जीवन लेने की शक्ति और विवेक वाली मशीनें राजनीतिक रूप से अस्वीकार्य, नैतिक रूप से प्रतिकूल और अंतरराष्ट्रीय कानून द्वारा निषिद्ध होनी चाहिए"।

AI के लिए चुनौतियां

"AI की एकमात्र चुनौती है कि वह भेद नहीं कर सकता है कि लक्ष्य कहाँ है या लक्ष्य कौन है? अगर इसे सुलझाया जा सकता है तो कोई चुनौती नहीं बचेगी। दूसरी चुनौती यह है कि अगर आपके कंप्यूटर की तरह आपका पूरा ऑपरेशन सिस्टम जाम हो जाए या अगर मैं आपके कंप्यूटर को क्रैश कर दूँ तो कोई आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस काम नहीं करेगा क्योंकि पूरा सिस्टम कम्प्यूटरीकृत मशीनरी पर आधारित है, सब कुछ टूट जाएगा। तो इस समय ज्यादातर जगहों पर साइबर हमला होने का खतरा होता है अगर आपके पास सिस्टम साइबर प्रूफ है तभी आप जीत सकते हैं। लेकिन आप साइबर प्रूफ नहीं हो सकते। यही कारण है कि आप अर्थव्यवस्थाओं को क्रैश कर सकते हैं, आप वॉल स्ट्रीट की अर्थव्यवस्था को क्रैश कर सकते हैं, आप स्टक्सनेट अटैक कर सकते हैं। आप यह कर सकते हैं। तो फिलहाल आपको इसका मुकाबला करना होगा। यह बुनियादी चुनौती है और यह हमेशा किसी भी रूप में रहेगी," रक्षा विशेषज्ञ प्रफुल्ल बख्शी ने बताया।

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"यदि आप सेना की बात कर रहे हैं, हाँ, यह जनशक्ति को बचाता है, और यह अधिक सटीक है। जैसे अगर मैं लक्ष्य पर हमला कर रहा हूं तो इस हमला का नतीजा मुझ पर निर्भर है। आप देखिए मेरी अपनी सीमाएं हैं। लेकिन 200 किलोमीटर की गति से आने वाले ड्रोन को रोकने में कोई इंसान सक्षम नहीं होता। इसे कंट्रोल करने वाला शख्स 8000 किलोमीटर दूर है और उसे कोई दिक्कत नहीं है। वह सब कुछ देख रहा है। वह टारगेट लॉक करने के बाद सिर्फ हथियार छोड़ता है और हथियार चला जाता है," उन्होंने कहा।
प्रफुल्ल बख्शी ने अंत में बताया कि ड्रोन की सटीकता बहुत अच्छी है लेकिन अगर इसे अकेला छोड़ दिया जाए तो यह उस माहौल में काम नहीं कर सकता जब बहुत सारे इनपुट काम कर रहे हैं। आपका निर्णय इतना सटीक होना चाहिए कि आपको निश्चित रूप से पता हो कि AI का इस्तेमाल किस स्थिति में किया जा सकता है और किस स्थिति में नहीं सकता। उन्होंने कहा कि यह "एक निरंतर दौड़ होने जा रही है"। फिलहाल मैं यह नहीं कह सकता कि यह कौन जीतेगा, यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि कौन आगे बढ़ रहा है।
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