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अमेरिका का डीएनए नहीं बदलेगा, वह भारत को धोखा दे सकता है, सैन्य दिग्गजों ने दी चेतावनी

वाशिंगटन भारत को रूस से अलग करने पर काम कर रहा है, हालांकि भारत ने इस तरह के प्रयासों को शक्तिशाली उत्तर दिया है।
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भारतीय सैन्य दिग्गज ने भारत को हथियारों की महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी देने से संबंधित अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की हाल की टिप्पणियों को लेकर संदेह व्यक्त किया है, क्योंकि वाशिंगटन ने इस से पहले भी इस तरह के दावे किए थे, लेकिन कोई भी दावा अमल में नहीं लाया गया था।
उनकी टिप्पणियां ऑस्टिन की हाल की नई दिल्ली की यात्रा के दौरान भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भेंट के बाद सामने आईं, जिसमें उन्होंने भारत से अत्याधुनिक हथियारों की प्रौद्योगिकी देने का वादा किया था।
ऑस्टिन ने इस सप्ताह भारतीय राजधानी में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "मैं आपसे कह सकता हूं कि अमेरिकी सरकार भारत के रक्षा आधुनिकीकरण का समर्थन करने के लिए हरसंभव कदम उठा रही है। मैं आगे भी मंत्री सिंह के साथ काम करना जारी रखने के लिए उत्सुक हूं।"
अगर वाशिंगटन से उपकरण खरीदने के बाद अमेरिका नई दिल्ली पर दबाव डालेगा तो क्या होगा?
Sputnik ने मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) एसपी सिन्हा से यह पूछा, जो इस संबंध में अमेरिका के आलोचक हैं, क्योंकि जब भी नई दिल्ली अमेरिका को भारत में लाइसेंस के तहत लड़ाकू विमानों जैसे हथियारों का सह-उत्पादन करने का प्रस्ताव देता था, तभी अमेरिका बार-बार भारत के प्रस्तावों से इनकार करता था।
"अमेरिका कभी हमारा विश्वसनीय भागीदार नहीं था और जैसा कि हम जानते हैं वह अंतिम क्षण में भारत सहित किसी भी देश को धोखा देने में सक्षम है। किसी भी देश का डीएनए नहीं बदलता है, हालांकि मामूली संशोधन हो सकते हैं, लेकिन डीएनए वही बना रहता है," भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी ने शुक्रवार को Sputnik को बताया।
"इसलिए हमें उस चीज का गहन विश्लेषण करना चाहिए जिसका पेशकश अमेरिका कर रहा है - इसमें क्या जोखिम शामिल हैं, और क्या अमेरिका के साथ संबंध बढ़ाना भारत के लिए उपयुक्त है? अगर आवश्यक होगा तो हमें अमेरिका पर दबाव डालने की जवाबी योजना बनाना चाहिए, ताकि वह नियमों के अनुसार काम करे," उन्होंने जोर देकर कहा।

अमेरिका भारत में बड़ा निवेश करना नहीं चाहता

एसपी सिन्हा ने बताया कि अमेरिकी हथियार लॉबी भारत में अपनी उपस्थिति का विस्तार करने के लिए बहुत उत्सुक है और इसके लिए वह बाइडेन प्रशासन पर दबाव डालता है।
भारतीय सेना के दिग्गज ने कहा कि अमेरिका जानता है कि भारत रूस के साथ अपनी दोस्ती को बहुत महत्त्वपूर्ण समझता है, और वह मास्को को कभी धोखा नहीं देगा।
उन्होंने जोर देकर कहा, "इसलिए अगर नई दिल्ली कभी रूस को धोखा नहीं देगी, तो अमेरिका भारत के रक्षा क्षेत्र में बड़ा निवेश करना नहीं चाहता क्योंकि पेंटागन हमेशा रूस से हमारे संबंधों को लेकर संदेह व्यक्त करता रहेगा।"
रूस और फ्रांस ने विमानों, पनडुब्बियों, मिसाइलों आदि के सह-उत्पादन सहित हथियारों की जटिल और आधुनिक प्रौद्योगिकी को नई दिल्ली को हस्तांतरित किया था। उनके विपरीत, अमेरिका ने कभी भारत में हथियार या उपकरण बनाने के लिए रक्षा कंपनियों के साथ समझौता नहीं किया है।
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एक अन्य भारतीय सेना के दिग्गज, पूर्व-मेजर जनरल शशि भूषण अस्थाना ने Sputnik को बताया कि नई दिल्ली आत्मनिर्भर होना चाहती है, और यह तब तक आत्मनिर्भर बनने में सक्षम नहीं होगी जब तक यह उपकरणों के साथ प्रौद्योगिकी नहीं खरीदेगी।
भारत का इरादा उपकरणों के साथ-साथ प्रौद्योगिकी को भी खरीदना या "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम के अनुसार काम करना है ताकि यह आत्मनिर्भर बन सके।

शशि भूषण अस्थाना ने कहा, "अब अमेरिकी लोग भी जानते हैं कि अगर वे प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण नहीं करते हैं तो वे प्रतिस्पर्धा में असफल रहेंगे और भारत इज़राइल और फ्रांस जैसे अन्य निर्माताओं से संपर्क स्थापित कर सकता है।"

गौरतलब है कि भारत दुनिया के सबसे बड़े रक्षा आयातकों में से एक है। उल्लेखनीय है कि इसके 60 प्रतिशत से अधिक हथियार रूसी मूल के हैं, नई दिल्ली इस देश के उपकरणों को प्राथमिकता देती है क्योंकि मास्को इसके साथ प्रौद्योगिकी साझा करने के लिए तैयार है।
भारत-रूस की साझेदारी रक्षा क्षेत्र में बहुत सफल हुई है, दोनों देशों ने कई संयुक्त उद्यमों को स्थापित किया था। उन सबसे प्रमुख उद्यमों में से ब्रह्मोस एयरस्पेस है, वह ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों का निर्माण करता है, जिनका सक्रिय उपयोग भारतीय सेना करती है।
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