1960 के दशक में सोवियत संघ में औद्योगीकरण के लिए की जा रही जंगल की कटाई के कारण यह गड्ढा बनना शुरू हुआ। पेड़ काटने के बाद गर्मी ने जमीन में गहराई तक प्रवेश किया, जिससे पर्माफ्रॉस्ट पिघल गया और ज़मीन तेजी से खिसकने लगी।
यह क्रेटर हर साल करीब 20 से 30 मीटर कर चौड़ा होकर खिसक रहा है। स्थानीय लोग इस गड्ढे को "नरक का द्वार" कहते हैं।
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