यूक्रेन संकट
मास्को ने डोनबास के लोगों को, खास तौर पर रूसी बोलनेवाली आबादी को, कीव के नित्य हमलों से बचाने के लिए फरवरी 2022 को विशेष सैन्य अभियान शुरू किया था।

कीव शासन की यूक्रेनी रूढ़िवादी चर्च को नष्ट करने की कवायद तेज: रूसी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट

कई वर्षों से कीव शासन विहित यूक्रेनी रूढ़िवादी चर्च (UOC) को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है, पादरी और विश्वासियों के खिलाफ भेदभाव की नीति अपना रहा है। यूक्रेन की विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों की कार्रवाइयां इस लक्ष्य को पूरा करने में लगे हैं।
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वर्तमान में यूक्रेन में हो रही घटनाएं कॉन्स्टेंटिनोपल के पितृसत्ता, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की नीतियों के बीच विश्व रूढ़िवादी में एक प्रणालीगत संकट की समग्र तस्वीर और भी तेज करती हैं, जो विद्वानों की करतूतों को प्रोत्साहित करती हैं।
यूक्रेनी रूढ़िवादी चर्च की ओर से मास्को पितृसत्ता से अलग हो जाने के फ़ैसले के बावजूद कीव अधिकारी और पश्चिम दोनों देशों में रूढ़िवादी विश्वासियों की आध्यात्मिक आत्मीयता को नष्ट करने के लिए रूसी और यूक्रेनी लोगों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पूर्व यूक्रेनी अधिकारियों ने भी विहित चर्च के खिलाफ कई कदम उठाए।
यूक्रेन संकट
यूक्रेनी ऑर्थोडॉक्स चर्च के भिक्षु गैर-धर्मवैधानिक OCU से खतरा महसूस करते हैं: बिशप
यूक्रेन में विहित रूढ़िवादी पर सिस्टम-व्यापी दबाव 2018 में शुरू हुआ और 2022-2023 में यह तेज हो गया। इसका नेतृत्व यूक्रेन के केंद्रीय अधिकारियों ने किया था और वर्तमान में इसे कानून, खुफिया सेवाओं की गतिविधियों आदि के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
इसके अलावा, कीव शासन के प्रयासों में सम्मिलित हैं:
भेदभावपूर्ण कानूनों का मसौदा तैयार करना,
चर्चों और मठों पर बलपूर्वक कब्ज़ा,
समुदायों का अवैध पुनः पंजीकरण,
घृणास्पद भाषण का प्रोत्साहन,
अकारण आक्रामकता,
यूओसी पादरी और विश्वासियों के खिलाफ हिंसा।
अंतरराष्ट्रीय संगठन मुख्य तौर पर कीव शासन के यूक्रेनी रूढ़िवादी चर्च को नष्ट करने के प्रयासों के प्रति अंधे और बहरे बने हुए हैं।
रूस के विदेश मंत्रालय की यह रिपोर्ट 7 खंडों से बनी है। इसमें विभिन्न स्रोतों से एकत्र किए गए तथ्यों और परिस्थितियों को प्रस्तुत किया गया है जिन्होंने यूओसी में राजनीतिक अराजकता और कानूनी आक्रोश के सारे मामले, कीव शासन द्वारा रूढ़िवादी ईसाइयों के अधिकारों के घोर व्यवस्थित उल्लंघन तथा कुछ अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रियाओं को सामने रख दिया है।
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