वर्चुअल ऑटिज़्म क्या है?
"जब बच्चे स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तो वर्चुअल ऑटिज्म जाता है। जो ऑटिज्म है उसमें तीन लक्षण होते हैं, पहला, लैंग्वेज डेवलपमेंट नहीं होना, दूसरा, सोशल बिहेवियर में कमी और तीसरा, स्टीरियोटाइप बिहेवियर करना यानी एक ही काम को बार-बार करना, अपना सर या हाथ-पैर दीवार में मारना। जब बच्चे स्मार्टफोन [का] ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तो ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है इसलिए हम इसको वर्चुअल ऑटिज्म बोलते हैं क्योंकि रियल ऑटिज्म नहीं है यह। रियल ऑटिज्म के जो लक्षण हैं वही बच्चों में दिखने लगते हैं," डॉ गौतम ने Sputnik India को बताया।
वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण
"ऑटिज़्म का कोई कारण ज्ञात नहीं है जबकि वर्चुअल ऑटिज़्म का कारण पता है कि मोबाइल फ़ोन के कारण बच्चे अपनी दुनिया बना लेते हैं। सोशल इंटरेक्शन कम कर देते हैं, लैंग्वेज डेवलपमेंट में विलम्ब होने लगता है और उनका स्टेरोटीपीस बिहेवियर बढ़ता रहता है। गुस्सा करना, चिड़चिड़ापन और अपने आपको चोट पहुँचाने की कोशिश करना वर्चुअल ऑटिज़्म के लक्षण है," डॉ गौतम ने कहा।
अत्यधिक स्क्रीन टाइम के दुष्प्रभाव
वर्चुअल ऑटिज्म से कैसे बचा जा सकता है?
"बच्चे के माता-पिता या केयरटेकर जो हैं उनकी अहम भूमिका है कि समय सीमा निर्धारित नहीं करते हैं बच्चों के लिए जबकि समय सीमा निर्धारित करना बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। मोबाइल फ़ोन से दूर रखना होगा बच्चे को और साथ ही आउटडोर एक्टिविटी बढ़ाना होगा और माता-पिता को भी बच्चों के साथ समय व्यतीत करना होगा," डॉ गौतम ने कहा।