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जानें क्या है वर्चुअल ऑटिज्म और बच्चे क्यों हो रहे वर्चुअल ऑटिज्म का शिकार?

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Child Girl Using Computer - Sputnik भारत, 1920, 27.08.2023
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प्रारंभिक बचपन मस्तिष्क के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय है और यही वह समय है जब बच्चे दूसरों को देखकर, अपने आस-पास की चीजों की खोज करके और मुक्त खेल के माध्यम से सीखते हैं। इसलिए इस स्तर पर माता-पिता के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे बच्चों के अधिकतम विकास के लिए उनके साथ काफी समय बिताएं।
ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) एक विकासात्मक विकलांगता है जो बच्चों में सामाजिक, संचार और व्यवहार संबंधी चुनौतियाँ पैदा करने के लिए जानी जाती है, यह प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है।
दरअसल माता-पिता-बच्चे के खेलने का कम समय और बच्चे को बहुत अधिक टेलीविजन देखने देने से बचपन में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के लक्षण बढ़ जाते हैं। हाल के चिकित्सकीय अध्ययनों के अनुसार, कई छोटे बच्चे जो टीवी, वीडियो गेम कंसोल, आईपैड या कंप्यूटर सहित स्क्रीन के सामने बहुत अधिक समय बिताते हैं, उनमें ऑटिज्म से जुड़े लक्षण हो सकते हैं।
आखिर वर्चुअल ऑटिज्म क्या है और इससे बच्चों को किस तरह बचा सकते हैं यह जानने के लिए Sputnik India ने निर्वाण क्लिनिक, भोपाल के साइकोलॉजिस्ट डॉ प्रीतेश गौतम से बात की।

वर्चुअल ऑटिज़्म क्या है?

वर्चुअल ऑटिज्म एक विकार है जो पांच साल से कम उम्र के बच्चों में देखा गया है। इस स्थिति का प्रमुख कारण स्मार्टफोन, टेलीविज़न या कंप्यूटर का अत्यधिक उपयोग देखा जाता है। विशेषज्ञों ने दावा किया है कि अत्यधिक स्क्रीन टाइमिंग बच्चों के सामाजिक विकास में बाधा बन सकती है।

"जब बच्चे स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तो वर्चुअल ऑटिज्म जाता है। जो ऑटिज्म है उसमें तीन लक्षण होते हैं, पहला, लैंग्वेज डेवलपमेंट नहीं होना, दूसरा, सोशल बिहेवियर में कमी और तीसरा, स्टीरियोटाइप बिहेवियर करना यानी एक ही काम को बार-बार करना, अपना सर या हाथ-पैर दीवार में मारनाजब बच्चे स्मार्टफोन [का] ज्यादा इस्तेमाल करते हैं तो ऐसी स्थिति निर्मित हो जाती है इसलिए हम इसको वर्चुअल ऑटिज्म बोलते हैं क्योंकि रियल ऑटिज्म नहीं है यह। रियल ऑटिज्म के जो लक्षण हैं वही बच्चों में दिखने लगते हैं," डॉ गौतम ने Sputnik India को बताया।

पिछली पीढ़ियों की तुलना में आजकल बच्चों की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक अधिक निरंतर पहुंच है। कुछ अध्ययनों से संकेत मिलता है कि बढ़ा हुआ स्क्रीन समय मेलानोप्सिन-संचार करने वाले न्यूरॉन्स और गामा-एमिनोब्यूट्रिक एसिड न्यूरोट्रांसमीटर में कमी से जुड़ा है, जिससे असामान्य व्यवहार, मानसिक और भाषाई विकास में कमी और अन्य समस्याएं होती हैं।
© AFP 2023 GREG BAKERPeople play computer games at an internet cafe in Beijing on September 10, 2021 (Photo by GREG BAKER / AFP)
People play computer games at an internet cafe in Beijing on September 10, 2021 (Photo by GREG BAKER / AFP) - Sputnik भारत, 1920, 27.08.2023
People play computer games at an internet cafe in Beijing on September 10, 2021 (Photo by GREG BAKER / AFP)

वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण

वर्चुअल ऑटिज़्म की परिभाषा यह है कि बच्चे में ऑटिज़्म का निदान नहीं किया गया है लेकिन विकार के लक्षण दिखाई दे रहे हैं। इसलिए, लक्षण ऑटिज्म के समान ही हैं। इन लक्षणों में विलंबित भाषा कौशल, विलंबित संज्ञानात्मक कौशल, असामान्य मनोदशा, अतिसक्रिय, आंखों के संपर्क से बचना आदि शामिल हैं।

"ऑटिज़्म का कोई कारण ज्ञात नहीं है जबकि वर्चुअल ऑटिज़्म का कारण पता है कि मोबाइल फ़ोन के कारण बच्चे अपनी दुनिया बना लेते हैं। सोशल इंटरेक्शन कम कर देते हैं, लैंग्वेज डेवलपमेंट में विलम्ब होने लगता है और उनका स्टेरोटीपीस बिहेवियर बढ़ता रहता है। गुस्सा करना, चिड़चिड़ापन और अपने आपको चोट पहुँचाने की कोशिश करना वर्चुअल ऑटिज़्म के लक्षण है," डॉ गौतम ने कहा।

अत्यधिक स्क्रीन टाइम के दुष्प्रभाव

अत्यधिक स्क्रीन समय एक बढ़ती चिंता का विषय है क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहा है। नए सर्वेक्षण के अनुसार, स्मार्टफोन के उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का प्रसार बढ़ गया है।
वैज्ञानिक रिपोर्टों में कहा जाता है कि जितनी जल्दी कोई युवा स्मार्टफोन पकड़ लेता है, उतनी ही कम उम्र में उसके खराब मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित होने की संभावना बढ़ जाती है।

वर्चुअल ऑटिज्म से कैसे बचा जा सकता है?

बच्चे की बुनियादी विकासात्मक आवश्यकताओं का सम्मान करना महत्वपूर्ण है। बच्चों को संवाद करना, सहानुभूति रखना और महत्वपूर्ण सामाजिक कौशल हासिल करना सीखना चाहिए। उन्हें दयालु व्यक्तियों के साथ आमने-सामने संपर्क और निरंतर संवेदी उत्तेजना की आवश्यकता होती है।

"बच्चे के माता-पिता या केयरटेकर जो हैं उनकी अहम भूमिका है कि समय सीमा निर्धारित नहीं करते हैं बच्चों के लिए जबकि समय सीमा निर्धारित करना बच्चों के लिए बहुत जरूरी है। मोबाइल फ़ोन से दूर रखना होगा बच्चे को और साथ ही आउटडोर एक्टिविटी बढ़ाना होगा और माता-पिता को भी बच्चों के साथ समय व्यतीत करना होगा," डॉ गौतम ने कहा।

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