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64 साल के बुजुर्ग ने कश्मीर के केसर को नोएडा में उगा कर किया करिश्मा

केसर एक ऐसा मसाला है जो भारत में मात्र जम्मू कश्मीर में पाया जाता है क्योंकि इसको उगाने के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है लेकिन 64 साल के नोएडा के एक सेवानिव्रत इंजीनियर रमेश गेरा ने अपनी चोटी से लैब में केसर उगा कर तहलका मचा दिया है।
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रमेश अपने नौकरी के दौरान विश्व भर में जाते रहे हैं परंतु जब वे 2002 में दक्षिण कोरिया गए तो उन्होंने अपने 6 महीने के प्रवास के दौरान वहां से उन्नत कृषि तकनीकों जैसे हाइड्रोपोनिक खेती, माइक्रोग्रीन्स और इनडोर केसर की खेती के बारे में सीखा
मूल रूप से रमेश गेरा हरियाणा के हिसार के हैं और अब भी वे समय मिलने पर अपने खेलों को देखने जाते रहते हैं।
रमेश ने 1980 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की, जिसके बाद उन्होंने कई मल्टी नैशनल कंपनीस में अपनी सेवाएं दीं और अंत में 2017 सेवानिव्रत हो गए, अपनी सेवानिवृत्ति के उपरांत रमेश ने उन्नत खेती पर कार्य करना प्रारंभ किया, जिसके उपरांत उन्होंने अपने घर पर ही प्रयोग करना आरंभ कर दिया।

"मैंने घर पर ही प्रयोगात्मक यूनिट बनाई क्योंकि मैं व्यवसाय से इंजीनियर हूँ और सभी प्रकार के प्रयोग मैंने अपने घर पर किए और सैंकड़ों बार प्रयोग करने के उपरांत मुझे सफलता मिली। केसर उगाने के बारे में जानकारी के लिए मैं कश्मीर गया और उनसे सलाह करने के बाद मुझे केसर के प्रयोग में सफलता मिलने लगी और 2022 के सितंबर महीने में मुझे पुरी सफलता मिल गई जिसके बाद मैंने पूर्ण तरह केसर उगाना आरंभ कर दिया," रमेश गेरा Sputnik India से कहते हैं।

विश्व भर में केसर के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक ईरान है जहां लगभग 90 प्रतिशत केसर की फसल होती हैं, अगर भारत की बात की जाए तो इसकी पैदावार केवल कश्मीर में ही होती है। तब रमेश ने कई प्रयोग किए जिनके बाद उन्होंने नोएडा के एक कमरे में केसर उगाने में सफलता प्राप्त की।
A Kashmiri farmer works at a saffron field in Pampore, south of Srinagar, Sunday, April. 9, 2023.

"मिट्टी पर आधारित केसर की खेती मात्र कश्मीर में होती है और हमारी तकनीक मिट्टी पर आधारित नहीं है। कश्मीर में केसर मात्र पंपोर, बडगाम और किश्तवाद जैसी जगहों में होता है क्योंकि वहां की मिट्टी बाकि कश्मीर से भिन्न है और हमारी तकनीक मिट्टी पर आधारित नहीं है तो हमें मात्र वातावरण की आवश्यकता होती है और इसी प्रकार हमने कृतिम वातावरण केसर के लिए तैयार किया," रमेश गेरा ने Sputnik India को बताया।

रमेश गेरा ने अपनी लैब बनाने के लिए 4 लाख रुपये और केसर उगाने के लिए बीज में 2 लाख रुपये का खर्चा किया, और इस 100 स्क्वेर फिट की लैब से वे लोगों को केसर उगाने का प्रशिक्षण देते हैं। उनकी यह लैब डेमो के तौर पर प्रयोग की जाती है जिससे उनके छात्र इससे सीख सकें।

"हम अपनी लैब में कश्मीर की तरह वातावरण को नियंत्रित करते हैं। हमारी फसल बहुत अच्छी आती है और यह खुले मैं उगाने से कहीं बेहतर है क्योंकि खुले मैं प्रदूषण, मिट्टी से बीमारी और तापमान के बढ़ने से पौधों के लिए संकट पैदा होता है। अभी कश्मीर के पुलवामा में इंडोर तकनीक का प्रयोग प्रारंभ होने जा रहा है," रमेश गेरा ने कहा।

रमेश ने अंत में बताया कि उन्होंने यह हाइड्रोपोनिक फ़ार्मिंग से आरंभ किया था, इसके बाद आज वे चार सब्जेक्ट पर काम कर रहे हैं और भविष्य में वे करडोसेप्स की खेती शीघ्र ही प्रारंभ करने जा रहे हैं जिसका बाजार में मूल्य 2-3 लाख रुपये तक होता है। इसके आगे उनका लक्ष्य यह है कि वे नई नई खेती के तरीकों की खोज करके छात्रों को ज्ञान वितिरित करने में कार्यरत हैं।
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