"पंजाब में 78 प्रतिशत कुओं को ओवरएक्सप्लिटेड माना जाता है और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को पूरी तरह से 2025 तक गंभीर रूप से कम भूजल उपलब्धता का अनुभव करने की भविष्यवाणी की जाती है," रिपोर्ट में कहा गया है।
"भारत सरकार की हालिया रिपोर्ट में पहले से ही कई गंभीर महत्वपूर्ण क्षेत्रों और कम गंभीर महत्वपूर्ण क्षेत्रों को सूचित किया गया है, अभी बहुत कम सुरक्षित क्षेत्र बचे हैं। मेरे विचार से पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटकर 1,500 से भी कम हो गई है, जिसके गंभीर आर्थिक प्रभाव होंगे तो एक ओर हम पानी की आर्थिक कमी से जूझ रहे हैं वहीं दूसरी ओर, हम जल संसाधनों के संबंध में स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं," प्रोफेसर कृष्णा राज ने बताया।
"यह एक गंभीर मुद्दा रहा है, लेकिन सरकार द्वारा पानी तक पहुंचने के प्रयास किए गए हैं जो पानी पर दृष्टि रखती है और उन नालों और झीलों को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है, जो पुरी तरह से उचित नहीं है। इसलिए, इस स्थिति को देखते हुए, विशेष रूप से गंभीर आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं। इस बार कर्नाटक में मानसून नहीं आने के कारण लगभग सभी जिले सूखे का सामना कर रहे हैं। तो पहले से ही इस स्थिति को देखते हुए खाने के सामन की कीमतें बढ़ी हैं और उत्पादन कम हो गया है," कृष्णा राज ने कहा।
"भूजल का प्रभाव सबसे पहले कृषि और निश्चित रूप से उद्योग पर पड़ेगा। इसलिए, कुछ उद्योग उत्पादन और उपयोग के लिए भूजल की अनुपलब्धता के कारण कुछ निश्चित शहरों में नहीं आ रहे हैं, जिससे गंभीर आर्थिक परिणाम होंगे। इसलिए उत्पादन और फसल पैटर्न के संदर्भ में पानी की अनुपलब्धता के कारण समय के साथ साथ बदलाव आएंगे और आने वाले दिनों में पानी की कमी से फसल का पैटर्न भी बदल जाएगा," भारत में भूजल स्तर गिरने वाली UN रिपोर्ट पर प्रोफेसर कृष्णा राज ने कहा।
"सरकारों ने ध्यान दिया होता तो यह हालत नहीं होते।1996 से मैं कह रहा हुँ की भूजल का इंडस्ट्री में प्रयोग नहीं करना चाहिए इसकी जगह सतह के पानी को ही रीसाइकल और दोबारा इसका प्रयोग करना चाहिए, जब तक हम सतह के पानी को दोबारा काम में नहीं लेंगे तब तक कुछ नहीं होगा," जल पुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा।