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पानी की कमी से देश में गंभीर आर्थिक हालात उत्पन्न हो सकते हैं: प्रो कृष्णा राज UN की भूजल रिपोर्ट पर

भारत में भूजल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है, एक्सपर्ट की मानें तो भारत में यह 62 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा जारी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में इंडो-गंगेटिक बेसिन के कुछ क्षेत्रों में भूजल में कमी दर्ज की गई है।
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रिपोर्ट के अनुसार भारत के पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2025 तक भूजल के गंभीर रूप से कम होने का अनुमान है।
संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय-पर्यावरण और मानव सुरक्षा संस्थान (UNU-EHS) द्वारा "इंटरकनेक्टेड डिजास्टर रिस्क रिपोर्ट 2023" शीर्षक से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि पर्यावरण के छह महत्वपूर्ण बिंदुओं के निकट विश्व पहुंच रहा है जिनमें तेजी से विलुप्त होना, भूजल की कमी, पहाड़ी ग्लेशियरों का पिघलना, अंतरिक्ष में मलबा, असहनीय गर्मी और अनिश्चित भविष्य संलग्न हैं।

"पंजाब में 78 प्रतिशत कुओं को ओवरएक्सप्लिटेड माना जाता है और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को पूरी तरह से 2025 तक गंभीर रूप से कम भूजल उपलब्धता का अनुभव करने की भविष्यवाणी की जाती है," रिपोर्ट में कहा गया है।

UNU-EHS के प्रमुख लेखक और वरिष्ठ विशेषज्ञ जैक ओ'कॉनर ने कहा कि हम इन टिपिंग बिंदुओं पर पहुंचते हैं, हम पहले से ही प्रभावों का अनुभव करना प्रारंभ कर देंगे। हमारी रिपोर्ट इसमें सहायता कर सकती है।
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Sputnik ने UN रिपोर्ट को लेकर भारत में सेंटर फॉर इकनॉमिक स्टडीस एण्ड पॉलिसी में प्रोफेसर कृष्णा राज से बात की। उन्होंने माना कि यह बहुत गंभीर समस्या है और वह स्वयं भी भूजल स्तर में गिरावट के रुझानों को देख रहे हैं और विश्व में पानी का दोहन पीने के अतिरिक्त औद्योगिक आवश्यकताओं और कृषि क्षेत्रों में किया जाता है।

"भारत सरकार की हालिया रिपोर्ट में पहले से ही कई गंभीर महत्वपूर्ण क्षेत्रों और कम गंभीर महत्वपूर्ण क्षेत्रों को सूचित किया गया है, अभी बहुत कम सुरक्षित क्षेत्र बचे हैं। मेरे विचार से पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता घटकर 1,500 से भी कम हो गई है, जिसके गंभीर आर्थिक प्रभाव होंगे तो एक ओर हम पानी की आर्थिक कमी से जूझ रहे हैं वहीं दूसरी ओर, हम जल संसाधनों के संबंध में स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं," प्रोफेसर कृष्णा राज ने बताया।

आगे उन्होंने बताया कि देश में कई राज्य पानी को लेकर टकराव की स्थिति में हैं। देश के दक्षिणी राज्य कर्नाटक और तमिलनाडु के साथ कुछ अन्य राज्यों की आर्थिक गतिविधियां पानी पर आधारित हैं और इसलिए वे सब पानी के बंटवारे के लिए पिछले कई दशकों से लड़ रहे हैं। इसी तरह, पूरे भारत में कई जल संघर्ष चल रहे हैं।

"यह एक गंभीर मुद्दा रहा है, लेकिन सरकार द्वारा पानी तक पहुंचने के प्रयास किए गए हैं जो पानी पर दृष्टि रखती है और उन नालों और झीलों को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है, जो पुरी तरह से उचित नहीं है। इसलिए, इस स्थिति को देखते हुए, विशेष रूप से गंभीर आर्थिक प्रभाव हो सकते हैं। इस बार कर्नाटक में मानसून नहीं आने के कारण लगभग सभी जिले सूखे का सामना कर रहे हैं। तो पहले से ही इस स्थिति को देखते हुए खाने के सामन की कीमतें बढ़ी हैं और उत्पादन कम हो गया है," कृष्णा राज ने कहा।

अंत में उन्होंने कहा कि देश में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पानी की उपलब्धता पर भी पड़ रहा है क्योंकि आप जानते हैं कि वर्षा का पैटर्न समय के साथ कितना बदल गया है और निश्चित रूप से 2025 तक यह और भी बदतर होने जा रहा है। जो क्षेत्र पहले से ही कई क्षेत्रों में सबसे खराब प्रदर्शन कर रहे हैं, उनके लिए यह और भी बदतर होने जा रहा है।

"भूजल का प्रभाव सबसे पहले कृषि और निश्चित रूप से उद्योग पर पड़ेगा। इसलिए, कुछ उद्योग उत्पादन और उपयोग के लिए भूजल की अनुपलब्धता के कारण कुछ निश्चित शहरों में नहीं आ रहे हैं, जिससे गंभीर आर्थिक परिणाम होंगे। इसलिए उत्पादन और फसल पैटर्न के संदर्भ में पानी की अनुपलब्धता के कारण समय के साथ साथ बदलाव आएंगे और आने वाले दिनों में पानी की कमी से फसल का पैटर्न भी बदल जाएगा," भारत में भूजल स्तर गिरने वाली UN रिपोर्ट पर प्रोफेसर कृष्णा राज ने कहा।

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भारत में "जलपुरुष" के नाम से लोकप्रिय एक प्रसिद्ध नदी पुनर्जीवन कर्ता और पर्यावरणविद् डॉ. राजेंद्र सिंह ने भी संयुक्त राष्ट्र द्वारा भविष्य में भारत के भूजल का स्तर और नीचे जाने पर कहा कि अभी भारत में लगभग 62 प्रतिशत पानी सूख चुका है और UN द्वारा जारी की गई रिपोर्ट बिल्कुल सही है कि 2025 तक पानी की लेवल देश में गिर जाएगा। आगे उन्होंने कहा कि इंडस्ट्री को सतह का पानी दुबारा साफ करके प्रयोग में लाना चाहिए।

"सरकारों ने ध्यान दिया होता तो यह हालत नहीं होते।1996 से मैं कह रहा हुँ की भूजल का इंडस्ट्री में प्रयोग नहीं करना चाहिए इसकी जगह सतह के पानी को ही रीसाइकल और दोबारा इसका प्रयोग करना चाहिए, जब तक हम सतह के पानी को दोबारा काम में नहीं लेंगे तब तक कुछ नहीं होगा," जल पुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह ने कहा।

37 सालों से चंबल में पानी के लिए काम करने वाले राजेंद्र सिंह ने आगे कहा कि पानी की कमी से आगे आने वाले समय में हालत बहुत भयानक हो जाएंगे। इस हालत को ठीक करने का कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं और पानी न होने से समाज में अराजकता आ सकती है।
हालांकि, विश्व को लेकर रिपोर्ट में बताया गया कि सऊदी अरब जैसे कुछ देश पहले ही भूजल जोखिम टिपिंग प्वाइंट को पार कर चुके हैं, जबकि भारत समेत अन्य देश इससे अधिक दूर नहीं हैं।
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