"अफगान गणराज्य के राजनयिकों ने मिशन को पूरी तरह से भारत सरकार को सौंप दिया है। मिशन के भाग्य का निर्णय करने का उत्तरदायित्व अब भारत सरकार पर है, जिसमें तालिबान राजनयिकों को सम्मिलित करने की संभावना भी निहित है," बयान में कहा गया।
"अफ़गान दूतावास के बंद होने से तालिबान से पहली वाली सरकार से भारत का अंतिम संबंध भी समाप्त हो गया। दूतावस के बंद होने के बाद देखना होगा कि आगे अफगानिस्तान में कैसे परिवर्तन आते हैं, फिर देखा जाएगा। अभी तालिबान सरकार और भारत के मध्य किसी प्रकार के राजनयिक संबंध नहीं है, और बिना संबंधों के दूतावास नहीं खोला जा सकता है," पूर्व राजनयिक सुरेश के गोयल ने कहा।
"तालिबान के अफगानिस्तान में वापस आने से पहले के सभी कर्मी इस दूतावास में काम कर रहे थे। एंबेसडर और दूतावास के सभी कर्मियों का जुड़ाव पिछली अफ़गान सरकार के साथ था। इस दूतावास को काम करने के लिए काबुल से आर्थिक सहायता नहीं मिल रही थी। इसलिए बिना किसी सहायता के दूतावास चलाना बहुत जटिल हो गया होगा," पूर्व राजनयिक ने बताया।
"अफगानिस्तान को सहायता भारत की विभिन्न एजेंसियों के जरिए भेजी जा रही है, वे सभी अफगानिस्तान के साथ डायरेक्ट कांटेक्ट में है इसलिए वहां भेजे जाने वाली सहायता में कोई कमी नहीं आएगी। इसके अतिरिक्त भारत सरकार किसी भी दूतावास को सीधे स्तर पर सहायता नहीं कर सकती है, और संबंधों की बात करे तो अफगानिस्तान के साथ कि भारत के साथ औपचारिक संबंध नहीं है," राजनयिक गोयल ने बताया।