बुधवार 22 नवंबर को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के एक करीबी सूत्र ने Sputnik को बताया कि पाकिस्तान भी 2024 में ब्रिक्स में शामिल होना चाहता है और सदस्यता के मामले में रूस की सहायता पर उम्मीद करता है।
वहीं, ब्रिक्स में पाकिस्तान की संभावित सदस्यता पर भारत का रवैया देश के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है और पाकिस्तान सक्रिय रूप से सदस्य देशों, विशेषतः रूस और चीन का समर्थन हासिल करने की कोशिश करता है।
ऐसे में Sputnik ने कुछ विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और विश्लेषकों से बात की जिन्होंने पाकिस्तान की ब्रीक्स सदस्यता के समक्ष चुनौतियों के बारे विस्तार से बताया।
पाकिस्तान के भू-राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. नज़ीर हुसैन ने कहा, “ब्रिक्स में पाकिस्तान के सम्मिलित होने से दक्षिण एशियाई राजनीति और प्रतिस्पर्धा भू-राजनीति से भू-अर्थशास्त्र में बदल जाएगी। यह एक आदर्श बदलाव होगा, विशेषतः भारत, चीन और पाकिस्तान की प्रतिद्वंद्विता के नजरिए से।”
उन्होंने आगे कहा, '”इस मामले में भारत एक बड़ी चुनौती है क्योंकि पिछले साल भारत ने ब्रिक्स के लिए पाकिस्तान के आवेदन को रोकने के लिए वीटो का प्रयोग किया था। बहरहाल, पाकिस्तान का आर्थिक संकट इस मंच पर कहीं अधिक गंभीर बाधा है। इसलिए इन देशों की अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए यह एक वास्तविक बात है। पाकिस्तान के आर्थिक पुनरुद्धार के लिए उसे सामूहिक और क्षेत्रीय विकास के लिए इस संगठन का हिस्सा होना चाहिए।”
Sputnik ने एक भू-राजनीतिक विश्लेषक से ब्रिक्स में पाकिस्तान को सम्मिलित करने के मूल्यांकन की प्रक्रिया में चीन और रूस की भूमिका के बारे में पूछा।
उन्होंने कहा, “यह राष्ट्रीय हितों की दुनिया है। इस क्षेत्र में चीन और रूस के अपने भू-आर्थिक और भू-रणनीतिक हित भी हैं। चीन इस मंच के माध्यम से अपनी बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) को लागू करना चाहता है और बिना पाकिस्तान के इस महत्वाकांक्षी परियोजना को समय रहते पूरा करना मुश्किल होगा। ऐसे में पाकिस्तान को सदस्यता देने में भारत का रवैया रूस और चीन के लिए मुख्य चुनौतियों में से एक है।”
Sputnik संवाददाताओं ने विशेषज्ञ से पाकिस्तान की ब्रिक्स सदस्यता के लिए भारत के विरोध और क्षेत्रीय ब्लॉक पर इसके प्रभाव के बारे में पूछा।
उन्होंने कहा, “जैसा कि हम जानते हैं, भारत पहले से ही ब्रिक्स समूह में है और अमेरिका के साथ एक शानदार हनीमून भी मना रहा है, इसलिए वह पाकिस्तान को ब्रिक्स में सम्मिलित करने का विरोध नहीं कर सकता। हालांकि यह रूस और चीन की कूटनीति पर निर्भर करता है कि क्या वे इस समय भारत को समझा पाएंगे या नहीं"।
विशेषज्ञ ने अपनी बात में जोड़ते हुए कहा, “दुर्भाग्यवश, पाकिस्तान अभी भी अमेरिका और यूरोपीय संघ के खेमे में है। इस प्रकार, उसे निश्चित रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ की ओर से बाधाओं का सामना करना पड़ेगा। यह सही समय है जब पाकिस्तान को अन्य क्षेत्रीय देशों की तरह इस संगठन का हिस्सा बनने का फैसला लेना चाहिए तथा अमेरिका को अलविदा कहना चाहिए।”
इस बीच, Sputnik ने इस्लामाबाद में इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटजिक स्टडीस से जुड़े विदेश नीति विश्लेषक तैमूर फहद खान से भी संपर्क किया।
उन्होंने कहा, “ब्रिक्स में पाकिस्तान की संभावित सदस्यता से दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके चलते समूह में दक्षिण एशिया का व्यापक प्रतिनिधित्व होगा और आर्थिक ब्लॉक की समग्र ताकत और छवि में वृद्धि होगी।”
खान ने इस बात पर बल दिया कि पाकिस्तान के ब्रिक्स सदस्य बनने से क्षेत्र और उससे बाहर के अन्य देश ब्रिक्स में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित होंगे, जिससे अन्य संभावित सदस्यों के लिए मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।”
उन्होंने अपनी बात पूर्णतः समाप्त करते हुए कहा, “संगठन में सम्मिलित होने में पाकिस्तान को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जिसमें भारत का उग्र विरोध और पश्चिमी सहयोगियों और अमेरिका से राजनीतिक और आर्थिक दबाव की संभावना शामिल है।”