"राम मंदिर समारोह में कांग्रेस सीधे तौर पर नहीं जा रही है और 22 तारीख के आस-पास कांग्रेस एक यात्रा भी आरम्भ कर रही है। लेफ्ट लिबरल विचारधारा के प्रभाव में आकर कांग्रेस ने यह फैसला किया है जो पार्टी के लिए ख़ुदकुशी करने जैसा फैसला है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता चाहते थे कि पार्टी कार्यक्रम में शामिल हो लेकिन जो कांग्रेस के अन्दर बाहरी लेफ्ट थिंक टैंक बैठे हैं वे नहीं चाहते थे कि कांग्रेस इस आयोजन में शामिल हो क्योंकि उनका मानना है कि इससे भाजपा को चुनाव में फायदा होगा, और इसलिए कांग्रेस ने ऐसा आत्मघाती फैसला किया है," पांडे ने टिप्पणी की।
"राम मंदिर कार्यक्रम में नहीं जाने के फैसले से साफ है कि कांग्रेस पार्टी को डर है कि 80 बनाम 20 की लड़ाई में जो उसके मुख्य कोर वोटर के छिटकने का खतरा है। अब लोकसभा चुनाव में कुछ महीने ही बाकी है तो कांग्रेस पारंपरिक मुस्लिम वोट अपने पाले में सुनिश्चित रखना चाहती है। वहीं कांग्रेस नेता के राम मंदिर समारोह में नहीं जाने के फैसले से कांग्रेस ने हिन्दू विरोधी और अब राम विरोधी होने का आम चुनाव से पहले भाजपा को निशाना साधने का अवसर भी दे दिया है। भाजपा पहले से ही कांग्रेस पार्टी पर राम के खिलाफ होने का आरोप लगाती रही है," पांडे ने कहा।
"22 जनवरी को राम मंदिर समारोह का बहिष्कार करने का निर्णय कांग्रेस नेतृत्व के सबसे अविवेकपूर्ण और गलत सलाह वाले निर्णयों में गिना जाएगा। कांग्रेस ने उन वोटर को चुनाव से पहले ही खो दिया है जो चुनाव के अंतिम क्षण अपना मत बनाते हैं और हार-जीत के फैसले में निर्णायक भूमिका का निर्वहन करते हैं। इसलिए यह पार्टी के लिए अपनी हिंदू विरोधी छवि से छुटकारा पाने का एक बड़ा मौका था। कांग्रेस ने इनकार करके, एक बड़ा अवसर गवां दिया है, इस प्रकार इसके राजनीतिक हाशिए पर आगे जाने का रास्ता तय हो गया है," पांडे ने टिपण्णी की।