विशेषज्ञ का कहना है कि भारतीय दूतावास द्वारा तालिबान के अधिकारी को संयुक्त अरब अमीरात के अबू धाबी में गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेने का निमंत्रण अफगानिस्तान के साथ भारत की "कुछ संबंध बनाए रखने की नीति" का हिस्सा है क्योंकि यह भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
रणनीतिक विशेषज्ञ कमर आगा ने Sputnik को बताया, "भारत को भी अमेरिका और कुछ यूरोपीय देशों की तरह इस तथ्य का एहसास हो गया है कि तालिबान सत्ता में रहेगा। वे कहीं नहीं जा रहे हैं। इसलिए उनके साथ कामकाजी संबंध बनाना जरूरी है।"
उन्होंने आगे कहा कि भले ही दुनिया तालिबान को अफगानिस्तान की वैध सरकार के रूप में मान्यता नहीं दे सकती है, लेकिन अधिकांश देशों की समझ में यह आया है कि उन्हें इस्लामिक अमीरात से निपटना होगा।
आगा ने कहा, "जैसा कि हम सब को पता है, तालिबान शासन को दुनिया द्वारा तब तक मान्यता नहीं दी जा सकती जब तक वह आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करता है। दुनिया के देश और तालिबान उस बिंदु पर पहुंच गए हैं जहां कामकाजी संबंध बनाए रखना सभी संबंधित पक्षों के हितों के लिए आवश्यक है।”
विशेषज्ञ के अनुसार नई दिल्ली यह कभी नहीं चाहेगी कि तालिबान भारत के लिए कोई मुसीबत पैदा करे, इसलिए उनके साथ संबंध बनाए रखने की नीति अपनाई गई है।
आगा ने कहा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बढ़ता तनाव भी भारत को पड़ोस में शांति सुनिश्चित करने के लिए तालिबान जैसे कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों के करीब लाने का एक कारक था।
विशेषज्ञ ने कहा, “अफगानिस्तान का निकटतम पड़ोसी भारत नहीं चाहता कि तालिबान अपनी धरती का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिए करने की अनुमति दे। कोई भी शत्रुतापूर्ण गतिविधि भारत का ध्यान भटका सकती है और उसकी विकास दर को प्रभावित कर सकती है।”
*संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के अधीन है।