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पाक चुनाव में सेना की तैनाती से लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित होने का खतरा: विशेषज्ञ

पाकिस्तान सरकार ने मंगलवार को औपचारिक रूप से 8 फरवरी के चुनावों के दौरान सुरक्षा प्रदान करने के लिए सेना के जवानों को तैनात करने का निर्णय लिया है।
Sputnik
सेना तैनात करने का फैसला कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवारुल हक काकर की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया।
दरअसल यह निर्णय पाकिस्तान चुनाव आयोग (ECP) द्वारा 8 फरवरी को देश भर में सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए 277,000 सैन्य कर्मियों को तैनात करने की मांग के बाद आया है।
हालांकि सेना ने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह चुनावी प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए किसी भी तरह की मदद देने को तैयार है क्योंकि देश उग्रवाद के बढ़ते खतरे का सामना कर रहा है।
पाकिस्तान ऐसे समय चुनाव की ओर बढ़ रहा है जब दक्षिण एशियाई देश अतिव्यापी राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संकटों का सामना कर रहा है। ऐसे में Sputnik India ने दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर और दक्षिण एशिया मामलों के जानकार अभिषेक प्रताप सिंह से बात की।

"नागरिक-सैन्य संबंध पाकिस्तान में बहुत कमजोर है। और, सैन्य प्रतिष्ठान, अधिकारी तथा बल (विशेष रूप से सेना) का हमेशा से प्रभुत्व रहा है। यह भी एक प्रकार से वहां की राजनीतिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इस फैसले से सेना की स्थिति मजबूत होगी जिससे कि चुनावों की पारदर्शीता प्रभावित होगी चूंकि सेना की मौजूदगी असर भी डालेगी," सिंह ने Sputnik India को बताया।

इस महीने की शुरुआत में, एक स्वतंत्र उम्मीदवार, कलीमुल्ला खान की अशांत उत्तरी वज़ीरिस्तान जिले में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके अलावा, उसी समय स्वाबी में पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के नेता शाह खालिद की भी मौत तब हो गई, जब मोटरसाइकिल पर सवार अज्ञात हमलावरों ने उनकी कार पर गोलीबारी की।
वहीं पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (PML-N) पार्टी के एक पूर्व मंत्री, असलम बुलेदी, उसी दिन दक्षिण-पश्चिमी तुरबत जिले में अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा निशाना बनाए जाने के बाद गंभीर रूप से घायल हो गए थे।

"विकास मॉडल, अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास के मापदंड के सभी स्तरों पर पाकिस्तान एक असफल स्टेट है। किसी भी पार्टी के सत्ता में सेना की मदद से या परोक्ष सहयोग से आने पर यदि वे वेलफेयर के एजेंडे को लागू कर पाते हैं तब तो बेहतर है लेकिन वेलफेयर के मापदंड पर असफल होने पर फिर से कहीं न कहीं इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों और अराजक समूह को उपद्रव करने का मौका मिलेगा। और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है," सिंह ने टिप्पणी की।

इसके अलावा विशेषज्ञ ने रेखांकित कि "पाकिस्तान के जो भी लीडर्स हैं चाहे वे इमरान खान की पार्टी हो या पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पम्ल-न ) दोनों के पास देश के विकास का कोई आर्थिक खाका नहीं है। और, बगैर आर्थिक खाके के चुनाव होना, सरकार का गठन, सरकार का गिरना और फिर सैन्य हस्तक्षेप पाकिस्तान में एक आम प्रक्रिया हो गई है इसमें आम नागरिक को कोई लाभ नहीं है।"

"इसकी संभावना है कि पूर्ण बहुमत नहीं होने पर सरकार बनाने की समस्या भी होगी। और, विकास के मुद्दे पर असफल होना तय है इससे देश में आंतरिक हिंसा और सामाजिक अशांति बढ़ेगा," सिंह ने बताया।

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