"नागरिक-सैन्य संबंध पाकिस्तान में बहुत कमजोर है। और, सैन्य प्रतिष्ठान, अधिकारी तथा बल (विशेष रूप से सेना) का हमेशा से प्रभुत्व रहा है। यह भी एक प्रकार से वहां की राजनीतिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इस फैसले से सेना की स्थिति मजबूत होगी जिससे कि चुनावों की पारदर्शीता प्रभावित होगी चूंकि सेना की मौजूदगी असर भी डालेगी," सिंह ने Sputnik India को बताया।
"विकास मॉडल, अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास के मापदंड के सभी स्तरों पर पाकिस्तान एक असफल स्टेट है। किसी भी पार्टी के सत्ता में सेना की मदद से या परोक्ष सहयोग से आने पर यदि वे वेलफेयर के एजेंडे को लागू कर पाते हैं तब तो बेहतर है लेकिन वेलफेयर के मापदंड पर असफल होने पर फिर से कहीं न कहीं इस्लामी कट्टरपंथी ताकतों और अराजक समूह को उपद्रव करने का मौका मिलेगा। और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं है," सिंह ने टिप्पणी की।
"इसकी संभावना है कि पूर्ण बहुमत नहीं होने पर सरकार बनाने की समस्या भी होगी। और, विकास के मुद्दे पर असफल होना तय है इससे देश में आंतरिक हिंसा और सामाजिक अशांति बढ़ेगा," सिंह ने बताया।