"यूरोपीय संघ के डेनमार्क समेत सभी देश चाहते हैं कि यह समझौता भारत के साथ शीघ्र हो। परंतु, यह भी सब जानते हैं कि यह बहुत कठिन है, क्योंकि यह पुरानी बातचीत 2007 में आरंभ हुई थी फिर 2013 तक चली। वर्ष 2022 में पुनः आरंभ हुई, जिस दौरान 6-7 दौर की बातचीत हुई। उसके बाद वे तीन अलग-अलग ट्रैक पर चले गए। दोनों को आशा है कि वे बातचीत पूरी करने में सफल रहेंगे, परंतु यह भी सब जानते हैं कि ये पेचीदा मामला है और इसमें थोड़ा वक्त लगेगा," गुलशन सचदेवा ने कहा।
"भारत जो नया प्रारूप लेकर आया था, उस पर कोई भी यूरोपीय देश नया समझौता नहीं कर सका। यूरोपीय कह रहे हैं कि अगर हम मोटे तौर पर बातचीत कर रहे हैं, तो एफटीए और एफडीआई से अलग निवेश समझौता होगा। डेटा सुरक्षा का मुद्दा मोड 4 सेवाओं में गतिशीलता का मुद्दा कई जटिल मुद्दे हैं। सार्वजनिक खरीद और विवाद निपटान के कई मुद्दे हैं इसलिए, इसमें थोड़ा समय लग सकता है," सचदेवा ने टिपण्णी की।
"खालिस्तान का मुद्दा कनाडा, ब्रिटेन और कुछ हद तक अमेरिका के साथ हो सकता है," सचदेवा ने अंत में कहा।