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भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता जल्द होने की कोई उम्मीद नहीं: विशेषज्ञ
भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता जल्द होने की कोई उम्मीद नहीं: विशेषज्ञ
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भारत और यूरोपीय संघ के मध्य एफटीए वार्ता 2007 में आरंभ हुई थी, परंतु विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों पर असहमति के कारण 2013 में उन्हें गतिरोध का सामना करना पड़ा।
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डेनिश संसद के अध्यक्ष सोरेन गाडे जेन्सेन के अनुसार व्यापार संबंधित मुद्दों के अतिरिक्त कुछ राजनीतिक मतभेद के चलते व्यापार समझौते में देरी हो रही है। जेनसेन ने आशा जताई है कि भारत में 2024 के आम चुनावों के बाद भारत और यूरोपीय संघ के मध्य मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत "पुनः आरंभ" होगी।Sputnik India ने इस मुद्दे पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में यूरोपीय अध्ययन केंद्र में प्रोफेसर डॉ. गुलशन सचदेवा से बात की और उन्होंने कहा कि अभी निकट भविष्य में इस विषय पर किसी भी तरह के समझौते होने की कोई आशा नहीं है।Sputnik India ने जब सचदेवा से सवाल किया कि मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित कुछ राजनीतिक मुद्दे क्या हैं तब उन्होंने कहा कि "किसी भी मुक्त व्यापार समझौते में, बहुत सी चीज़ों पर बातचीत होती है। मुख्य रूप से सभी यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के बाद, निवेश के मुद्दे पर अलग से बातचीत की जा रही है। भारत ने सभी देशों के साथ निवेश संरक्षण की जो द्विपक्षीय संधियों को किया था, पिछले कुछ वर्षों में वे सभी संधियाँ समाप्त हो चुकी हैं।"यूरोपीय संघ से आयातित कारों, वाइन और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ और यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाले भारतीय पेशेवरों के लिए वीज़ा व्यवस्था के उदारीकरण जैसे मुद्दों पर यूरोपीय और भारतीय उम्मीदें अलग-अलग हैं।सचदेवा के मुताबिक खालिस्तान का मुद्दा अगर कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है, तो यह भारत-यूके एफटीए को प्रभावित कर सकता है। भारत-ब्रिटेन वार्ता में भी खालिस्तान का मुद्दा खटक रहा है, भारत ने इस पर आपत्ति जताई है।
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भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौता जल्द होने की कोई उम्मीद नहीं: विशेषज्ञ
17:11 08.03.2024 (अपडेटेड: 17:12 08.03.2024) भारत और यूरोपीय संघ के मध्य एफटीए वार्ता 2007 में आरंभ हुई थी, परंतु विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों पर असहमति के कारण 2013 में उन्हें गतिरोध का सामना करना पड़ा।
डेनिश संसद के अध्यक्ष सोरेन गाडे जेन्सेन के अनुसार व्यापार संबंधित मुद्दों के अतिरिक्त कुछ राजनीतिक मतभेद के चलते व्यापार समझौते में देरी हो रही है। जेनसेन ने आशा जताई है कि भारत में 2024 के आम चुनावों के बाद भारत और यूरोपीय संघ के मध्य मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत "पुनः आरंभ" होगी।
Sputnik India ने इस मुद्दे पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में यूरोपीय अध्ययन केंद्र में प्रोफेसर डॉ. गुलशन सचदेवा से बात की और उन्होंने कहा कि अभी निकट भविष्य में इस विषय पर किसी भी तरह के समझौते होने की कोई आशा नहीं है।
"यूरोपीय संघ के डेनमार्क समेत सभी देश चाहते हैं कि यह समझौता भारत के साथ शीघ्र हो। परंतु, यह भी सब जानते हैं कि यह बहुत कठिन है, क्योंकि यह पुरानी बातचीत 2007 में आरंभ हुई थी फिर 2013 तक चली। वर्ष 2022 में पुनः आरंभ हुई, जिस दौरान 6-7 दौर की बातचीत हुई। उसके बाद वे तीन अलग-अलग ट्रैक पर चले गए। दोनों को आशा है कि वे बातचीत पूरी करने में सफल रहेंगे, परंतु यह भी सब जानते हैं कि ये पेचीदा मामला है और इसमें थोड़ा वक्त लगेगा," गुलशन सचदेवा ने कहा।
Sputnik India ने जब सचदेवा से सवाल किया कि मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित कुछ राजनीतिक मुद्दे क्या हैं तब उन्होंने कहा कि "किसी भी मुक्त व्यापार समझौते में, बहुत सी चीज़ों पर बातचीत होती है। मुख्य रूप से सभी यूरोपीय अर्थव्यवस्थाओं के बाद, निवेश के मुद्दे पर अलग से बातचीत की जा रही है। भारत ने सभी देशों के साथ निवेश संरक्षण की जो द्विपक्षीय संधियों को किया था, पिछले कुछ वर्षों में वे सभी संधियाँ समाप्त हो चुकी हैं।"
"भारत जो नया प्रारूप लेकर आया था, उस पर कोई भी यूरोपीय देश नया समझौता नहीं कर सका। यूरोपीय कह रहे हैं कि अगर हम मोटे तौर पर बातचीत कर रहे हैं, तो एफटीए और एफडीआई से अलग निवेश समझौता होगा। डेटा सुरक्षा का मुद्दा मोड 4 सेवाओं में गतिशीलता का मुद्दा कई जटिल मुद्दे हैं। सार्वजनिक खरीद और विवाद निपटान के कई मुद्दे हैं इसलिए, इसमें थोड़ा समय लग सकता है," सचदेवा ने टिपण्णी की।
यूरोपीय संघ से आयातित कारों, वाइन और डेयरी उत्पादों पर टैरिफ और यूरोपीय संघ में प्रवेश करने वाले भारतीय पेशेवरों के लिए वीज़ा व्यवस्था के उदारीकरण जैसे मुद्दों पर यूरोपीय और भारतीय उम्मीदें अलग-अलग हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा ने जिस तरह खालिस्तान सनार्थकों को जगह दी, उसके समर्थन में कई यूरोपीय देशों ने उनका समर्थन किया है, जिसके चलते भारत ने कई बार उन देशों के खिलाफ खालिस्तानी ताकतों को समर्थन देने के मामले में अपना विरोध जताया है।
सचदेवा के मुताबिक खालिस्तान का मुद्दा अगर कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है, तो यह भारत-यूके एफटीए को प्रभावित कर सकता है। भारत-ब्रिटेन वार्ता में भी खालिस्तान का मुद्दा खटक रहा है, भारत ने इस पर आपत्ति जताई है।
"खालिस्तान का मुद्दा कनाडा, ब्रिटेन और कुछ हद तक अमेरिका के साथ हो सकता है," सचदेवा ने अंत में कहा।