जम्मू में हमलों से उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा प्रचार मिलता है। ज्यादातर हमले सेना के क़ाफिलों पर हो रहे हैं, यह आतंकवादियों की नई रणनीति है जिससे उन्हें दोहरा फ़ायदा है। पहला सेना पर सीधे हमला करके वे अपनी ताक़त दिखा रहे हैं दूसरा नागरिकों पर हमले के बाद होने वाली आलोचना से उनका बचाव हो रहा है।
जबकि कश्मीर में आतंकवादी लंबे अरसे से सेना पर या खुली सड़क पर हमला नहीं कर पा रहे, बल्कि अकेले कश्मीरी नागरिकों, कश्मीरी सुरक्षा कर्मियों या बाहर से आए हुए मज़दूरों को निशाना बना रहे हैं।
सभी हमलों में आतंकवादियों ने होशियारी से घात लगाई थी, उन्हें सेना के आने-जाने का पता था और हमले की जगह बहुत सावधानी से चुनी गई थी। 8 जुलाई को कठुआ में हुए हमले में सड़क के मोड़ को चुना गया। इस खराब सड़क पर गाड़ी 15-20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ही चल पाती है और मोड़ पर वह बहुत धीमी रफ्तार पर थी जिसे घात लगाए बैठे आतंकवादियों ने आसानी से निशाना बना लिया।
आतंकवादियों को जम्मू में वे सारे फ़ायदे मिल रहे हैं जो कश्मीर में नहीं हैं। जम्मू का इलाक़ा, जो पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला के दक्षिण में है, लगभग 26000 वर्ग किमी है जबकि पीर पंजाल के उत्तर में कश्मीर का लगभग 15000 वर्ग किमी। जम्मू में जंगल-पहाड़ का इलाक़ा ज्यादा है जहां सुरक्षा बलों के लिए तेज़ी से कार्रवाई करना मुश्किल है। कश्मीर घाटी में सड़कों का जाल है और किसी भी वारदात के बाद सुरक्षा बलों के लिए पीछा करना या घेरा डालना आसान है।
भारतीय सेना की श्रीनगर स्थित चिनार कोर के पूर्व कमांडर ले. जनरल डी. पी. पांडे का कहना है कि जम्मू और कश्मीर के भूगोल में बहुत अंतर है।
उन्होंने कहा, "कश्मीर की तुलना में जम्मू का इलाक़ा बहुत बड़ा है। वारदात के बाद पहाड़ और जंगलों में छिपना आसान है जबकि सेना के लिए उन्हें तलाश कर पाना कठिन। घने जंगलों में ड्रोन भी कारगर नहीं होता, इसी का फ़ायदा आतंकवादी उठाते हैं।"
पाकिस्तान से घुसपैठ के कई रास्ते पीरपंजाल से होकर आते हैं जहां से जम्मू आना आसान है। इन पहाड़ों में बस्तियां बहुत दूर-दूर हैं इसलिए सेना के लिए आतंकवादियों का सुराग हासिल करना मुश्किल होता है। जम्मू लंबे अरसे से आतंकवाद से मुक्त और शांतिपूर्ण था इसलिए यहां कोई भी आतंकवादी वारदात बहुत ज्यादा चर्चित होती है।
जनरल पांडे ने कहा, "आतंकवादी मुख्य रूप से संदेश देना चाहते हैं कि आतंकवाद पूरे जम्मू-कश्मीर में है। हालांकि हाल की घटनाएं जम्मू में 10 साल या 20 साल पहले हुई आतंकवादी घटनाओं की तुलना में नगण्य हैं लेकिन ये ज्यादा ध्यान खींचती हैं। आतंकवादियों का यही उद्देश्य है।"
पहले आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों के लिए खासतौर बनाई गई राष्ट्रीय राइफल्स की तीन फोर्स जम्मू इलाक़े में होती थीं, जो एक डिवीज़न के आकार की होती है। चीन के साथ तनाव बढ़ने के बाद इनमें से एक फोर्स को 2021 में लद्दाख भेज दिया गया। इससे जम्मू में कार्रवाई करने वाले सैनिकों की तादाद में कमी आ गई। आतंकवादियों ने इसका फ़ायदा उठाया। जम्मू में आतंकवाद लगभग खत्म हो गया था, इसलिए आतंकवादियों के लिए उसे दोबारा ज़िंदा करना ज़रूरी था।