पहले अंतरिक्ष में मुख्यतः एकल उपग्रह ही भेजे जाते थे, लेकिन अब वहां सैकड़ों छोटे अंतरिक्ष यानों के समूह उड़ान भरते हैं। मास्को भौतिक-तकनीकी संस्थान के गणितीय मॉडलिंग और अनुप्रयुक्त गणित विभाग के प्रोफेसर मिखाइल ओवचिनिकोव ने एक रूसी समाचार पत्र में छोटे अंतरिक्ष यानों की विविधता और उनके उपयोग पर जानकारी साझा की।
उन्होंने कहा, "छोटे अंतरिक्ष यान 1970 के दशक में (रूस में भी) अस्तित्व में थे। कई वैज्ञानिकों ने 1990 के दशक में पहली बार इन यानों के बारे में जाना। शुरू में ये यान छात्रों को प्रशिक्षण देने के उपकरण के रूप में बनाए गए थे।"
विशेषज्ञ के अनुसार, इनके विकास में एक नया मोड़ 1999 में आया, जब स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बॉब ट्विक्स ने अंतरिक्ष में एक नए प्रकार के उपग्रह क्यूबसैट (CubeSat) का उपयोग करने का सुझाव दिया। क्यूबसैट घन (क्यूब) के आकार का होता है, जिसका आयतन 1 लीटर और वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है।
इसका उद्देश्य छात्रों को अपनी अध्ययन अवधि के दौरान स्वयं सरल और सस्ते उपग्रह बनाने का अवसर प्रदान करना था। कैलिफोर्निया पॉलिटेक्निक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जोर्डी पूइग-सुआरी ने इन उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च करने के तरीके विकसित किए। उन्होंने विशेष "डिब्बों" (एडाप्टर) का निर्माण किया, जिनमें क्यूबसैट रखे जाते थे और वांछित समय पर इन्हें रॉकेट के अंतिम हिस्से से स्प्रिंग तंत्र द्वारा अलग किया जाता था।
मिखाइल ओवचिनिकोव ने कहा कि छोटे अंतरिक्ष यानों के विकास में अगला चरण समूह अंतरिक्ष उड़ानों का था। जब कई छोटे अंतरिक्ष यान एक साथ उड़ान भरते हैं, तो वे सामूहिक रूप से एक कार्य को पूरा कर सकते हैं। यदि इनमें से कोई उपग्रह खराब हो जाए, तो वित्तीय हानि न्यूनतम होगी और मिशन की सफलता पर इसका असर नहीं पड़ेगा। खराब उपग्रह को कक्षा से हटाने की लागत भी कम होती है, और उसकी जगह एक नया और उन्नत यान पृथ्वी से भेजा जा सकता है।
छोटे अंतरिक्ष यानों का बड़ा लाभ यह है कि इनका प्रक्षेपण अपेक्षाकृत सस्ता होता है। विशेशग़ के अनुसार, "हाल ही में, हमारे अनुप्रयुक्त गणित संस्थान के वैज्ञानिकों ने उद्योग सहयोगियों को सुझाव दिया कि 92 किलोग्राम वजन वाले छोटे अंतरिक्ष यान का उपयोग करके मंगल पर मिशन आयोजित किया जाए। इसके अलावा, केवल एक यान तक सीमित रहना आवश्यक नहीं है। इन उपग्रहों को समूह में भी भेजा जा सकता है, ताकि यदि एक खराब हो जाए, तो दूसरा यान गंतव्य तक पहुंच सके।"
मिखाइल ओवचिनिकोव ने कहा, "मेरा मानना है कि यह दशक अंतरग्रहीय मिशनों के लिए छोटे अंतरिक्ष यान के बढ़ते उपयोग के लिए उपयुक्त होगा। और अगला दशक उन अंतरग्रहीय अंतरिक्ष यानों के समूहों के स्वर्ण युग का गवाह बनेगा, जिनका मैंने पहले उल्लेख किया। हालांकि वर्तमान में छोटे अंतरिक्ष यानों के साथ ग्रहों के बीच के मिशन बहुत कम हैं, वे क्षुद्रग्रहों तक पहुंचने जैसे दिलचस्प कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। इसके लिए, सौभाग्य से, विशेष ब्रेकिंग तकनीक की आवश्यकता नहीं होती है। केवल क्षुद्रग्रह तक उचित गति से पहुंचना महत्वपूर्ण है।"