वैष्णव ने संवाददाताओं से कहा, "पिछले 1.5 वर्षों में हमारी टीमें स्टार्टअप्स, शोधकर्ताओं, प्रोफेसरों आदि के साथ मिलकर काम कर रही हैं। यह मॉडल भारतीय संदर्भ, भाषाओं, संस्कृति का विशेष ध्यान रखेगा और पक्षपात रहित होगा। सरकार आधारभूत मॉडल बनाने के लिए कम से कम छह डेवलपर्स के संपर्क में है, जिसमें 4-8 महीने लग सकते हैं। अगले कुछ महीनों में हमारे पास विश्व स्तरीय आधारभूत मॉडल होगा।"
डॉ पवन दुग्गल ने बताया, "ये नए AI मॉडल न केवल अधिक किफायती और प्रभावी हैं, बल्कि वे अधिक कुशल भी हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे ओपन-सोर्स हैं, जिससे वैश्विक ओपन-सोर्स समुदाय को सशक्त बनाने में सहायता मिल रही है। इस कारण, विभिन्न राष्ट्र अब इन मॉडलों को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ेंगे, जिससे AI विकास के दो स्पष्ट ब्लॉक उभरकर सामने आएंगे: एक पश्चिमी दुनिया और दूसरा चीन। दोनों के मध्य प्रतिस्पर्धा अंततः उपभोक्ताओं के लिए लाभप्रद सिद्ध होगी, क्योंकि उन्हें सस्ते, तेज़ और अधिक उन्नत AI मॉडल उपलब्ध होंगे।"
डॉ पवन दुग्गल ने बताया, "अब तक, भारत पश्चिमी AI मॉडल पर निर्भर था, लेकिन यदि उसे अपनी संप्रभुता और सुरक्षा बनाए रखनी है, तो उसे अपने स्वयं के मॉडल विकसित करने होंगे। ये मॉडल सुरक्षित, मजबूत और लचीले होने चाहिए और विशेष रूप से भारतीय डेटा पर केंद्रित होने चाहिए। इसके अतिरिक्त, भारत को अन्य देशों के साथ सहयोग करना चाहिए ताकि वह उनके अनुभवों से सीख सके और अपने लिए एक अनुकूलित AI मॉडल निर्मित कर सके।"
दुग्गल अंत में कहते हैं, "भारत न केवल दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भी है। इसलिए, इसके AI बाजार और उपयोगकर्ता इस उद्योग की दिशा निर्धारित करने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे। भारत का लक्ष्य केवल एक तकनीकी शक्ति बनना नहीं, बल्कि एक ऐसा AI पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना होना चाहिए जो समावेशी, सुरक्षित और वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित करने वाला हो।"