INS अर्णाला एक एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW-SWC) युद्धपोत है जो इस श्रेणी के 16 युद्धपोतों में से पहला है। ये अभय श्रेणी के युद्धपोतों का स्थान लेंगे जो रूसी मूल के पौक श्रेणी के थे। इनका निर्माण गार्डन रीच शिपबिल्डर्स और इंजीनियर्स (GRSE) और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड मिलकर कर रहे हैं।
यह युद्धपोत 77 मीटर लंबा और 1490 टन भार का है। इस तरह के युद्धपोतों का काम समुद्र तटवर्ती इलाक़ों के कम गहरे पानी में शत्रु की सबमरीन का पता लगाना और उन्हें नष्ट करना होता है। ये युद्धपोत कम तीव्रता के समुद्री युद्धों में भी भाग ले सकते हैं, गश्त लगा सकते हैं या मानवीय सहायता पहुंचाने के काम आ सकते हैं।
यह युद्धपोत शत्रु की सबमरीन को 60-70 मीटर की गहराई में भी तलाश करके उसे नष्ट कर सकता है। इस काम के लिए INS अर्णाला समुद्र के अंदर की जानकारी के लिए उन्नत सेंसर जैसे पोत में लगा हुआ सोनार अभय, पानी के अंदर संचार के सिस्टम(UWACS) और कम फ्रीक्वेंसी के गहराई में काम करने वाले सोनार (LFVDS) लगाए गए हैं।
शत्रु की सबमरीन को नष्ट करने के लिए हल्के टारपीडो, एंटी सबमरीन रॉकेट, एंटी टारपीडो डेकोय और समुद्री सुरंग बिछाने के उन्नत साधन भी इसमें लगाए गए हैं। सभी सिस्टम युद्ध प्रबंधन प्रणाली (CMS) से जुड़े हैं ताकि बहुत कम समय में कोई कार्रवाई की जा सके।
इन 16 युद्धपोतों के भारतीय नौसेना में शामिल होने से समुद्री सुरक्षा की सुदृढ़ बनाने में सहायता मिलेगी। भारतीय नौसेना इन 16 युद्धपोतों को भारत के प्रमुख 16 बंदरगाहों में तैनात करने की योजना बना रही है। इस श्रेणी के अगले युद्धपोत के इसी वर्ष नौसेना में शामिल होने की आशा है। भारत के बड़े क्षेत्र में फैले हुए तटवर्ती प्रदेश और समुद्र में खुदाई में लगे उद्योगों की सुरक्षा में ये युद्धपोत बड़ी भूमिका निभाएंगे।
हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्र तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है और इन युद्धपोतों से कम गहरे पानी में गश्त लगाने, चौकसी रखने और मानवीय संकट सहायता के काम में मदद मिलेगी। इनमें 80 प्रतिशत से ज्यादा स्वदेशी उपकरण लगाए गए हैं इसलिए इन युद्धपोतों के निर्माण से स्वदेशी पोत निर्माण उद्योग की क्षमताएं भी सामने आएंगी।