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भारत-रूस डिजिटल सहयोग से उभरेगा आत्मनिर्भर तकनीकी युग: विशेषज्ञ

भारत और रूस सूचना प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग को गहरा करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं और दोनों देशों के बीच रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्रों में सहयोग का इतिहास काफी पुराना है।
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मास्को और नई दिल्ली दुनिया भर में डिजिटल स्वतंत्रता हासिल करने के साथ-साथ पश्चिमी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता कम करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए एकतरफा प्रतिबंधों को देखते हुए भारत रूस के सबसे विश्वसनीय व्यापारिक साझेदारों में से एक के रूप में उभरा है।
दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार भारत और रूस के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों के बीच दोनों देशों ने सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और डिजिटलीकरण के क्षेत्र में अपने सहयोग को बढ़ाने पर चर्चा शुरू कर दी है।
रूस और भारत के बीच इस क्षेत्र में साझेदारी पर अधिक जानने के लिए ने Sputnik ने सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक डिजिटल स्टडीज़ में साइबर नीति शोधकर्ता राजेश मेनन से बात की।
डिजिटल स्वतंत्रता और लचीलेपन को बढ़ाने और मजबूत करने तथा एक आत्मनिर्भर प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए रूस और भारत के बीच सहयोग पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि रूस और भारत डिजिटल संप्रभुता का एक ऐसा मॉडल बनाने की स्थिति में हैं जो अलगाव पर नहीं, बल्कि संतुलन और विश्वास पर आधारित है।

राजेश मेनन ने कहा, "दोनों देशों के पास स्वतंत्र क्लाउड सिस्टम से लेकर संयुक्त साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल तक सुरक्षित डिजिटल बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और राजनीतिक इच्छाशक्ति है। ऐसी दुनिया में जहां अधिकांश डेटा प्रवाह पर मुट्ठी भर पश्चिमी निगमों का प्रभुत्व है, मास्को और नई दिल्ली के बीच सहयोग वैश्विक दक्षिण के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है।"

साइबर नीति शोधकर्ता मेनन आगे बताते हैं कि इस तरह की एक व्यावहारिक पहल रूस-भारत डिजिटल सुरक्षा और नवाचार केंद्र की स्थापना हो सकती है, जिसकी स्थापना मास्को और बेंगलुरु में संयुक्त रूप से की जाएगी। यह केंद्र अगली पीढ़ी के खतरा-सूचना सिस्टम, एन्क्रिप्शन एल्गोरिदम और एआई-आधारित विसंगति पहचान उपकरण विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर सकता है।

उन्होंने कहा, "यह केंद्र हार्डवेयर-स्तरीय साइबर सुरक्षा में रूस की ताकत को भारत की विशाल सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग प्रतिभा के साथ जोड़ता है। ऐसा प्लेटफ़ॉर्म सरकारी और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को प्रशिक्षण भी प्रदान कर सकता है, जिससे दोनों देशों को पश्चिमी सुरक्षा विक्रेताओं पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।"

रूस और भारत के बीच की वित्त और भुगतान प्रणालियों पर बात करते हुए राजेश मेनन कहते हैं कि रूस पहले से ही पश्चिमी भुगतान अवसंरचनाओं के एक सफल विकल्प, MIR का संचालन कर रहा है, जबकि भारत के RuPay और UPI प्लेटफ़ॉर्म दुनिया के सबसे उन्नत प्लेटफ़ॉर्मों में से हैं।

मेनन ने बताया, "एक संयुक्त कार्य बल इन प्रणालियों के बीच अंतर-संचालनीयता बनाने पर काम कर सकता है या ब्रिक्स ढांचे के भीतर सीमा पार व्यापार के लिए एक साझा डिजिटल निपटान तंत्र का संचालन भी कर सकता है। इससे न केवल द्विपक्षीय व्यापार अधिक लचीला बनेगा, बल्कि अंततः एक व्यापक गैर-पश्चिमी डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव भी रख सकता है।"

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और साइबर सुरक्षा पर साइबर नीति शोधकर्ता राजेश मेनन ने बताया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और साइबर सुरक्षा को साथ-साथ चलना चाहिए। दोनों देश पारदर्शिता, पूर्वाग्रह निवारण और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए नैतिक AI मानकों और डेटा प्रशासन सिद्धांतों को संयुक्त रूप से विकसित कर सकते हैं।

विशेषज्ञ राजेश कहते हैं, "उदाहरण के लिए, एक द्विपक्षीय AI नैतिकता परिषद नीतिगत सिफारिशों का मसौदा तैयार कर सकती है और ओपन-सोर्स अनुसंधान का समन्वय कर सकती है। रूस गहरी वैज्ञानिक विशेषज्ञता और मजबूत गणितीय परंपरा लाता है, तो भारत बड़े स्तर पर लागू करने की क्षमता और चुस्त नवाचार संस्कृति प्रदान करता है।"

अंत में मेनन कहते हैं कि डिजिटल स्वतंत्रता का अर्थ डिजिटल अलगाव नहीं है और इसका वास्तविक लक्ष्य डिजिटल पारिस्थितिकी प्रणालियों में विविधता लाना, तकनीकी आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना और निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है।
राजेश मेनन ने आगे बताया, "यदि रूस और भारत साझा बुनियादी ढाँचे, अंतर-संचालनीय प्लेटफार्मों और विश्वसनीय डेटा मानकों के माध्यम से इन प्रयासों का समन्वय कर सकें, तो वे वास्तव में बहुध्रुवीय डिजिटल व्यवस्था के निर्माण में वैश्विक नेता बन सकते हैं।"
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