राजेश मेनन ने कहा, "दोनों देशों के पास स्वतंत्र क्लाउड सिस्टम से लेकर संयुक्त साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल तक सुरक्षित डिजिटल बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता और राजनीतिक इच्छाशक्ति है। ऐसी दुनिया में जहां अधिकांश डेटा प्रवाह पर मुट्ठी भर पश्चिमी निगमों का प्रभुत्व है, मास्को और नई दिल्ली के बीच सहयोग वैश्विक दक्षिण के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है।"
उन्होंने कहा, "यह केंद्र हार्डवेयर-स्तरीय साइबर सुरक्षा में रूस की ताकत को भारत की विशाल सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग प्रतिभा के साथ जोड़ता है। ऐसा प्लेटफ़ॉर्म सरकारी और निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को प्रशिक्षण भी प्रदान कर सकता है, जिससे दोनों देशों को पश्चिमी सुरक्षा विक्रेताओं पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।"
मेनन ने बताया, "एक संयुक्त कार्य बल इन प्रणालियों के बीच अंतर-संचालनीयता बनाने पर काम कर सकता है या ब्रिक्स ढांचे के भीतर सीमा पार व्यापार के लिए एक साझा डिजिटल निपटान तंत्र का संचालन भी कर सकता है। इससे न केवल द्विपक्षीय व्यापार अधिक लचीला बनेगा, बल्कि अंततः एक व्यापक गैर-पश्चिमी डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव भी रख सकता है।"
विशेषज्ञ राजेश कहते हैं, "उदाहरण के लिए, एक द्विपक्षीय AI नैतिकता परिषद नीतिगत सिफारिशों का मसौदा तैयार कर सकती है और ओपन-सोर्स अनुसंधान का समन्वय कर सकती है। रूस गहरी वैज्ञानिक विशेषज्ञता और मजबूत गणितीय परंपरा लाता है, तो भारत बड़े स्तर पर लागू करने की क्षमता और चुस्त नवाचार संस्कृति प्रदान करता है।"