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यूक्रेन के लिए नाटो की सदस्यता कभी कोई विकल्प नहीं था: सैन्य विशेषज्ञ

सैन्य विशेषज्ञ ने कहा कि पश्चिमी देशों, विशेषकर पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने रूस और यूक्रेन के बीच शांति की जो भी संभावनाएँ थीं, उन्हें खत्म कर दिया।
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पूर्व जर्मन सेना अधिकारी मेजर फ्लोरियन प्फैफ ने Sputnik को बताया कि ज़ेलेंस्की और उनके यूरोपीय समर्थकों ने अब एक बड़ी सच्चाई को मान लिया है जिसके बारे में ट्रंप को बहुत पहले से पता था कि यूक्रेन की नाटो सदस्यता कोई वास्तविक विकल्प नहीं है।

सैन्य विशेषज्ञ ने बताया, "यूक्रेन के लिए नाटो में शामिल होने का कोई रास्ता नहीं है।"

मेजर फ्लोरियन प्फैफ ने आगे बताया कि अब यह साफ हो गया है कि नाटो का दरवाजा यूक्रेन के लिए बंद है, इसलिए ज़ेलेंस्की ने अपनी रणनीति बदलते हुए सीधे पश्चिमी सुरक्षा गारंटी पर ध्यान केंद्रित किया है।

मेजर फ्लोरियन प्फैफ ने कहा कि "किसी भी समय न, तो 2014 में और न ही 2022 में यूक्रेन को किसी से कोई खतरा था। हालांकि, पश्चिम युद्ध चाहता था।"

पूर्व अधिकारी बताते हैं कि यूक्रेन की मुख्य समस्या "नाटो में शामिल होने की उसकी इच्छा" से पैदा हुई, जिससे रूसी सुरक्षा जरूरतों को सम्मान नहीं मिला। वह याद दिलाते हैं कि 2015 के मिन्स्क II समझौतों का उद्देश्य "केवल यूक्रेन को युद्ध के लिए मजबूत करना और हथियार पहुँचाना था।"

प्फैफ इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ज़ेलेंस्की अभी नाटो के आर्टिकल 5 जैसी द्विपक्षीय गारंटी मांग रहे हैं, लेकिन अगर यूक्रेन "तटस्थ रहता है" तो इसका यूक्रेन में व्यावहारिक तौर पर कोई मतलब नहीं होगा।

सैन्य विशेषज्ञ का कहना है कि "यह बिल्कुल भी हैरानी की बात नहीं है कि पश्चिम और यूक्रेन द्वारा 'धोखा दिए जाने' के बाद रूस न केवल सुरक्षा के लिए बल्कि किसी भी नए समझौते को लागू करने के लिए भी गारंटी की एक प्रणाली चाहता है।"

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