शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और कचरा: कश्मीर के भूरे भालुओं के लिए क्या खतरे हैं?
© AFP 2023 IRSHAD KHANAn Indian Kashmiri wildlife official holds two new born bear cubs found in a park in Srinagar, 11 March 2007.
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रूस में भूरे भालुओं की बड़ी संख्या के कारण उनको लेकर लोग कम चिंतित हैं, लेकिन उनकी हिमालयी उप-प्रजाति खतरे में हो सकती है।
कश्मीर में हिमालयी भूरे भालू के भविष्य को लेकर चिंताएँ बढ़ रही हैं क्योंकि जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण की स्थिति में सुरक्षित जैविक गलियारा प्रदान करने में असफल रहने के कारण इस क्षेत्र की आलोचना की जा रही है।
यह समझा जाता है कि वे विलुप्त हो जाने के खतरे में हैं। अब वे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की लाल सूची में शामिल हैं।
एक गैर-सरकारी संगठन और जम्मू-कश्मीर के प्रशासन के संयुक्त अध्ययन के अनुसार शीर्ष शिकारी माने जानेवाले कश्मीरी भूरे भालू दक्षिण एशिया के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में स्थित होटलों द्वारा छोड़े गए जहरीले खाद्य कचरे को खाते हैं।
शहरीकरण का और कश्मीर की यात्रा करने की ओर पर्यटकों को आकर्षित करने की सरकारी योजना का परिणाम यह है कि भूरे भालू कचरा खाते हैं। हालांकि, यह इन प्रजातियों की सिर्फ एक समस्या है।
वैश्विक तापमान, विकासात्मक गतिविधियाँ, पर्यटन, धार्मिक तीर्थ यात्राएं, मानव-जानवर संघर्ष, निवास स्थान का नुकसान, हत्याएँ और फर, पंजे और अंगों के लिए अवैध शिकार अन्य समस्याएं हैं जिनके बारे में अध्ययन में लिखा गया है।
हिमालयी भूरे भालू कहाँ रहते हैं?
रूस और उत्तरी अमेरिका में रहने वाले भूरे भालू की उप-प्रजाति होने के नाते हिमालयी भालू चीन, भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नेपाल सहित देशों में वन्यजीव के प्रमुख जानवरों में से हैं।
भारत में भालू बड़े पैमाने पर जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में उत्तर-पश्चिमी और पश्चिमी हिमालय के क्षेत्र में रहते हैं। उनकी मायावी प्रकृति और उनके बड़े क्षेत्र में रहने के कारण उनका कम अध्ययन किया गया है।
कचरा प्रमुख दुश्मन है
भारतीय वन्यजीव संरक्षण गैर-लाभकारी संगठन वाइल्डलाइफ एसओएस और जम्मू और कश्मीर के वन्यजीव संरक्षण विभाग द्वारा किए गए अध्ययन ने इस प्रजाति के भविष्य का सकारात्मक वर्णन बिल्कुल नहीं किया।
"केंद्रीय वन्यजीव प्रभाव में भालू कचरे का आदि हो जाने पर विशेष ध्यान करनेवाला कश्मीर में हिमालयन भूरे भालू का पारिस्थितिक अध्ययन और मानव-भालू विवाद का अध्ययन" नामक अध्ययन के अनुसार, भालू के सभी खाने का 75 प्रतिशत हिस्सा कचरे से लिया गया।
यह उस तथ्य के बावजूद है कि अध्ययन के अनुसार भूरे भालू फल, पौधे, मछली और कीड़े खा सकते हैं।
भालुओं के 408 स्कैट एनालाइसिस में से 86 में प्लास्टिक बैग, मिल्क पाउडर और चॉकलेट कवर दिखाई दिए।
अध्ययन में कहा गया है कि अध्ययन चार महीनों के दौरान किया गया था और कचरा स्कैट्स में हर महीने दिखाई दिया था। अक्टूबर में सबसे कम कचरा दिखाई दिया था, संभव है कि इस स्थिति का कारण उस महीने पर्यटकों की कम संख्या है।
अध्ययन करनेवाले दल ने 8 जुलाई से और 28 अक्टूबर 2021 तक कैमरा ट्रैपिंग पर भी बड़ा भरोसा किया था।
सैकड़ों कैमरा ट्रैपों से मिली डेटा की मदद से मालूम हुआ कि 62 प्रतिशत भूरे भालू कचरे में भोजन की तलाश करते रहे थे।
पर्यटन का नकारात्मक प्रभाव
अध्ययन करनेवाले आठ सदस्यीय दल में शामिल वाइल्डलाइफ एसओएस के प्रोजेक्ट मैनेजर और शिक्षा अधिकारी आलिया मीर ने कहा कि कश्मीर के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों सोनमर्ग और गुलमर्ग में घने जंगलों में बनाए जा रहे होटलों से इस क्षेत्र के पर्यावरण को बड़ा नुकसान पहुँचाया जाता है।
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि वार्षिक धार्मिक तीर्थयात्राओं की वजह से वन्यजीव गलियारों में बहुत कचरा जमा हो जाता है।
1980 के दशक के अंत में भारत विरोधी उग्रवाद बढ़ने के बाद कश्मीर में पर्यटन को भारी नुकसान हुआ था और वर्षों तक हिंसा बढ़ने के कारण नुकसान जारी रहा।
हालाँकि नई दिल्ली की कई सरकारों ने वह दिखाने के लिए इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने पर काम किया कि कश्मीर में स्थिति सामान्य हुई।
नतीजे में हाल के वर्षों में सैकड़ों होटल बनाए गए और उन में बहुत होटल पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में स्थित हैं।
अध्ययन के अनुसार कचरे के ये ढेर जानवरों को आसान भोजन की ओर आकर्षित करते थे। कचरे के ढेरों की ओर भालुओं के आकर्षण को भोजन की उपलब्धता, स्वादिष्टता, बुरे निवास स्थान, पोषक तत्वों की आवश्यकताओं और शरीर द्रव्यमान में वृद्धि जैसे कारणों की मदद से समझा जा सकता है। इसके अलावा पर्यटन गतिविधियों और पवित्र तीर्थयात्राओं में वृद्धि की वजह से नुकसान किया जाता है।
वाइल्डलाइफ एसओएस और वन्यजीव संरक्षण विभाग ने क्षेत्र में वन्यजीव की सुरक्षा के लिए जम्मू और कश्मीर के प्रशासन को सलाह दी। इसमें पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के आवागमन को कम करना, बफर जोन बनाना, प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना, होटल की गतिविधियों पर नियंत्रण करना और कारगर कचरा डंपिंग सुविधाएं स्थापित करना शामिल हैं।
कोई विजेता नहीं है, लेकिन हर कोई शिकार है
मीर ने एक और समस्या की बात की जो मानव-जानवर संघर्ष है। वह अनियंत्रित शहरीकरण और वन्यजीव को बचाने को कम प्राथमिकता देने के कारण है।
मीर ने कहा कि मानव-जानवर संघर्ष को कम करने के लिए जागरूकता बढ़ाने के संगठनों के प्रयासों के बावजूद, अधिक आदमी उन क्षेत्रों में बसे हैं जहाँ जानवर रहते हैं और इस से नुकसान होता है।
"यह न केवल मनुष्यों और विशेष रूप से बच्चों को कमजोर करता है, इस से जानवरों की हिंसक मौत अक्सर होती है।"
उन्होंने अंत में कहा कि इस स्थिति में कोई विजेता नहीं है, केवल शिकार है।
मीर ने टिप्पणी की, "वन्यजीव की रक्षा करने का मतलब खुद की रक्षा करना भी है और अधिकारियों के साथ लोगों को भी यह समझना चाहिए।"