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सैन्य विशेषज्ञ ने बताया कि भारत की गणतंत्र दिवस परेड को अनोखा क्या करता है
सैन्य विशेषज्ञ ने बताया कि भारत की गणतंत्र दिवस परेड को अनोखा क्या करता है
Sputnik भारत
हर साल 26 जनवरी को भारत गणतंत्र दिवस मनाता है। राष्ट्रीय अवकाश के समय नई दिल्ली में परेड होता है जो देश की सैन्य शक्ति को दिखाता है।
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सैन्य विशेषज्ञ ने बताया कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड के दौरान सलामी के लिए भारत में बनाये गये बन्दुक का इस्तेमाल किया जाएगा।भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी और बेस्टसेलिंग पुस्तकों के लेखक प्रवीण साहनी ने देश के 74वें गणतंत्र दिवस समारोह से पहले Sputnik से बात की, जिसके दौरान उन्होंने आयोजित परेड के महत्व के बारे में विस्तार से बताया।Sputnik: प्रत्येक गणतंत्र दिवस के दौरान भारत की रक्षा की क्षमता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत दोनों को प्रदर्शित करने के लिए दिल्ली परेड आयोजित की जाती है। आपकी राय में, देश की परेड में क्या अनोखा है?प्रवीण साहनी: भारत की सैन्य परेड की अनोखी बात यह है कि भारतीय राष्ट्रपति हमेशा कमांडर-इन-चीफ के रूप में सलामी लेते हैं। दूसरी ओर, चीन में राष्ट्रपति के स्थान पर कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव को सम्मान दिया जाता है।इस वर्ष के परेड में "सैन्य टैटू" भी दिखाई देगा, जिसका अर्थ है कि भारतीय सशस्त्र बल कलाबाजी सहित बड़े प्रदर्शन आजोजित करेंगे।मैं यह भी कहूंगा कि 23 जनवरी को अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के 21 द्वीपों को भारतीय युद्ध नायकों के सम्मान में नाम देने को सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस समारोह के एक भाग के रूप में भी देखा जाना चाहिए।तो इस तरह यह गणतंत्र दिवस परेड पिछले परेडों से अलग होगी।Sputnik: 2023 में भी औपनिवेशिक काल से जुड़ी कई चीजें हैं जो भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से सेना में स्थानीय हैं। भारत सरकार ने पिछले साल सेना से ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत को हटाने की कसम खाई थी। आप इन पहलों के बारे में क्या सोचते हैं?प्रवीण साहनी: इसमें कोई बुरी बात नहीं है लेकिन कुछ रिवाज और परंपराएं हैं जो शायद अंग्रेजों की वजह से सामने आई थीं। लेकिन उनका प्रयोग भारतीय सैन्य बलों ने करना शुरू किया और उन्होंने इनपर एकदम भिन्न दृष्टि से देखा और इनमें काफी बदलाव लाए, इसलिए उनका प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा, औपनिवेशिक अतीत को हटाना कोई समस्या नहीं है।
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सलामी के लिए भारत में बनाये गये बन्दुक का इस्तेमाल, प्रवीण साहनी, गणतंत्र दिवस परेड का महत्व, 105 इंडियन फील्ड बंदूक,
सलामी के लिए भारत में बनाये गये बन्दुक का इस्तेमाल, प्रवीण साहनी, गणतंत्र दिवस परेड का महत्व, 105 इंडियन फील्ड बंदूक,
सैन्य विशेषज्ञ ने बताया कि भारत की गणतंत्र दिवस परेड को अनोखा क्या करता है
विशेष
हर साल 26 जनवरी को भारत गणतंत्र दिवस मनाता है। राष्ट्रीय अवकाश के समय नई दिल्ली में परेड होती है जो देश की सैन्य शक्ति को दिखाती है।
सैन्य विशेषज्ञ ने बताया कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड के दौरान सलामी के लिए भारत में बनाये गये बन्दुक का इस्तेमाल किया जाएगा।
भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी और बेस्टसेलिंग पुस्तकों के लेखक
प्रवीण साहनी ने देश के 74वें गणतंत्र दिवस समारोह से पहले Sputnik से बात की, जिसके दौरान उन्होंने आयोजित
परेड के महत्व के बारे में विस्तार से बताया।
Sputnik: प्रत्येक गणतंत्र दिवस के दौरान भारत की रक्षा की क्षमता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत दोनों को प्रदर्शित करने के लिए दिल्ली परेड आयोजित की जाती है। आपकी राय में, देश की परेड में क्या अनोखा है?
प्रवीण साहनी: भारत की सैन्य परेड की अनोखी बात यह है कि भारतीय राष्ट्रपति हमेशा कमांडर-इन-चीफ के रूप में सलामी लेते हैं। दूसरी ओर, चीन में राष्ट्रपति के स्थान पर कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव को सम्मान दिया जाता है।
राष्ट्रीय राजधानी में इस वर्ष की परेड की विशेषताओं के बारे में बात करते हुए, इस से पहले राष्ट्रपति को सलामी 25 पाउंड की ब्रिटिश बंदूक से दी गई थी, जिसका प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध के समय किया गया था। इस बार राष्ट्रपति का स्वागत करने के लिए उस बंदूक के स्थान पर 105 इंडियन फील्ड बंदूक का इस्तेमाल किया जाएगा।
इस वर्ष के परेड में "सैन्य टैटू" भी दिखाई देगा, जिसका अर्थ है कि भारतीय सशस्त्र बल कलाबाजी सहित बड़े प्रदर्शन आजोजित करेंगे।
मैं यह भी कहूंगा कि 23 जनवरी को अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के 21 द्वीपों को भारतीय युद्ध नायकों के सम्मान में नाम देने को सरकार द्वारा गणतंत्र दिवस समारोह के एक भाग के रूप में भी देखा जाना चाहिए।
तो इस तरह यह गणतंत्र दिवस परेड पिछले परेडों से अलग होगी।
Sputnik: 2023 में भी औपनिवेशिक काल से जुड़ी कई चीजें हैं जो भारतीय संस्कृति और विशेष रूप से सेना में स्थानीय हैं। भारत सरकार ने पिछले साल सेना से ब्रिटिश औपनिवेशिक विरासत को हटाने की कसम खाई थी। आप इन पहलों के बारे में क्या सोचते हैं?
प्रवीण साहनी: इसमें कोई बुरी बात नहीं है लेकिन कुछ रिवाज और परंपराएं हैं जो शायद अंग्रेजों की वजह से सामने आई थीं। लेकिन उनका प्रयोग भारतीय सैन्य बलों ने करना शुरू किया और उन्होंने इनपर एकदम भिन्न दृष्टि से देखा और इनमें काफी बदलाव लाए, इसलिए उनका प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा, औपनिवेशिक अतीत को हटाना कोई समस्या नहीं है।