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गणतंत्र दिवस पर पूर्व सैनिक अधिकारी ने कारगिल युद्ध से सम्बंधित कहानी बताई

© AP Photo / AIJAZ RAHIIn this July 10, 1999 file photo, Indian artillery guns are engulfed in smoke in Dras, some 155 kilometers (96 miles) north of Srinagar, India as Indian troops fight Pakistani intruders in the disputed Kashmir.
In this July 10, 1999 file photo, Indian artillery guns are engulfed in smoke in Dras, some 155 kilometers (96 miles)  north of Srinagar, India as Indian troops fight Pakistani intruders in the disputed Kashmir. - Sputnik भारत, 1920, 26.01.2023
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विशेष
भारत इस साल 74वां गणतंत्र दिवस नई दिल्ली के कर्तव्य पथ पर सैन्य परेड आयोजित करके मना रहा है।
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर पूर्व भारतीय सैनिक अधिकारी ने एक सैनिक की कहानी साझा की जिसके हाथ में दुश्मन की गोलियां चलाई गईं लेकिन वह लड़ाई करना जारी रखना चाहता था। इन पूर्व सैनिक अधिकारी ने 1999 में जम्मू और कश्मीर के कारगिल सेक्टर में पाकिस्तान के खिलाफ भारत के संघर्ष के दौरान युद्ध कार्रवाई में सक्रिय भूमिका निभाई थी।
भारतीय सेना में इन्फैंट्री के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक और सेवानिवृत्त मेजर जनरल शशि भूषण अस्थाना उस समय पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध कार्रवाई में हिस्सा लेनेवाले सैनिकों की बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर थे।
Sputnik के साथ एक विशेष साक्षात्कार में अस्थाना ने बताया कि कारगिल भारतीय सशस्त्र बलों के लिए अनोखा ऑपरेशन क्यों था और अपनी मातृभूमि को लेकर सैनिकों के प्यार की बात की।
Sputnik: आपने पाकिस्तान के विरुद्ध कारगिल युद्ध में सक्रिय भूमिका निभाई थी। क्या आप लड़ाई के अपने अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हैं?
शशि भूषण अस्थाना: कारगिल अनोखा अनुभव और अनोखा ऑपरेशन था। हम इसे युद्ध नहीं कहते, हम इसे ऑपरेशन कहते हैं, इसलिए इसे 'ऑपरेशन विजय' कहा जाता था। क्योंकि पैमाना सीमित था ताकि पूर्ण युद्ध का बोझ देश पर न डाला जाए। कारगिल और द्रास के अलावा हमने दूसरा मोर्चा नहीं खोला था। हालाँकि हमारे लिए दूसरा मोर्चा खोलना और वहां पाकिस्तान से लड़ना ज़्यादा आसान होता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

हालांकि हमारे कुछ सैनिक घायल हो गए थे और कुछ सैनिकों की मौत हुई थी, हमने पाकिस्तान को महत्त्वपूर्ण संदेश देकर हर क्षेत्र को साफ कर दिया, जहां पाकिस्तानी सैनिक आए थे। इसमें कोई संदेह नहीं था कि पाकिस्तानी सेना ने वहां स्थित आतंकवादियों के साथ वहां दखल किया था, हालांकि वे कहते थे कि वे आतंकवादी थे और [पाकिस्तानी] सेना के सैनिक नहीं थे। लेकिन पर्याप्त सबूत हैं कि पाकिस्तानी सेना ने ही दखल किया था।

Sputnik: क्या आप उस समय के भारतीय सैनिकों के हौसले के बारे में बता सकते हैं? तब पाकिस्तानियों ने वहां पहाड़ों की अधिकांश चोटियों पर थे, जबकि हमारे सैनिक कम ऊंचाई पर थे?
शशि भूषण अस्थाना: मैं उस युद्ध के दौरान कमांडिंग ऑफिसर था और एक विशेष घटना है जिसके बारे में मैं उस ऑपरेशन के सन्दर्भ में बताना बहुत चाहता था।
मेरे एक जवान के दाहिने हाथ में बहुत गोलियां चलाई गईं, और डॉक्टर ने मुझ से कहा कि हमें इसे काटना होगा, नहीं तो उसे बचाना असंभव होगा। और मुझे बहुत कठिन निर्णय लेना पड़ा और मैंने कहा कि ठीक है, यह कीजिए।
अगले दिन की सुबह को मैंने कहा कि जब वह होश में आएगा तो मैं उसके साथ खबर बताने के लिए बैठना चाहता हूँ। उस समय तक हम उसे अस्पताल ले गए थे क्योंकि युद्ध के मैदान में ही उसकी सर्जरी की गई थी।
जब वह होश में आया तो उसे मालूम नहीं था कि क्या हुआ था। लेकिन फिर मैंने कहा कि तुम्हारे हाथ में "बहुत गोलियां चलाई गईं। हालाँकि हमने आपकी जान बचाई है लेकिन हम तुम्हारा हाथ बचाने में असफल हुए"।
यह सुनने के बाद उसने मुझे गले लगाया और रोने लगा। इसके बाद उसने यह वाक्य कहा, "अगर कुछ और पाकिस्तानियों को मारने के बाद मेरा हाथ काटा गया होता, तो मुझे ज़्यादा खुशी होती"।
हमारे जवानों का प्यार ऐसा है कि उस वक्त भी जवान अपने देश के बारे में सोचता था। इस तरह के सैनिक बाकी दुनिया में कहीं नहीं मिलते।
अंत में मैं यह कहना चाहता हूँ कि भारतीय सेना ने बहुत अच्छा काम किया था। मैं जो कहने की कोशिश कर रहा हूं वह यह है कि यह अनोखा ऑपरेशन था जिसमें हमने युद्ध चलाने के क्षेत्र को नहीं बढ़ाया। हमने बहुत सावधानी से केवल उन लोगों को मार डाला जिन्हें मारने की आवश्यकता थी और उस क्षेत्र को साफ किया जिसे साफ करने की आवश्यकता थी।

बाकी दुनिया के लिए यह अच्छा संदेश था कि अपनी शक्ति के बावजूद हम विस्तारवाद में विश्वास नहीं करते। लेकिन हम यह करने में भी सक्षम हैं कि कोई हमारी भूमि के किसी भी क्षेत्र को न ले।

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