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दबाव और मानसिक रोग: छात्र बताते हैं कि परीक्षा का तनाव वास्तविक समस्या क्यों है

© AP Photo / Saurabh DasIn this Aug. 5, 2010 photograph, students attend a class at a cram school in Kota, India
In this Aug. 5, 2010 photograph, students attend a class at a cram school in Kota, India - Sputnik भारत, 1920, 27.01.2023
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"परीक्षा पे चर्चा" एक वार्षिक कार्यक्रम है, जिसके दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परीक्षा से संबंधित तनाव से निपटने के विषय पर स्कूल के छात्रों के साथ बातचीत करते हैं।
Sputnik ने नई दिल्ली के छात्रों के साथ वह जानने के लिए बात की, कि वे परीक्षा से पहले घबराहट से कैसे निपटते हैं और उन छात्रों के लिए तनाव-मुक्त और मैत्रीपूर्ण माहौल बनाने के सरकारी प्रयास कितने सफल हैं, जिनके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक शुरू हुआ।

परीक्षा की तैयारी कर रहे 16 वर्षीय मनीष सचदेवा ने कहा, "ज्यादातर गायकों और कवियों को छात्रों और खासकर सोलह साल की उम्र में छात्रों की ज़िन्दगी पसंद है। अगर वे भारतीय स्कूलों में पढ़ते, तो वे यह कभी न करते।"

सचदेवा उन लाखों छात्रों में से एक है, जो जल्द ही बोर्ड परीक्षा देने वाले हैं।

हर साल बोर्ड परीक्षा का मतलब नई चिंताएं, दबाव और अवसाद भी होता है

भारत की स्कूली शिक्षा प्रणाली के अनुसार, छात्र कक्षा 10 में (आम तौर पर 15-16 साल की उम्र में) और फिर कक्षा 12 में (17-18 साल की उम्र में) वार्षिक परीक्षा देते हैं, जिसे अक्सर 'बोर्ड' कहा जाता है।

बोर्ड परीक्षा ऐसे भारतीय छात्रों के लिए महत्वपूर्ण है जो देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के छात्र बनना चाहते हैं। हर घर में बोर्ड परीक्षा का मतलब आम तौर पर तनाव, अतिरिक्त रटना और बेहतर पढ़ने के लिए छात्र पर ज़्यादा दबाव होता है।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) के सितंबर 2022 में जारी अध्ययन में कहा गया है, "कक्षा 9-12 में लगभग 80 प्रतिशत छात्र परीक्षा और परिणामों के कारण चिंता से ग्रस्त हैं।"
गाजियाबाद शहर के डीपीएस स्कूल की छात्रा दीपशिखा गुप्ता ने परीक्षा से सम्बंधित अपनी चिंता को साझा करते हुए कहा, "यह घर में एक लाक्षणिक अतिथि की तरह है, जो नहीं जाता। धीरे-धीरे बढ़ती चिंता और घबराहट से जुड़ा माहौल आपका सबसे अच्छा दोस्त बन जाता है। बर्नआउट्स, अवसाद और चिंता जैसे मानसिक रोग साधारण स्थिति बन जाते हैं।"
हालाँकि गुप्ता ने कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में 90 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किए, बाद में 2021 में यह खबर रौशनी में आई कि उसको अवसाद है।

गुप्ता के शिक्षक ने कहा, "हम नहीं जानते कि यह दबाव से संबंधित अध्ययन या अन्य कारणों से हुआ। लेकिन हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि माता-पिता, स्कूल, रिश्तेदार यानी हर कोई प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों पर अच्छी तरह पढ़ने के लिए दबाव डाला जाता है।"

गुप्ता के शिक्षकों ने कहा: "उसके शिक्षक और माता-पिता उसकी स्थिति को लेकर चिंतित हैं और यह सुनिश्चित करने की कोशिश करते हैं कि पढ़ाई उसे परेशान न करे। लेकिन क्या वह साप्ताहिक परीक्षा, ट्यूशन परीक्षा और सब कुछ से भाग सकती है?"
गुप्ता के शिक्षक ने अपनी राय साझा करते हुए कहा, "जिस किसी भी आदमी को मालूम हो जाएगा कि वह 12वीं कक्षा में है, वह उससे उसकी पढ़ाई और बोर्ड परीक्षा की तैयारी के बारे में पूछेगा। समाज इस तरह सोचता है।"

शिक्षा का दबाव बहुत बड़ा है, छात्र कहते हैं

रिहेबिलिटेशन मनोवैज्ञानिक अर्चना शर्मा ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर परीक्षाओं के प्रभाव के बारे में Sputnik से बात करते हुए कहा कि "छात्रों पर शिक्षा का बहुत बड़ा दबाव है। हमारे पास स्कूल स्तर की प्रतियोगिताएं, अंतर्-स्कूल प्रतियोगिताएं और अन्य प्रतियोगिताएं हैं।"

"और, अन्य स्कूलों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए स्कूल अपने छात्रों पर अतिरिक्त बोझ डालते हुए उनकी क्षमता और अनुभव को नज़रअंदाज़ करते हैं। यह स्थिति पढ़ने से ही नहीं, खेल, कला और अन्य क्षेत्रों से भी सम्बंधित है," उन्होंने कहा।

शर्मा ने कहा कि यह दबाव स्कूल में ही नहीं है, घर पर भी माता-पिता लगातार बच्चों पर सब से अच्छी तरह पढ़ने की ज़रूरत का दबाव डालते हैं।
मनोवैज्ञानिक ने इस बात पर भी जोर दिया कि बच्चों की बोर्ड परीक्षा के परिणाम माता-पिता और समाज के लिए मानक बने हैं और वे यह नहीं समझते कि उनके बच्चे तनावग्रस्त और चिंतित हैं।
नतीजे में, इसके कारण "छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति" होती है, शर्मा ने कहा।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के 2020 के आंकड़ों के अनुसार, 11,396 बच्चों की मौत आत्महत्या की वजह से हुई और हर दिन आत्महत्या के कारण लगातार 31 बच्चों की मौत हुई।

भारतीय सरकार इस समस्या को कैसे हल करती है?

तनाव से संबंधित समस्या को सुलझाने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2018 में एक वार्षिक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसके दौरान वे छात्रों और शिक्षकों के साथ परीक्षाओं के महत्व और परीक्षा से संबंधित तनाव से निपटने के तरीकों पर चर्चा करते हैं।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य परीक्षा से जुड़ी छात्रों और माता-पिता की चिंताओं को हटाना है।
इस साल 27 जनवरी को प्रधान मंत्री नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में वार्षिक "परीक्षा पे चर्चा" में भाग लेते हुए शिक्षकों, माता-पिता और बच्चों के साथ बातचीत करेंगे। यह कार्यक्रम छठी बार आयोजित किया जाएगा।

क्या "परीक्षा पे चर्चा" कार्यक्रम कोई मदद देता है?

दिल्ली के केंद्रीय विद्यालय की शिक्षिका शिखा सूद के अनुसार यह कहना मुश्किल है कि प्रधानमंत्री की बातचीत छात्रों को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।
सूद ने कहा, "हो सकता है कि बच्चे प्रधानमंत्री के संदेश को नहीं समझेंगे। लेकिन माता-पिता, शिक्षक और पूरे समाज को ही यह समझने की जरूरत है। माता-पिता को यह समझने की ज़रूरत है कि जीवन का अर्थ सिर्फ अच्छे अंक हासिल करना नहीं है।"
झारखंड राज्य की शिक्षिका मेघना वेरोनिका ने प्रधानमंत्री के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि अब कम से कम इस संदेश की मदद से बहुत लोगों को मालूम हुआ कि परीक्षा का दबाव छात्रों को चिंतित करता है।

वेरोनिका ने कहा, "परीक्षा हर किसी के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक है। लेकिन अंक हासिल करना जीवन का एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए, और जब देश के नेता यह कहते हैं तो लोग उनकी बात मानते हुए यह समझने की कोशिश करते हैं।"

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