यूक्रेन संकट
मास्को ने डोनबास के लोगों को, खास तौर पर रूसी बोलनेवाली आबादी को, कीव के नित्य हमलों से बचाने के लिए फरवरी 2022 को विशेष सैन्य अभियान शुरू किया था।

असंभव लक्ष्य: नाटो दक्षिण कोरिया और जापान को 'यूक्रेन में बदलने' में क्यों असफल रहा?

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 - Sputnik भारत, 1920, 02.02.2023
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दक्षिण कोरिया टैंक, तोपखाने, जेट लड़ाकू विमानों और पनडुब्बियों का उत्पादन और निर्यात सक्रिय रूप से करता है। जापान की बड़ी सैन्य-औद्योगिक क्षमता भी है और शायद नाटो इस स्थिति का प्रयोग यूक्रेनी संकट को आगे चलाने के लिए कर सकता है।
लेकिन नाटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग के सियोल और टोक्यो के दौरे के बाद कीव और ब्रुसेल्स को खुश होने का मौका नहीं मिला। दक्षिण कोरिया और जापान से किसी हथियार की आपूर्ति पर चर्चा नहीं की जा रही है।
नाटो के महासचिव ने दोनों देशों को ऐसा संदेश दिया कि एशिया की सुरक्षा यूरोप की सुरक्षा से जुड़ी है, और अगर व्लादिमीर पुतिन यूरोप में जीतेंगे तो चीन निश्चित रूप से ताइवान में सैन्य कार्रवाई शुरू करेगा।
हालाँकि पश्चिमी गठबंधन में शामिल एशियाई देशों में बहुत लोग अब तक सोचते हैं कि "रूस ने यह शुरू किया" और इसलिए उसकी निंदा करना चाहिए, फिर भी किसी पूर्वी यूरोपीय देश के लिए खुद को बलिदान करने के आह्वान अब किसी को आकर्षित नहीं करते। नतीजतन अपने पूर्व एशियाई भागीदारों को यूक्रेनी संकट में शामिल करने की अमेरिका और नाटो की कोशिशें अब लोगों को सही और अच्छी नहीं लगतीं।

"अमेरिका यह कहता रहता है कि रूस कथित तौर पर उत्तर कोरिया से हथियार खरीद रहा है। लेकिन इसका लक्ष्य दक्षिण कोरिया और रूस के संबंधों को खराब करना है। दक्षिण कोरिया को अत्यधिक उत्तेजक व्यवहार करना नहीं चाहिए। और मेरी राय में यह ऐसा करने की कोशिश कर रहा है," सैन्य सामरिक अध्ययन में पीएचडी और आसान इंस्टिट्यूट फॉर पॉलिसी स्टडीस के सेंटर फॉर फॉरैन पॉलिसी एण्ड नैशनल सिक्युरिटी के एसोसिएट रिसर्च फेलो यांग यूक ने कहा।

उनके अनुसार, वह तथ्य दक्षिण कोरिया पर बड़े दबाव का संकेत है कि पेंटागन के प्रमुख लॉयड ऑस्टिन ने स्टोल्टेनबर्ग के तुरंत बाद सियोल का दौरा किया। हालाँकि दक्षिण कोरिया की सरकार के पास रूस से विवाद शुरू करने का कोई बहाना नहीं है।

"अगर हम इस में दिलचस्पी लेते तो हम यह करते। लेकिन पोलैंड को हथियार बेचना एक बात है, और यूक्रेनी संकट में सीधे हिस्सा लेना दूसरी बात है। दूसरी बात हमारे हित में बिल्कुल नहीं है। हाँ, हम अमेरिका के सहयोगी हैं। लेकिन अधिकारी इस में हमारे देश की किसी प्रत्यक्ष भागीदारी से इन्कार करेंगे। वाशिंगटन क्रीमिया की स्थिति की शुरुआत से ही इस बात के कारण बहुत नाखुश है," यांग यूक ने समझाया।

नाटो के साथ सहयोग करने को लेकर सियोल का दृष्टिकोण व्यावहारिक है। नाटो के कई सदस्य देशों को अपने सैन्य उपकरणों को नवीनीकृत करने की जरूरत है, और दक्षिण कोरिया इस में मदद देने के लिए तैयार है। और अगर सियोल को किसी चीज की जरूरत होगी तो उसको उम्मीद है कि उसके सहयोगी उसको यह वापस में देंगे।
इसलिए, जब नाटो के महासचिव उस देश से आदर्शों के लिए लड़ने और जर्मनी और स्वीडन के उदाहरण का पालन करने का आग्रह करते हैं, तो दक्षिण कोरिया उस तरह जवाब देता है जिस तरह दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री ने अपने अमेरिकी समकक्ष के साथ प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा, "मैं केवल यह कह सकता हूं कि हम यूक्रेन की स्थिति पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।"
क्यूंगनाम यूनिवर्सिटी में दक्षिण कोरिया के इंस्टिट्यूट ऑफ फार ईस्टर्न स्टडीस के असोशीएट प्रोफेसर चो जिन-गू के अनुसार, जापान यूक्रेन में स्थिति को लेकर दक्षिण कोरिया के दृष्टिकोण को साझा करता है और प्रत्यक्ष सैन्य सहायता प्रदान करना नहीं चाहता।
उन्होंने याद दिलाया कि जापान हथियारों के निर्यात के "तीन सिद्धांतों" को बहुत समय पहले अपनाया था। एक सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय संघर्षों में शामिल देशों में हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध है। इसलिए अगर जापान नाटो के अनुरोध पूरे करने के लिए तैयार होगा, तो उसे अपने सिद्धांतों को बदलना पड़ेगा और इसमें लंबा समय लगेगा।
जापान यूक्रेन की स्थिति को लेकर चिंतित है। हालाँकि, टोक्यो की चिंता का असली कारण चीन की बढ़ती शक्ति है, जबकि "रूसी खतरे" का प्रयोग अपने नागरिकों को रक्षा पर ज्यादा पैसे खर्च करने पर आग्रह करने के बहाने के रूप में किया जाता है।

"जापान में अप्रैल में महत्वपूर्ण चुनाव होंगे, जो जापान के प्रधान मंत्री फ़ुमिओ किशिदा के मंत्रिमंडल के लिए संकट की स्थिति बन सकते हैं। इसलिए कठिन घरेलू स्थिति के कारण टोक्यो के सैनिक सहायता में सक्रिय होने की संभावना नहीं है," प्रोफेसर चो ने कहा।

इसलिए अगर दक्षिण कोरिया नाटो के अपने सहयोगियों को "संदेश" भेजना चाहता, तो उस देश के राष्ट्रपति सियोल में स्टोल्टेनबर्ग से मिलते। लेकिन ऐसा लगता है कि दक्षिण कोरिया की कोई ऐसी इच्छा नहीं है।
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