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SC ने 2011 के फैसले को पलटते हुए कहा कि गैर कानूनी संगठन की सदस्यता यूएपीए के तहत अपराध
SC ने 2011 के फैसले को पलटते हुए कहा कि गैर कानूनी संगठन की सदस्यता यूएपीए के तहत अपराध
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सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि गैरकानूनी संगठन की सदस्यता अपने आप में यूएपीए के तहत एक अपराध है।
2023-03-24T16:34+0530
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गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला में कहा कि एक गैरकानूनी संगठन की सदस्यता अपने आप में यूएपीए के तहत एक अपराध है। जस्टिस एमआर शाह सी टी रवि कुमार और संजय करोल की तीन जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि सिर्फ गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना यूएपीए के तहत अपराध नहीं है इसके लिए कोई कार्य करना जरूरी है। तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि प्रावधान को पढ़ने से पहले भारत संघ को नहीं सुना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में अरूप भुइयां बनाम असम राज्य के फैसले में कहा था कि प्रतिबंधित संगठन की मात्र सदस्यता किसी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं बनाएगी जब तक कि वह हिंसा का सहारा नहीं लेता है या लोगों को हिंसा के लिए उकसाता है या हिंसा या उकसावे से सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करता है। इसके अलावा न्यायालय ने दो अन्य मामलों में भी यही दृष्टिकोण अपनाया था।
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गैरकानूनी संगठन की सदस्यता, यूएपीए के तहत एक अपराध, सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के फैसले को पलटा, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम
गैरकानूनी संगठन की सदस्यता, यूएपीए के तहत एक अपराध, सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के फैसले को पलटा, गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम
SC ने 2011 के फैसले को पलटते हुए कहा कि गैर कानूनी संगठन की सदस्यता यूएपीए के तहत अपराध
केंद्र और असम राज्य की अपील पर, अगस्त 2014 में अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि यह देखते हुए कि यह एक "महत्वपूर्ण मुद्दा है ... हमें लगता है कि इस मामले पर एक बड़ी बेंच द्वारा विचार किया जाना चाहिए"।
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला में कहा कि एक गैरकानूनी संगठन की सदस्यता अपने आप में यूएपीए के तहत एक अपराध है।
जस्टिस एमआर शाह सी टी रवि कुमार और संजय करोल की तीन जजों की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों को पलट दिया जिसमें कहा गया था कि सिर्फ गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना यूएपीए के तहत अपराध नहीं है इसके लिए कोई कार्य करना जरूरी है।
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि प्रावधान को पढ़ने से पहले भारत संघ को नहीं सुना गया था।
"जब संघ की अनुपस्थिति में एक संसदीय कानून पढ़ा जाता है तो राज्य को भारी नुकसान होगा अगर उनकी बात नहीं सुनी गई," सुप्रीम कोर्ट ने कहा।
सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में अरूप भुइयां बनाम असम राज्य के फैसले में कहा था कि प्रतिबंधित संगठन की मात्र सदस्यता किसी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं बनाएगी जब तक कि वह हिंसा का सहारा नहीं लेता है या लोगों को हिंसा के लिए उकसाता है या हिंसा या उकसावे से सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करता है।
इसके अलावा न्यायालय ने दो अन्य मामलों में भी यही दृष्टिकोण अपनाया था।