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क्या राजस्थान कांग्रेस के लिए दूसरे पंजाब में बदल रहा है, जानिए विशेषज्ञ की राय
क्या राजस्थान कांग्रेस के लिए दूसरे पंजाब में बदल रहा है, जानिए विशेषज्ञ की राय
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पंजाब में पिछले साल चुनाव में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा था
2023-05-16T20:51+0530
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पंजाब में पिछले साल चुनाव में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा था क्योंकि पार्टी में आतंरिक कलह और वर्चस्व की लड़ाई चरम पर थी और अब ऐसा लगता है कि पार्टी राजस्थान में इसको दोहराने जा रही है जहां इस साल के अंत तक चुनाव होने हैं।तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और राज्य पार्टी प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जारी सत्ता संघर्ष के बाद, कांग्रेस ने साल 2021 में कैप्टन को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। नतीजतन न तो राज्य की सत्ता में पार्टी की वापसी हो सकी है और न ही स्वयं चन्नी अपना चुनाव जीत सके।इसी तरह राजस्थान में अगर किसी भी एक बड़े नेता को नाराज किया जाता है, तो उसका खामियाजा पार्टी को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। पार्टी नेता दबी जुबान में स्वीकार करते हैं कांग्रेस की स्थिति राजस्थान में पंजाब की तरह ही हो रही है। इस बीच Sputnik ने वरिष्ठ पत्रकार राजेश असनानी से राजस्थान में राजनीतिक घटनाक्रम पर विस्तार से बात की।राजस्थान की राजनीति किसी ज़माने में काफी शांत हुआ करती थी लेकिन जबसे वसुंधरा राजे की एंट्री हुई है और उसके बाद फिर सचिन पायलट की एंट्री हुई तब से राजस्थान की राजनीति में हलचल काफी तेज हो गई है और देश की निगाहें राजस्थान की राजनीति पर रहती हैं।साथ ही उन्होंने Sputnik से कहा, उनके पद जाने की छटपटाहट आप इस समय देख सकते हैं क्योंकि पायलट राजस्थान के बड़े नेता हैं पर उनके पास पद नहीं है। चुनाव इस साल होने वाले हैं। करीब सात-आठ महीनों का समय है। दिसंबर में नई सरकार बननी है। पायलट राजस्थान में अपनी पदयात्रा कर रहे हैं और अपनी ही सरकार के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे हैं। वसुंधरा सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप वे गहलोत सरकार पर लगा रहे हैं। इसके अलावा पेपर लीक राजस्थान गवर्नमेंट जॉब को लेकर बड़ा मुद्दा रहा है।दरअसल राजस्थान में सरकारी नौकरी के लिए आयोजित परीक्षाओं से पूर्व ही एक के बाद दूसरी पेपर लीक की घटना सामने आई है। प्रदेश में साल 2019 के बाद से हर वर्ष औसतन तीन पेपर लीक हुए हैं। इससे करीब 40 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं। जनवरी 2022 में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पेपर लीक में राजीव गांधी स्टडी सर्कल पर आरोप लगाया। इसके संरक्षक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। हालांकि पेपर लीक से जुड़े मामले में राज्य सरकार और पुलिस ने जांच के बाद कोचिंग सेंटर्स की भूमिका समझाई है।वरिष्ठ पत्रकार असनानी ने बताया कि इस सबके बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सत्ता रिपीट करने के लिए पूरी तैयारी में हैं और वे अपना फोकस महंगाई राहत कैंप के जरिए,अपनी वेलफेयर योजनाओं के जरिए जनता को राहत दे रहे हैं उनकी बदौलत उन्हें लगता है वे राजस्थान में पुनः सत्ता में बने रह सकते हैं।कांग्रेस के लिए मुख्य समस्या इन दोनों छत्रपों के बिच जारी विवाद को सुलझाना है। और यह पायलट के लिए मुश्किल इसलिए है क्योंकि चुनाव के वक्त में उनको अपने समर्थकों को टिकट भी इनश्योर करना पड़ेगा और ऐसा लगता है कि पायलट और उनके गुट के लोग चाहते हैं कि वे अहम पद पर एक बार फिर आसीन हो ताकि चुनाव में उनकी भूमिका रहे अगर उनके पास कोई भूमिका नहीं रही और चुनाव में यदि कांग्रेस की जीत हुई तो उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना नहीं हो पाएगी।बता दें कि सचिन पायलट का अनशन 11 अप्रैल को करीब 5 घंटे तक जयपुर के शहीद स्मारक के आसपास चला। आखिर में अलग-अलग धर्मों के प्रतिनिधियों ने पायलट का अनशन तुड़वाया। अनशन खत्म करने के बाद पायलट ने कहा था, "सीएम को दो बार मेरे पत्र लिखने के बाद भी कार्रवाई नहीं हुई। विपक्ष में रहते हुए हमने पिछली वसुंधरा सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ आंदोलन किया था। विगत चार साल में कार्रवाई की उम्मीद थी, लेकिन नहीं हुई। लेकिन अब मैं उम्मीद करता हूं, कार्रवाई होगी।"Sputnik ने वरिष्ठ पत्रकार असनानी से सवाल पूछा। पंजाब कांग्रेस में इसी तरह विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में मुख्यमंत्री और अन्य नेता में विवाद था जिसके बाद कांग्रेस चुनाव हार गई, ठीक वैसा ही राजस्थान में मुख्यमंत्री और पार्टी के नेता में विवाद चल रहा है। क्या राजस्थान में पार्टी का अंतर्कलह कांग्रेस के लिए पंजाब की जैसी स्थिति साबित होगा? इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि पंजाब की तरह राजस्थान की स्थिति तो है लेकिन अगर अंतर्कलह को देखें तो फिर भी अंतर है क्योंकि पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को लेकर कांग्रेस की विधायकों के शिकायतें काफी थीं।25 सितम्बर की घटना का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालनेवाले थे राजस्थान में दिल्ली से पार्टी की तरफ से दो पर्यवेक्षक भेजे गए थे जो मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन थे। और उनको राजस्थान में पार्टी के नए मुख्यमंत्री के चयन करना था। और लगभग पक्का माना जा रहा था कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है। अशोक गहलोत राष्ट्रीय राजनीति में आ जाएंगे और प्रदेश की कमान पायलट के हाथ दे दी जाएगी।साथ ही उन्होंने कहा पार्टी को पता है कि दोनों राजस्थान में कांग्रेस के लिए अहम हैं लेकिन दोनों को साथ रखना एक चुनौती है। अगर यह विवाद नहीं सुलझाया गया तो यह लड़ाई एक निर्णायक मोड़ पर आ सकती है। लेकिन अगर पायलट पार्टी से अलग होंगे तो निश्चित तौर पर पार्टी के लिए चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है और भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिलेगा।Sputnik ने जब वरिष्ठ पत्रकार राजेश असनानी से पूछा कि अभी हाल ही में अशोक गहलोत ने क्यों कहा कि भाजपा नेता वसुंधरा राजे ने सरकार बचाई है, इस बयान के क्या मायने हैं, इस पर उन्होंने कहा कि इस बयान के कई मायने हैं। अशोक गहलोत ने इस बयान के जरिए एक तीर से कई निशाने साध लिए। एक तरफ सचिन पायलट, दूसरे तरफ वसुंधरा राजे और गजेंद्र सिंह शेखावत। गहलोत का जो संघर्ष चल रहा था पार्टी के भीतर और उनके खिलाफ जो मुद्दा बनाया जा रहा था उनको काउंटर करने के लिए यह बयान था।
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कांग्रेस का पराजय, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राजस्थान में बड़े सियासी उलटफेर, विधानसभा चुनाव में विवाद
कांग्रेस का पराजय, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, राजस्थान में बड़े सियासी उलटफेर, विधानसभा चुनाव में विवाद
क्या राजस्थान कांग्रेस के लिए दूसरे पंजाब में बदल रहा है, जानिए विशेषज्ञ की राय
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जारी राजनीतिक शत्रुता किसी से छुपी नहीं है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि पिछले कुछ दिनों से जिस तरीके से सचिन पायलट राज्य सरकार पर हमला कर रहे हैं वह राजस्थान में बड़े सियासी उलटफेर का चिन्ह है।
पंजाब में पिछले साल चुनाव में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा था क्योंकि पार्टी में आतंरिक कलह और वर्चस्व की लड़ाई चरम पर थी और अब ऐसा लगता है कि पार्टी राजस्थान में इसको दोहराने जा रही है जहां इस साल के अंत तक चुनाव होने हैं।
तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और राज्य पार्टी प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू के बीच जारी सत्ता संघर्ष के बाद, कांग्रेस ने साल 2021 में कैप्टन को हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया। नतीजतन न तो राज्य की सत्ता में पार्टी की वापसी हो सकी है और न ही स्वयं चन्नी अपना चुनाव जीत सके।
इसी तरह राजस्थान में अगर किसी भी एक बड़े नेता को नाराज किया जाता है, तो उसका खामियाजा पार्टी को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। पार्टी नेता दबी जुबान में स्वीकार करते हैं कांग्रेस की स्थिति राजस्थान में पंजाब की तरह ही हो रही है। इस बीच Sputnik ने वरिष्ठ पत्रकार राजेश असनानी से राजस्थान में राजनीतिक घटनाक्रम पर विस्तार से बात की।
राजस्थान की राजनीति किसी ज़माने में काफी शांत हुआ करती थी लेकिन जबसे वसुंधरा राजे की एंट्री हुई है और उसके बाद फिर सचिन पायलट की एंट्री हुई तब से राजस्थान की राजनीति में हलचल काफी तेज हो गई है और देश की निगाहें राजस्थान की राजनीति पर रहती हैं।
"साल 2018 में सचिन पायलट मानेसर में 18 समर्थक विधायकों को साथ लेकर चले गए और अशोक गहलोत की सरकार को संकट में डाल दिया था और उसके बाद जैसे तैसे सुलह होकर पायलट तो वापस आ गए लेकिन खींचतान जारी है। इसके बाद पायलट के दोनों पद चले गए," राजेश असनानी ने Sputnik को बताया।
साथ ही उन्होंने Sputnik से कहा, उनके पद जाने की छटपटाहट आप इस समय देख सकते हैं क्योंकि पायलट राजस्थान के बड़े नेता हैं पर उनके पास पद नहीं है। चुनाव इस साल होने वाले हैं। करीब सात-आठ महीनों का समय है। दिसंबर में नई सरकार बननी है। पायलट राजस्थान में अपनी पदयात्रा कर रहे हैं और अपनी ही सरकार के खिलाफ लगातार आवाज उठा रहे हैं। वसुंधरा सरकार के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोप पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप वे गहलोत सरकार पर लगा रहे हैं। इसके अलावा पेपर लीक राजस्थान गवर्नमेंट जॉब को लेकर बड़ा मुद्दा रहा है।
दरअसल राजस्थान में सरकारी नौकरी के लिए आयोजित परीक्षाओं से पूर्व ही एक के बाद दूसरी पेपर लीक की घटना सामने आई है। प्रदेश में साल 2019 के बाद से हर वर्ष औसतन तीन पेपर लीक हुए हैं। इससे करीब 40 लाख छात्र प्रभावित हुए हैं। जनवरी 2022 में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पेपर लीक में राजीव गांधी स्टडी सर्कल पर आरोप लगाया। इसके संरक्षक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं। हालांकि पेपर लीक से जुड़े मामले में राज्य सरकार और पुलिस ने जांच के बाद कोचिंग सेंटर्स की भूमिका समझाई है।
वरिष्ठ पत्रकार असनानी ने बताया कि इस सबके बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सत्ता रिपीट करने के लिए पूरी तैयारी में हैं और वे अपना फोकस महंगाई राहत कैंप के जरिए,अपनी वेलफेयर योजनाओं के जरिए जनता को राहत दे रहे हैं उनकी बदौलत उन्हें लगता है वे राजस्थान में पुनः सत्ता में बने रह सकते हैं।
"हालांकि राजस्थान में रिपीट करने का ट्रेंड रहा नहीं है लेकिन गहलोत ट्रेंड बदलने को कटिबद्ध है किन्तु सचिन पायलट लगातार उनके लिए कठिनाई उतपर्ण कर रहे हैं। पायलट ऊर्जावान युवा नेता है तो मुझे लगता है कि कांग्रेस के लिए जो चैलेंज है वह कांग्रेस के भीतर ही है और सबसे बड़ी चुनौती जो कांग्रेस के लिए है वह इन दोनों छत्रपों की आपसी लड़ाई है," असनानी ने Sputnik से कहा।
कांग्रेस के लिए मुख्य समस्या इन दोनों छत्रपों के बिच जारी विवाद को सुलझाना है। और यह पायलट के लिए मुश्किल इसलिए है क्योंकि चुनाव के वक्त में उनको अपने समर्थकों को टिकट भी इनश्योर करना पड़ेगा और ऐसा लगता है कि पायलट और उनके गुट के लोग चाहते हैं कि वे अहम पद पर एक बार फिर आसीन हो ताकि चुनाव में उनकी भूमिका रहे अगर उनके पास कोई भूमिका नहीं रही और चुनाव में यदि कांग्रेस की जीत हुई तो उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना नहीं हो पाएगी।
बता दें कि सचिन पायलट का अनशन 11 अप्रैल को करीब 5 घंटे तक जयपुर के शहीद स्मारक के आसपास चला। आखिर में अलग-अलग धर्मों के प्रतिनिधियों ने पायलट का अनशन तुड़वाया। अनशन खत्म करने के बाद पायलट ने कहा था, "सीएम को दो बार मेरे पत्र लिखने के बाद भी कार्रवाई नहीं हुई। विपक्ष में रहते हुए हमने पिछली वसुंधरा सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों के खिलाफ आंदोलन किया था। विगत चार साल में कार्रवाई की उम्मीद थी, लेकिन नहीं हुई। लेकिन अब मैं उम्मीद करता हूं, कार्रवाई होगी।"
"अब पायलट आर-पार की लड़ाई के मूड में है और आने वाला समय कांग्रेस के लिए काफी कठिन है। देखना होगा कि क्या वे पार्टी छोड़ते हैं चूंकि उन्होंने जो मुद्दे उठाए हैं उसपर कांग्रेस हाईकमान ने अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है और कहीं न कहीं मुख्यमंत्री के हाथ में चुनावी कम्पैन है और वही चुनाव का चेहरा भी होंगे और दिखाई भी देंगे। और लोग जो महंगाई राहत कैम्पों में जा रहे हैं उन्हें मुख्यमंत्री की तस्वीर दिख रही है और यही संघर्ष की वजह भी है," वरिष्ठ पत्रकार ने Sputnik से कहा।
Sputnik ने वरिष्ठ पत्रकार असनानी से सवाल पूछा। पंजाब कांग्रेस में इसी तरह विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में मुख्यमंत्री और अन्य नेता में विवाद था जिसके बाद कांग्रेस चुनाव हार गई, ठीक वैसा ही राजस्थान में मुख्यमंत्री और पार्टी के नेता में विवाद चल रहा है। क्या राजस्थान में पार्टी का अंतर्कलह कांग्रेस के लिए पंजाब की जैसी स्थिति साबित होगा?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार ने कहा कि पंजाब की तरह राजस्थान की स्थिति तो है लेकिन अगर अंतर्कलह को देखें तो फिर भी अंतर है क्योंकि पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को लेकर कांग्रेस की विधायकों के शिकायतें काफी थीं।
25 सितम्बर की घटना का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि जब अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालनेवाले थे राजस्थान में दिल्ली से पार्टी की तरफ से दो पर्यवेक्षक भेजे गए थे जो मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन थे। और उनको राजस्थान में पार्टी के नए मुख्यमंत्री के चयन करना था। और लगभग पक्का माना जा रहा था कि सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है। अशोक गहलोत राष्ट्रीय राजनीति में आ जाएंगे और प्रदेश की कमान पायलट के हाथ दे दी जाएगी।
साथ ही उन्होंने कहा पार्टी को पता है कि दोनों राजस्थान में कांग्रेस के लिए अहम हैं लेकिन दोनों को साथ रखना एक चुनौती है। अगर यह विवाद नहीं सुलझाया गया तो यह लड़ाई एक निर्णायक मोड़ पर आ सकती है। लेकिन अगर पायलट पार्टी से अलग होंगे तो निश्चित तौर पर पार्टी के लिए चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ सकता है और भारतीय जनता पार्टी को फायदा मिलेगा।
Sputnik ने जब वरिष्ठ पत्रकार राजेश असनानी से पूछा कि अभी हाल ही में अशोक गहलोत ने क्यों कहा कि भाजपा नेता वसुंधरा राजे ने सरकार बचाई है, इस बयान के क्या मायने हैं, इस पर उन्होंने कहा कि इस बयान के कई मायने हैं। अशोक गहलोत ने इस बयान के जरिए एक तीर से कई निशाने साध लिए। एक तरफ सचिन पायलट, दूसरे तरफ वसुंधरा राजे और गजेंद्र सिंह शेखावत। गहलोत का जो संघर्ष चल रहा था पार्टी के भीतर और उनके खिलाफ जो मुद्दा बनाया जा रहा था उनको काउंटर करने के लिए यह बयान था।
"सचिन पायलट का अपनी जाति पर काफी पकड़ है और गुर्जर समुदाय उनको सपोर्ट करता है लेकिन उनको सिर्फ गुर्जर समुदाय ही नहीं युवा भी काफी सपोर्ट करता है। उनका राजनीतिक करियर काफी अच्छा रहा है और युवाओं में उनकी काफी पकड़ है तो अगर वे कांग्रेस में नहीं रहते हैं तो वे कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करेंगे तो निश्चित कांग्रेस के लिए बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा," वरिष्ठ पत्रकार ने Sputnik को बताया।