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अमेरिका चीन सम्बन्धी भारत की कमजोरियों का फायदा उठाता है: भूतपूर्व दूत

© AP Photo / Evan VucciPresident Joe Biden speaks during a news conference with India's Prime Minister Narendra Modi in the East Room of the White House, Thursday, June 22, 2023, in Washington.
President Joe Biden speaks during a news conference with India's Prime Minister Narendra Modi in the East Room of the White House, Thursday, June 22, 2023, in Washington. - Sputnik भारत, 1920, 24.06.2023
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडन ने गुरुवार को व्हाइट हाउस में प्रतिनिधिमंडल स्तर पर वार्ता की। वार्ता के दौरान व्यापार और निवेश, रक्षा, सुरक्षा, ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन और अन्य विषयों पर प्रमुख ज़ोर था।
व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति जो बिडेन के बीच औपचारिक परामर्श के बाद एक भूतपूर्व भारतीय राजदूत ने Sputnik को बताया कि संयुक्त राज्य अमेरिका हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में अपना प्रभाव प्रबल करने के लिए चीन सम्बन्धी भारत की कमजोरियों का "शोषण" करता है।

''मैं इस बात पर पूरी तरह सहमत हूँ कि अमेरिका, चीन से संबंधित हमारी चिंताओं का फायदा उठा रहा है। अपनी-अपनी हिन्द-प्रशांत रणनीतियों के तहत अमेरिका और अन्य पश्चिमी नौसेनाओं के लिए हिंद महासागर का एक महत्वपूर्ण प्रवेश आगमन किया गया है," भारतीय राजनयिक और रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ, भूतपूर्व राजदूत तलमीज़ अहमद ने टिप्पणी की।

2020 से नई दिल्ली और बीजिंग पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सैन्य टकराव में सम्मिलित हैं। सैन्य तनाव अन्य क्षेत्रों में फैल गया है। नई दिल्ली ने कहा है कि सीमा पर शांति बीजिंग के साथ स्थिर द्विपक्षीय संबंधों का आधार है।
U.S. President Joe Biden, left, and India Prime Minister Narendra Modi talks during the G20 leaders summit in Nusa Dua, Bali, Indonesia, Nov. 15, 2022. - Sputnik भारत, 1920, 21.06.2023
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अहमद ने रेखांकित किया कि हिंद महासागर में भारत और चीन दोनों के हित कमोबेश एक जैसे हैं, जिनमें ऊर्जा और व्यापार के अप्रतिबंधित प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिए शिपिंग लाइन की सुरक्षा बनाये रखना भी सम्मिलित है।
विशेषज्ञ ने कहा कि अमेरिका ने अपनी हिन्द-प्रशांत रणनीति के तहत भारत को पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में "खींच" लिया है, जहाँ एशिया की सबसे बड़ी चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिकी श्रेष्ठता के लिए एक रूकावट बन गई है।
उन्होंने रेखांकित किया कि नई दिल्ली का मुख्य सुरक्षा हित उसकी क्षेत्रीय सीमाओं पर है, जहाँ अमेरिका की भूमिका बहुत कम है।

अमेरिका के साथ भारत का चल रहा सहयोग एक 'गहन चिंता का विषय' है

यह टिप्पणी मोदी-बाइडन बैठक के बाद भारत और अमेरिका के एक संयुक्त बयान की स्थिति में आई है, जिसमें नई दिल्ली की भूमिका को "उन्नत अमेरिकी नौसेना संपत्तियों के रखरखाव और मरम्मत केंद्र" कहा गया है।
रणनीतिक स्वायत्तता के रवैये के बाद भी, भारत ने अमेरिका के साथ चार "बुनियादी" समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जिन पर किसी भी देश को अत्याधुनिक अमेरिकी प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्राप्त करने के लिए हस्ताक्षर करना पड़ेगा। उदहारण के लिए LEMOA दोनों देशों की नौसेनाओं को दूसरे देश के बंदरगाहों तक पहुँचने की अनुमति देता है।

"भारतीय बंदरगाहों तक अमेरिकी नौसैनिकों का प्रवेश एक 'गहरी चिंता' हो सकती है, यह ध्यान में रखते हुए कि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति चीन के साथ अपनी प्रतिद्वंद्विता को संस्थागत बनाती है", अहमद ने कहा।

लेकिन भूतपूर्व दूत ने अपने बयान में एक महत्वपूर्ण अतिरिक्ति बताई। लेकिन उन्होंने कहा कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की सारे प्रयासों के बाद भी भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता से कोई समझौता नहीं करेगा

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यात्रा के व्यापक परिणामों पर टिप्पणी करते हुए अहमद ने कहा कि वाशिंगटन दो "दीर्घकालिक उद्देश्यों" की दिशा में काम कर रहा है: उनमें से भारत को व्यापक पश्चिमी गठबंधन में लाना और भारत के साथ अपने रक्षा सौदों को बढ़ाना है।
इसके अतिरिक्त रूस की जगह में भारत के हथियारों के सबसे बड़े स्रोत बनने के अपने इरादे के बारे में अमेरिका ने कोई रहस्य नहीं बनाया है। ज्ञात है कि अमेरिका से नई दिल्ली का रक्षा आयात 20 साल पहले लगभग शून्य से 2020 में 20 बिलियन डॉलर तक बढ़ गया है।
भूतपूर्व दूत ने कहा कि भारतीय मीडिया में तमाम "प्रचार" के बाद भी नई दिल्ली को इस दौरे का "बहुत कम फायदा" उठाएगा ।

"चाहे वह भारतीय ठिकानों के प्रवेश के दृष्टिकोण से हो या भारत से रक्षा और अन्य वाणिज्यिक ऑर्डर उत्पन्न करने के दृष्टिकोण से हो, अमेरिका को इस यात्रा से रणनीतिक और वाणिज्यिक अर्थों में अधिक लाभ हुआ है", उन्होंने कहा।

संयुक्त बयान में यह भी कहा गया है कि "200 से अधिक अमेरिकी निर्मित विमान खरीदने के लिए बोइंग के साथ एयर इंडिया का ऐतिहासिक समझौता," कथित तौर पर इस सौदे की कीमत 70 बिलियन डॉलर से भी अधिक कि आँकी गई है।
बाइडन ने कहा है कि समझौते से 44 अमेरिकी राज्यों में नौकरियां पैदा होंगी।
अहमद ने कहा कि आने वाले निवेश के दृष्टिकोण से नई दिल्ली को "गुणात्मक दृष्टि से" बहुत कम लाभ हुआ है।

'रूस भारत का अग्रणी रक्षा आपूर्तिकर्ता बना रहेगा'

अहमद ने कहा कि भारतीय रक्षा आपूर्ति श्रृंखलाओं में रूसी कंपनियों को बदलने के चल रहे प्रयासों के बाद भी मास्को नई दिल्ली का शीर्ष हथियार आपूर्तिकर्ता बना रहेगा।
उन्होंने कहा कि S-400, तोपखाने, विमान और टैंक जैसी रूसी रक्षा प्रणालियाँ भारतीय सेनाओं का मुख्य आधार बनी रहेंगी।
आंकड़ों के अनुसार 2017-2021 की अवधि में मास्को ने भारत की कुल रक्षा जरूरतों का लगभग 45 प्रतिशत आपूर्ति की है
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