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अमेरिका के साथ कोई पारस्परिक जहाज मरम्मत समझौता नहीं हुआ: भारतीय रक्षा मंत्रालय

© AP Photo / MANISH SWARUPA laborer works at the port as Indian navy warship Mysore lies docked, rear, in Goa, India, Wednesday, Sept. 28, 2005.
A laborer works at the port as Indian navy warship Mysore lies docked, rear, in Goa, India, Wednesday, Sept. 28, 2005.  - Sputnik भारत, 1920, 04.08.2023
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नई दिल्ली ने वाशिंगटन के साथ अपनी रक्षा साझेदारी का विस्तार किया है, पिछले दो दशकों में अमेरिका के साथ भारत के रक्षा अनुबंधों का मूल्य 20 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है।
भारतीय रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि नई दिल्ली ने वाशिंगटन के साथ एक पारस्परिक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जिसके तहत भारतीय जहाजों को अमेरिकी शिपयार्डों में डॉक करने और मरम्मत करने की अनुमति दी जाएगी।
"अमेरिकी शिपयार्डों में भारतीय जहाजों की मरम्मत के लिए न तो किसी पारस्परिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, न कोई बातचीत हुई", मंत्रालय ने एक बयान में कहा।
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साथ ही, रक्षा मंत्रालय की और से कहा गया, भारत की निजी क्षेत्र की इंजीनियरिंग और रक्षा प्रमुख लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) और अमेरिका के बीच एक मास्टर शिपयार्ड मरम्मत समझौता (एमएसआरए) पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके अंतर्गत अमेरिकी नौसेना के जहाज तमिलनाडु प्रदेश के कट्टुपल्ली बंदरगाह में कंपनी के शिपयार्ड में यात्रा मरम्मत से गुजर सकते हैं।
इसके अलावा, मंत्रालय ने कहा कि इस तरह का समझौता सरकारी मझगांव डॉक्स लिमिटेड (एमडीएल) और गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (जीएसएल) के लिए विचाराधीन है।

"एमएसआरए ने अमेरिकी नौसेना के लिए जहाज मरम्मत परियोजनाओं को प्रस्तुत करने के लिए एक शिपयार्ड को लाइसेंस दे दिया है। एमएसआरए में सुरक्षा, भुगतान, देनदारियों आदि पर खंड सम्मिलित हैं। समझौते की हर पांच साल में या आवश्यकतानुसार समीक्षा अंतर्गत है", मंत्रालय ने अपने बयान में कहा।

इसमें इस बात पर जोर दिया गया कि अमेरिकी नौसेना के जहाजों की मरम्मत करना भारतीय जहाज निर्माताओं के लिए फायदेमंद होगा।
साथ ही, रक्षा मंत्रालय भारत के एमडीएल और जीएसएल जैसे बंदरगाहों तक अमेरिकी पहुंच को लेकर सशंकित है, क्योंकि वहां भारत के अधिकांश युद्धपोतों का निर्माण हो रहा है।
नई दिल्ली ने कहा कि अमेरिकी नौसेना के जहाज केवल मरम्मत के लिए भारतीय बंदरगाह पर रहेंगे और प्रक्रिया पूरी होने के बाद देश के क्षेत्रीय जल को छोड़ देंगे।
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