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भारत में दम तोड़ती कठपुतली की कला

© AFP 2023 SANJAY KANOJIAAn Indian artist from Rajasthan state performs a puppet show during the Shilp Mela (craft fare) at the North Central Zone Cultural Centre (NCZCC) in Allahabad on December 20, 2013. AFP PHOTO/SANJAY KANOJIA (Photo by Sanjay Kanojia / AFP)
An Indian artist from Rajasthan state performs a puppet show during the Shilp Mela (craft fare) at the North Central Zone Cultural Centre (NCZCC) in Allahabad on December 20, 2013. AFP PHOTO/SANJAY KANOJIA (Photo by Sanjay Kanojia / AFP) - Sputnik भारत, 1920, 05.08.2023
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भारत का हर कोना उत्कृष्ट संस्कृति और परंपराओं से भरा हुआ है और अगर कला की बात करें तो यह भारत के हर राज्य में अलग अलग रूप में फैली हुई है। ऐसी ही विभिन्न कलाओं में से एक कला है कठपुतली की कला।
इतिहास के मुताबिक इस कला की जड़े हजारों वर्ष पुरानी हैं। देश में कई लोक कथाओं, गाथागीतों और यहां तक कि लोक गीतों में भी इसका संदर्भ देखने को मिलता है, लेकिन आज के डिजिटल युग में यह कला कहीं न कहीं लुप्त होती जा रही है और इससे जुड़े कलाकार भी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
भारत में लगभग हर प्रकार की कठपुतली मिलती है। कठपुतली इतिहास में हुई बड़ी बड़ी घटनाओं और धार्मिक कहानियों से प्रेरित है। पुराने समय से इस कला की मदद से आने वाली युवा पीढ़ी को देश और राज्य के इतिहास के बारे में जानकारी रोचक तरीके से पेश की जाती थी।
जब इंसान ने डिजिटल युग में प्रवेश नहीं किया था तब पारंपरिक मनोरंजन में कठपुतली ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कठपुतली थिएटर की थीम, पारंपरिक थिएटर की तरह, आम तौर पर महाकाव्यों और किंवदंतियों पर आधारित होती हैं।
Sputnik ने राजस्थान के उदयपुर स्थित भारतीय लोक कला संग्रहालय में देखभाल करने वाले भगवती माली से बात की और यह जानने की कोशिश की कि किन वजहों से हजारों सालों से चली आ रही यह कला कहीं धूमिल होती जा रही है। भगवती दो दशकों से अधिक समय से इस संग्रहालय में अपनी सेवा दे रहे हैं।
इसी संग्रहालय में कठपुतली के नाटक और नाच के साथ साथ कठपुतलियों को भी यहाँ बनाया जाता है। कारीगर यहां नाटक की जरूरत के हिसाब से कठपुतली बनाई जाती हैं।
भगवती माली ने Sputnik से बात करते हुए बताया कि वे लोग अक्सर विदेश जाया करते हैं और वहां उनकी इस कला को बहुत सराहना मिलती है। इसके अलावा पहले की तुलना में अब लोग काफी कम संख्या में कठपुतली का नाच देखने को आते हैं।
Sputnik: आज के डिजिटल समय में बच्चे मोबाईल और टीवी को कहीं अधिक समय देते हैं? आप कैसा बदलाव देखते हैं?
भगवती माली: अभी लोगों का रुझान थोड़ा कम हो गया है, पहले के समय में मनोरंजन का यही एकमात्र साधन था तो काफी लोग आते थे लेकिन जब से टीवी और मोबाईल आए हैं लोग बहुत कम आते हैं लेकिन हम कोशिश कर रहे कि कुछ अच्छा हो जाए।
Sputnik: कितने लोग कठपुतली का खेल देखने आते हैं और आप क्या कुछ कोशिश करते हैं जिससे लोग बड़ी संख्या मे आएँ?
भगवती माली: बहुत कम लोग आते हैं क्योंकि लोगों का रुझान बहुत काम है। हम लोग काफी कोशिश कर रहे हैं जिससे यहां आने वाले लोगों की संख्या बढ़े।
Sputnik: स्थानीय शो करने के अलावा कहीं ओर भी आप लोग अपनी कला दिखाने जाते हैं और किस तरह के नाटक आप करते हैं?
भगवती माली: जी बिल्कुल, हमारे शो विदेशों में भी किए जाते हैं, अमेरिका, कनाडा, सिंगापुर, मलेसिया, स्कॉटलैंड, और आयरलैंड जैसे देशों में [हम ने] कठपुतली शो किए हैं। हमारे कठपुतली के नाटक एक एक घंटे के होते हैं और उनम के दौरान विवेकानंद, महात्मा गांधी, काबुली वाला और रामायण पर आधारित नाटक किए जाते हैं।
Sputnik: अगर कोई इस कला को सीखना चाहे तो वे किस तरह यह सीख सकते हैं? और [आप] देश विदेश में इस कला के प्रति लोगों का कैसा रुझान देखते हैं?
भगवती माली: विदेशों में काफी अच्छा रेसपोन्स मिलता है और अगर कोई सीखना चाहता है तो हम उसे सीखा सकते हैं लेकिन लोग कम संख्या में यहां आते हैं।
Sputnik: लोगों से क्या कहेंगे?
भगवती माली: हम चाहते हैं कि लोग इसे बढ़ावा दें और सरकार से भी [हम] उम्मीद करते हैं कि वह भी हमारी मदद करे।
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